सीबीआई का विकल्प खोजना होगा | EDITORIAL by Rakesh Dubey

Bhopal Samachar
केन्द्रीय जाँच अन्वेषण ब्यूरो यानी सीबीआई निरंतर अपनी साख खोती जा रही है, समय आ गया है इसके विकल्प को खोजा जाए। अब छत्तीसगढ़ में भी राज्य सरकार ने सीबीआई के प्रवेश पर रोक लगा दी है। गृह विभाग ने केंद्रीय कार्मिक, जनशिकायत और पेंशन मामले तथा केंद्रीय गृह मंत्रालय को पत्र लिखा है इसमें कहा गया कि राज्य सरकार साल 2001 में केंद्र को दी गई उस सहमति को वापस लेती है, जिसके तहत केंद्रीय गृह मंत्रालय द्वारा सीबीआई को छत्तीसगढ़ में कोई भी मामलों की जांच के लिए अधिकृत करने की अधिसूचना जारी की गई थी। 

इससे पहले आंध्रप्रदेश और पश्चिम बंगाल सरकार ने अपने-अपने राज्य में सीबीआई के प्रवेश पर रोक लगा दी थी।  इसके की कारण है, जिनमे राजनीतिक कारण भी हैं। दिल्ली विशेष पुलिस स्थापना एक्ट 1946 के तहत कार्यरत सीबीआई निरंतर अपनी धाक खोती जा रही है। कल लम्बी  अदालती लड़ाई जितने के बाद, पुन: बहाल हुए उसके निदेशक आलोक वर्मा ने इस्तीफा दे दिया है।

छतीसगढ़ का ही उदहारण लें तो राज्य में पिछले 18 सालों के दौरान सीबीआई की ओर से आधा दर्जन मामलों की जांच की जा चुकी है। जिनमे रामावतार जग्गी हत्याकांड, बिलासपुर के पत्रकार सुशील पाठक और छुरा के उमेश राजपूत की हत्या, एसईसीएल कोल घोटाला, आईएएस बीएल अग्रवाल रिश्वत कांड, भिलाई का मैगनीज कांड और पूर्व मंत्री राजेश मूणत की कथित अश्लील सीडी कांड की जांच शामिल है। पर नतीजा शून्य रहा है। इसी तरह देश में सर्वाधिक चर्चित मध्यप्रदेश के व्यापमं मामले में उसकी कोई उल्लेखनीय भूमिका नहीं रही। पता नहीं क्यों सीबीआई जाँच को लम्बी और निष्प्रयोज्य बनाने का हथियार होती जा रही है। राज्यों के साथ भी उसके राग द्वेष तो हैं ही आपसी जंग इसके रौब-दाब को समाप्त कर रहा है।

सीबीआई गठन के कानून में ही राज्यों से सहमति लेने का प्रावधान  है। दरअसल, सीबीआई दिल्ली विशेष पुलिस प्रतिष्ठान अधिनियम-1946 के जरिए बनी संस्था है। अधिनियम की धारा-5 में देश के सभी क्षेत्रों में सीबीआई को जांच की शक्तियां दी गई हैं। पर धारा-6 में कहा गया है कि राज्य सरकार की सहमति के बिना सीबीआई उस राज्य के अधिकार क्षेत्र में प्रवेश नहीं कर सकती। आंध्र और प. बंगाल सरकार ने धारा-6 का ही इस्तेमाल करते हुए सहमति वापस ले ली थी। सीबीआई छत्तीगढ़ में केंद्रीय अधिकारियों, सरकारी उपक्रमों और निजी व्यक्तियों की जांच सीधे नहीं कर सकेगी। भ्रष्टाचार निवारण अधिनियम के तहत भी प्रदेश में कोई कदम नहीं उठा सकेगी।

देश का दुर्भाग्य है की केन्द्रीय जाँच एजेंसी होने के बावजूद सी बीआई खुद मामले की जांच शुरू नहीं कर सकती। राज्य और केंद्र सरकार के कहने या हाईकोर्ट और सुप्रीम कोर्ट के आदेश पर ही वो जांच कर सकती है। ऐसे में अगर कोई राज्य सीबीआई को बैन करता है तो कोर्ट के आदेश के बाद राज्य का आदेश रद्द हो जाएगा। प्रश्न यह है की ऐसी नख दंत विहीन संस्था का क्या अर्थ है ? अब समय आ गया है इसके गठन और जारी रखने के दो टूक निर्णय का। वर्तमान सरकार हो या भावी सरकार सबको एक ऐसी केन्द्रीय एजेंसी की जरूरत हमेशा रहेगी। इसका स्वरूप कैसा हो इस पर एक राष्ट्रव्यापी बहस की जरूरत है। विकल्प की तलाश और उसकी स्थापना जरूरी है।
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श्री राकेश दुबे वरिष्ठ पत्रकार एवं स्तंभकार हैं।
संपर्क  9425022703        
rakeshdubeyrsa@gmail.com
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