ADHYAPAK: नई सरकार के "पहले कदम" का इंतजार | KHULA KHAT by Ramesh Patil

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रमेश पाटिल। अध्यापक न ज्यादा उत्साहित हो न निराश हो। नई सरकार बन गई है। कांग्रेस पार्टी के वचन पत्र में ही अध्यापक के मुद्दे स्पष्ट दिये गये है। इससे हटकर हम नये-नये सुझावों देकर न उलझायें न उलझें तो अध्यापक हित के लिए बेहतर होगा। जो वातावरण बन चुका है उसको बनाये रखें और उसके अनुकूल ही विचार रखे। आदतानुसार केवल अध्यापक राजनीति को लम्बे समय तक जिंदा रखना हो और नाम को चमकाये रखना हो तो बात अलग है? 

हमने नई सरकार के "पहले कदम" का इंतजार करना चाहिए। सरकार की ओर से वचनपत्र विभाग प्रमुखों को क्रियान्वयन के लिए सौंपा जा चुका है। निश्चित ही यह मानकर भी चलें की शिक्षा विभाग मे संविलियन के पड़ाव में अध्यापक प्रतिनिधिमंडल से वार्ता भी होगी और वचनपत्र का क्रियान्वयन अध्यापकों को विश्वास में लेकर किया भी जायेगा। तब तक अपने महत्वपूर्ण सुझाव और शक्ति को संभालकर रखें।

वचन देने वाली पार्टी सरकार बनाने मे कामयाब हो चुकी है तो "पहला कदम" सरकार को ही उठाने दें कमी होगी तो उसे दूर करने के लिए कदम भी बढायेगे। हां इतना जरूर हम पूर्व अनुभव के आधार पर कह सकते है कि सरकार चाहे कोई भी हो की स्मरणशक्ति कमजोर होती है। इसलिए बड़ी विनम्रता पूर्वक सरकार को वचनपत्र का स्मरण कराते रहें। उसके बाद ही कोई उत्तेजना पैदा करने वाले कदम के बारे में सोचे। अध्यापक समझदार व जागरूक हो चुका है। वह अध्यापक नेतृत्व की नस-नस से वाकिफ हो चुका है।

शिक्षा विभाग में संविलियन में कुछ अड़चने हमारे नियमित शिक्षक संवर्ग द्वारा अपेक्षित है लेकिन ऐसे लोगों की संख्या नगन्य है। शिक्षक संघो द्वारा भी अध्यापकों के शिक्षा विभाग मे संविलियन की मांग पुरजोर तरीके से "शिक्षा विभाग" को बचाने उठाई जाती रही है। इसलिए नगन्य लोगों से भयभीत होने की जरूरत नही बल्कि उनको अपने-अपने स्तर पर समझाते रहें कि आपकी गरिमा और जायज वरिष्ठता को कोई खतरा नही है। शांत भाव से प्रत्येक संघ का अध्यापक नेतृत्व शिक्षा विभाग संविलियन में संभावित अड़चन का समाधान खोजने में अपने बुद्धिबल का प्रयोग करे तो 1994 के नियमों के अधीन शिक्षा विभाग मे संविलियन का कार्य भी आसान हो जायेगा। 

अपनी व्यक्तिगत समस्या को प्रधानता देकर अनावश्यक पहले ये-पहले ये की बहस न करें। ना ही ये जिद करे की "राज्य शिक्षा सेवा" का समर्थन करने वाले आप "शिखर पुरुष" रहे है तो पहले इसे लेकर ही रहूंगा। आप "शिखर पुरूषों" की ख्याति और कर्म सर्वव्याप्त है। अपने आप को बिल्कुल भी महत्वहीन समझने का भ्रम ना पाले। आपकी ख्याति और महानता अखंडित है। थोड़ा-थोड़ा पाने की मनोवृत्ति से ही लक्ष्य पर अब तक केन्द्रित नही हो पाये है। अब लक्ष्य सामने है तो इधर-उधर न भागे।

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