नई दिल्ली। यदि आप किसी महिला को या उसकी बेटी को वेश्या बोलते हैं और उसके तत्काल बाद महिला आपकी हत्या कर देती है तो आईपीसी की धारा 302 के तहत अपराध नहीं होगा। सुप्रीम कोर्ट ने माना है कि 'वेश्या' शब्द अपराध के लिए उकसाता है, अत: यह इरादतन हत्या नहीं है बल्कि उकसावे के तहत की गई गैरइरादतन हत्या है। यह पहला मौका है जब कोर्ट ने इस तरह के शब्दों को गंभीर और अचानक पैदा किया गया उकसावे का कारण माना है। इससे पूर्व आत्मरक्षा में की गई हत्या के मामले में ही माफी दी जाती थी और आरोपी को हल्की धाराओं में दंडित किया जाता था।
जस्टिस एम.एम. शांतनागौडर और दिनेश माहेश्वरी की पीठ ने कहा, इस प्रकार पैदा किए गए उकसावे के बाद की गई हत्या गैरइरादतन हत्या का अपराध होगा जो धारा 304 भाग-1 के तहत आएगा। मामले के अनुसार, मृतक की पत्नी के अभियुक्त नंबर दो के साथ अवैध संबंध थे। वह अपनी पत्नी के चरित्र पर शक करता था। साथ ही उसे यह भी शक था पत्नी ने अपनी युवा बेटी को भी इसी तरह का बना दिया था। घटना के दिन पति का पत्नी से झगड़ा हुआ और उसने पत्नी को वेश्या कह दिया। पति ने यह भी कहा कि तुम तो वेश्या हो ही गई हो तुमने बेटी को भी वेश्या बना दिया है। इसी बीच उसका प्रेमी भी वहीं आ गया और दोनों ने मिलकर पति का गला घोंट दिया। इसके बाद दोनों ने शव को जला दिया ताकि हत्या का कोई सबूत न रहे।
कोर्ट ने कहा, हमारे समाज में कोई भी महिला अपने पति के मुंह से अपने लिए वेश्या का शब्द नहीं सुन सकती। खास तौर यह शब्द अपनी बेटी के लिए तो वह बिल्कुल नहीं सुन सकती। मृतक का यह शब्द गंभीर रूप से उकसाने वाला था। क्योंकि शव को ले जाकर जलाया गया है इसलिए इस मामले में उन्हें धारा 201 के तहत दंडित किया जाना उचित है। यह घटना कुछ ही सेकंडों में हुई क्योंकि दोनों अभियुक्त आत्मनियंत्रण की शक्ति को खो चुके थे। अचानक पैदा किए गए इस उकसावे के कारण दोनों ने पति को जान से मार दिया।
पीठ ने कहा, इस मामले में हम सजा को संशोधित कर रहे हैं क्योंकि यह मामला आईपीसी की धारा 304 भाग-1 में आएगा, धारा 302 के तहत नहीं। इसलिए दोनों को 10 साल की कड़ी कैद की सजा दी जाती है। ट्रायल कोर्ट और मद्रास हाई कोर्ट ने दोनों को आईपीसी की धारा 302 तथा सबूत नष्ट करने के लिए धारा 201 के तहत दोषी ठहराया था और दोनों को उम्रकैद दी थी। इसके खिलाफ वे सुप्रीम कोर्ट पहुंचे थे।