मध्यप्रदेश में भाजपा का संतुलन गडबडा रहा है। कल बीते विधानसभा सत्र में उसका प्रदर्शन दिशा विहीन था। हमेशा की तरह हंगामेदार पर दिशा विहीन। उसने विधानसभा अध्यक्ष के चुनाव में और उपाध्यक्ष के चुनाव में संसदीय कौशल का परिचय ही नहीं दिया। विधानसभा अध्यक्ष के चुनाव में मिली मात से कोई सबक नहीं सीखा, उसका सारा ध्यान कांग्रेस की कृपा पर था। जिसकी उम्मीद करना व्यर्थ था। सदन की परम्परा की दुहाई देकर भाजपा मोर्चा फतह करना चाहती थी, परन्तु उसके संसदीय ज्ञानवीर यह समझने में असफल रहे कि दोनों चुनावों में नामांकन के पर्चे उन्हें पहले भरना थे।
जिस तरह कांग्रेस ने अध्यक्ष के चुनाव में चतुराई से काम लेकर समय से पांच नामांकन भरवाए थे उससे कुछ सीखना था, उपाध्यक्ष के चुनाव में भी यही फार्मूला लगाकर कांग्रेस जीती, भाजपा को किसने रोका था। अब आसंदी पर आक्षेप व्यर्थ है। साफ दिखता है भाजपा के सारे विधायक अभी भी हार के शोक से ग्रस्त हैं। सामान्य सी बात है शोक में खीज उत्पन्न होती है, जिसमे भाजपा का संतुलन गडबडा रहा है। भाजपा को अब इस स्थिति से नेता प्रतिपक्ष गोपाल भार्गव उबार सकते हैं। भाजपा के केंद्रीय नेतृत्व ने शिवराज सिंह को राष्ट्रीय उपाध्यक्ष बना कर गोपाल भार्गव को खुल कर काम करने का मौका दिया है। अब उन्हें ही नहीं, बल्कि मध्यप्रदेश की सम्पूर्ण भाजपा को संतुलन बनाना होगा।
वैसे पांच राज्यों में मिली हार के बाद भाजपा अब आम चुनावों में किसी तरह का जोखिम नहीं उठाना चाहती है और इसलिए हर दांव सोच-समझ कर खेल रही है। भारत में चुनाव मुद्दों से अधिक भावनाओं के इर्द-गिर्द कैसे हो सकते हैं, इसका सफल प्रयोग भी वह अतीत में कर चुकी है। इसलिए धर्म के बाद अब वह जातिगत भावनाओं को भुनाने की तैयारी में है। सामान्य वर्ग को सरकारी नौकरियों और शिक्षण संस्थानों में दस प्रतिशत आरक्षण देने का फैसला सरकार ने जिस हड़बड़ी में लिया, वह इसका उदाहरण है। यूं तो सवर्ण हमेशा से भाजपा के वोट बैंक माने जाते रहे हैं, लेकिन पिछले साढ़े चार सालों में भाजपा के सवर्ण समर्थक अलग-अलग कारणों से उससे नाराज हुए और बतौर मतदाता उससे दूर भी हुए। मध्यप्रदेश में “माई के लाल” का कमाल दिखने के साथ पद्मावत फिल्म विवाद, नोटबंदी और जीएसटी के कारण व्यापार, रोजगार को होने वाला नुकसान, बेरोजगारी की बढ़ती दर, महंगाई इन सबसे सवर्णों में नाराजगी देखी गई। फिर एससी एसटी एक्ट पर सुप्रीम कोर्ट के फैसले ने भाजपा की परेशानी और बढ़ा दी। देश में दलित समुदाय की नाराजगी को रोकने के लिए सरकार ने सुप्रीम कोर्ट के फैसले के खिलाफ संसद में संविधान संशोधन पेश किया तो सवर्ण नाराज हो गए। और मध्यप्रदेश, राजस्थान, छत्तीसगढ़ में भाजपा को हराने का बाकायदा ऐलान भी किया और नतीजे उस एलान के अनुरूप ही आए।
विधानसभा चुनाव परिणामों की छाया आम चुनाव में न पड़े, इसलिए भाजपा में अब सवर्णों को अपने पाले में फिर लाने की बेचैनी साफ नजर आ रही है। इसलिए केंद्रीय कैबिनेट ने सामान्य वर्ग के आर्थिक रूप से कमजार उन लोगों को शिक्षा और सरकारी नौकरियों में 10 प्रतिशत आरक्षण देने का फैसला लिया, जिनकी आमदनी आठ लाख रुपए सालाना से कम है और जिनके पास मात्र 5 एकड़ तक जमीन है। इस प्रस्तावित आरक्षण का कोटा वर्तमान कोटे से अलग होगा। इस सबके साथ मध्यप्रदेश जैसे राज्य में जहाँ वो सता के जादुई नम्बर के करीब है अपने संसदीय ज्ञान, कौशल, जन संघर्ष में जोश और पूरे होश का परिचय देना होगा। खीज का परिणाम विधानसभा अध्यक्ष और उपाध्यक्ष का निर्वाचन का नतीजा सामने है।
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श्री राकेश दुबे वरिष्ठ पत्रकार एवं स्तंभकार हैं।