लखनऊ। इलाहाबाद हाईकोर्ट की लखनउ खंडपीठ ने कहा है कि आधार कार्ड नाम, लिंग, पते या जन्मतिथि के बाबत निर्णायक सबूत नहीं है। यदि आधार कार्ड में दी गई इन सूचनाओं को लेकर किसी विवेचना के दौरान कोई सवाल खड़ा होता है तो आधार कार्ड का प्रयोग करने वाले को उन दस्तावेजों को पेश करना होगा जिनके आधार पर आधार कार्ड में दिए गए विवरण दर्ज कराए गए थे। यह फैसला जस्टिस अजय लांबा व जस्टिस राजीव सिंह की बेंच ने शुक्रवार को श्रीमती पार्वती कुमारी व अन्य की ओर से दाखिल एक रिट याचिका पर सुनवायी करते हुए पारित किया।
याचिकाकर्ताओं ने बहराइच के सुजौली थाने पर दर्ज कराई एक एफआईआर को रद करने की मांग की थी। दरअसल एक मां ने थाने पर प्राथमिक सूचना रिपोर्ट दर्ज कराकर कहा था कि उसकी बेटी का किसी ने अपहरण कर लिया है। बेटी ने उस व्यक्ति के साथ मिलकर कोर्ट में याचिका दायर कर कहा कि वह बालिग है और उसने उस व्यक्ति से विवाह कर लिया है। जिससे नाखुश मां ने उसके पति व पति के परिवार वालों के खिलाफ उसके अपहरण की फर्जी रिपेार्ट लिखा दी है।
इसके बाद अपनी आयु के समर्थन में बेटी ने अपना व अपने पति का आधार कार्ड याचिका के साथ पेश किया। आधार कार्ड में बेटी की जन्मतिथि 1 जनवरी 1999 तो वहीं पति की जन्मतिथि 1 जनवरी 1997 दर्ज थी। बेटी के अपहरण न होने के बयान पर कोर्ट ने उसकी व पति की गिरफ्तारी पर रोक लगाने का आदेश दे दिया था जिसके बाद पुलिस ने विवेचना करके केस में फाइनल रिपोर्ट लगा दी थी। मां का कहना था कि आधार कार्ड में दर्ज जानकारी गलत है। कोर्ट ने निर्णय सुनाया कि यदि विवाद की स्थिति बनती है तो आधार कार्ड अंतिम प्रमाण नहीं होगा। इससे जुड़े दस्तावेज पेश करने होंगे।