नई दिल्ली। अजीब सी उलझन है। देश के वैज्ञानिक जहाँ ऑर्गनिक फ़ूड की वकालत कर रहे है। वही प्रतिष्ठित जर्नल 'नेचर' के नवीनतम संस्करण में प्रकाशित एक शोध रिपोर्ट में यह दावा किया गया है कि ऑर्गेनिक तरीके से खेती करने में अधिक कार्बन उत्सर्जन होता है जिससे परंपरागत खेती की तुलना में जलवायु पर अधिक प्रभाव पड़ता है। ऑर्गेनिक मांस एवं दुग्ध उत्पाद तो सामान्य तरीके से तैयार उत्पादों की तुलना में जलवायु पर अधिक नकारात्मक प्रभाव डालते हैं। यह लेख जलवायु परिवर्तन को कम करने के लिए भूमि उपयोग में बदलाव की सक्षमता का आकलन करता है। यह लेख स्वीडन की चामर्स यूनिवर्सिटी ऑफ टेक्नॉलजी द्वारा किए गए एक अध्ययन पर आधारित है जिसमें वर्ष २०१३ से लेकर २०१५ तक के फसल उपज संबंधी आंकड़ों का विश्लेषण किया गया है। इस अध्ययन में कहा गया है कि ऑर्गेनिक खेती के लिए अधिक जमीन की जरूरत होने से इसका पर्यावरणीय प्रभाव सामान्य खेती की तुलना में अधिक प्रतिकूल होता है।
निस्संदेह, ऑर्गेनिक खेती के दौरान होने वाला प्रत्यक्ष कार्बन उत्सर्जन परंपरागत खेती से आम तौर पर अधिक होता है लेकिन कुल जलवायु पर इसका प्रभाव कहीं अधिक होता है। शोधकर्ताओं के मुताबिक, इसकी वजह यह है कि ऑर्गेनिक खेती में अधिक जमीन की जरूरत पड़ती है जो अप्रत्यक्ष रूप से वनों को अधिक नुकसान पहुंचाता है। उन्होंने अपने अध्ययन में यह पाया है कि ऑर्गेनिक तरीके से मटर उपजाने में जलवायु को सामान्य तरीके की तुलना में ५० प्रतिशत अधिक नुकसान उठाना पड़ता है। गेहूं के मामले में तो यह अंतर ७० प्रतिशत तक होता है।
इसके अलावा ऑर्गेनिक उत्पादों का पोषण बेहतर होने के दावों पर सवाल उठाने वाले नए वैज्ञानिक साक्ष्य भी सामने आ रहे हैं। इस तरह का शुरुआती भरोसेमंद संकेत वर्ष २००९ में किए गए एक व्यापक विश्लेषण से मिला था। उससे पता चला था कि ऑर्गेनिक एवं दूसरे खाद्य उत्पादों के पोषण स्तर में कोई अंतर नहीं होता है। बाद में किए गए अध्ययनों ने इस निष्कर्ष पर मुहर लगाने का काम किया। वर्ष २०१२ में इस विषय पर प्रकाशित २४० शोध रिपोर्टों के व्यापक अध्ययन से भी इसकी पुष्टि हुई। इसके मुताबिक ऑर्गेनिक एवं गैर-ऑर्गेनिक उत्पादों में विटामिन, प्रोटीन और वसा संबंधी कारकों में शायद ही कोई फर्क होता है। हालांकि कुछ उत्पादों में फॉस्फोरस की आंशिक रूप से अधिक मात्रा पाई गई और ऑर्गेनिक दूध में ओमेगा-३ फैटी एसिड का स्तर ऊंचा पाया गया।
ऑर्गेनिक एवं गैर-ऑर्गेनिक फूड के स्वाद में कोई खास फर्क नहीं होता है। अमेरिकी कृषि विभाग के मुताबिक दोनों तरह से उपजे खाद्य उत्पादों के स्वाद में अंतर कुछ लोग ही बता पाते हैं। अमेरिकी सरकार के मुताबिक, 'स्वाद एक व्यक्तिपरक एवं व्यक्तिगत सोच का मामला होता है।' ऑर्गेनिक खेती के गुण-दोष को परे रख दें तो पादप वैज्ञानिकों की सामान्य धारणा यही है कि पूरी तरह से रसायन-मुक्त खेती कर पाना अब मुमकिन नहीं रह गया है। भारत समेत कई देशों में हरित क्रांति के अग्रदूत रहे और नोबेल पुरस्कार से सम्मानित महान कृषि विज्ञानी नॉर्मन ई बोरलॉग अक्सर यह कहा करते थे कि भूख की समस्या केवल ऑर्गेनिक खेती से हल नहीं की जा सकती है। अगर जरूरत का समूचा खाद्य पदार्थ ऑर्गेनिक तरीके से ही पैदा होना है तो इसके लिए अधिक जमीन की जरूरत होगी |
गैर-ऑर्गेनिक खेती में खाद और जहरीले कीटनाशकों का बिना सोचे-समझे इस्तेमाल किया जाता है। सावधानियों को दरकिनार करते हुए खाद और कीटनाशकों का धड़ल्ले से इस्तेमाल किया जाता है। अगर किसी तरह से इस बेजा इस्तेमाल पर रोक लगाई जा सके तो आधुनिक खेती को लेकर जताई जाने वाली तमाम आपत्तियों को दूर किया जा सकता है। हालांकि इस पूरी दलील का मकसद ऑर्गेनिक खेती को कमतर बताना नहीं है। इसमें कई सकारात्मक पहलू हैं। खासकर मिट्टी के जैविक एवं सूक्ष्म-पोषक गुणों को संरक्षित करने में ऑर्गेनिक खेती अधिक मुफीद है।
ऑर्गेनिक खेती के अपने लाभ हानि है। इससे इतर ,रासायनिक पदार्थों के इस्तेमाल से होने वाली परंपरागत खेती तेजी से विलुप्त होती जा रही है। खेती-योग्य जमीन और कृषि उपजों की बढ़ती मांग को देखते हुए अपरिहार्य है। इस विषय को कृषि वैज्ञानिको और सरकार को स्पष्ट करना चाहिए और नजरिया सबको सस्ता और सुलभ भोजन होना चाहिए।
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श्री राकेश दुबे वरिष्ठ पत्रकार एवं स्तंभकार हैं।