इंदौर। दीपक 12वीं में पढ़ता था तब उसे एक लड़की से प्यार हुआ। प्यार परवान चढ़ा। दोनों लिव इन रिलेशन में रहने लगे। 5 साल दोनों का रिश्ता चला लेकिन 17 मार्च 2017 को जब एक नन्हा मेहमान आया तो जैसे सारी जिंदगी ही बदल गई। दोनों समझ नहीं पा रहे थे कि बच्चे का क्या करेंगे। बात बढ़ती गई और बच्चा 10 महीने का था तो दोनों में ब्रेकअप हो गया। प्रेमिका अपने बच्चे को प्रेमी के पास छोड़कर रीवा चली गई। जाते-जाते उसने साफ कह दिया हमारा-तुम्हारा रिश्ता खत्म, बच्चे को तुम संभालो।
बच्चे का जीवन संकट में पड़ गया
प्रेमी दीपक पर अचानक बच्चे की परवरिश का भार आ गया। वह काम-धंधा करे या बच्चा संभाले? बार-बार उसके जहन में एक ही सवाल उठने लगा कि 8 महीने के दूधमुंहे बच्चे को वह कैसे संभालेगा? वह बच्चे को लेकर फरवरी 2018 में सबसे पहले चाइल्ड लाइन गया। चाइल्ड लाइन वालों ने प्रेमिका को सुलह के लिए राजी करने की कोशिश की लेकिन वह नहीं मानी। अंतत: दीपक को बच्चे सहित बाल कल्याण समिति (सीडब्ल्यूसी) के पास पहुंचा दिया। समिति सदस्य ने कहा वे बच्चे को ऐसे नहीं ले सकते? कागजी कार्रवाई में कुछ समय तो लगेगा। दीपक की गुहार पर उन्होंने बच्चे को कुछ दिन के लिए बाल आश्रम में रखने का भरोसा दिलाया। बच्चा सौंपने के कुछ देर बाद वह वापस लौटा और बच्चे को ले गया।
दोस्त को सौंपा तो वह भी नहीं रख पाया
दीपक ने बच्चे को अपने दोस्त को सौंप दिया। उसने कहा कि काम के सिलसिले में 7 दिन के लिए शहर से बाहर जाना है। 7 दिन के लिए इसे रख लो। दीपक को इंदौर लौटने में 10 दिन लग गए। दोस्त और उसकी पत्नी भी बच्चे की परवरिश में खुद को असमर्थ समझने लगे। दोस्त उस बच्चे को लेकर सीडब्ल्यूसी पहुंच गया। बच्चे को देख कर समिति सदस्य जेमिनी वर्मा ने उसे पहचान लिया। बच्चे के पिता दीपक से फोन पर बात की। दीपक ने उनसे मदद की गुहार लगाई। इसके बाद उसके इंदौर लौटने पर कागजी कार्रवाई पूरी हुई और बच्चे को संजीवनी आश्रम में छह महीने के लिए रखवा दिया गया। आश्रम में रहने के बाद बच्चा करीब डेढ़ साल का हो गया। इस बीच उसके पिता का दिल पसीजा और अपने बच्चे को समिति के माध्यम से नवंबर 2018 में वापस ले आया। दीपक ने बताया कि संजीवनी संस्था की आशा मेडम और सीडब्ल्यूसी की मेंबर जेमिनी वर्मा और अन्य सदस्यों का वह ताउम्र शुक्रगुजार रहेगा। इन्होंने उसकी मदद नहीं की होती तो पता नहीं क्या होता?
बच्चे की खातिर समझौता किया
दीपक ने बताया कि बच्चे के बिना उसका मन नहीं लगता था लेकिन साथ भी नहीं रख पा रहा था। उसने तय किया कि अब वह शादी नहीं करेगा और बच्चे को पढ़ा-लिखा कर अच्छा इंसान बनाएगा। लेकिन नौकरी पर जाने की समस्या भी थी। उसने बच्चे की खातिर फिर समझौता किया। एक होटल में ऐसी नौकरी खोजी जहां पूरे समय बच्चा उसकी नजरों के सामने ही रहे। होटल में ही उसे रूम मिल गया। दिन में वह बच्चे के साथ रहता है। दिनभर मस्ती करने के बाद जब बच्चा रात को सो जाता है तो दीपक नाइट ड्यूटी करता है। रात को बीच-बीच में रूम में जाकर बच्चे को देख भी लेता है।
SCHOOL LIFE में ही हो गया प्यार
दीपक ने बताया कि जब वह रीवा में 12वीं कक्षा में पढ़ता था तब ममता (परिवर्तित नाम) से प्यार हो गया। दोनों मिलने-जुलने लगे और शादी का फैसला कर लिया। 2012 में दोनों रीवा से इंदौर आ गए। यहां कृष्णबाग कॉलोनी में किराए के मकान में रहने लगे। दुनिया को दिखाने के लिए शादी के सांकेतिक फोटो घर में लगा लिए। चूंकि घर चलाने के लिए दीपक को रुपए की जरूरत थी तो उसने अलग-अलग कंपनियों में नौकरी की। बाद में एक इवेंट कंपनी से जुड़ गया। काम के सिलसिले में उसे अक्सर इंदौर से बाहर जाना पड़ता था। ममता इससे खफा रहने लगी। मनमुटाव भी बढ़ने लगा। जब बच्चा हुआ तो ममता को जीवन भारी लगने लगा और उसने अलग होने का फैसला किया। दीपक भी रोज-रोज के झगड़ों से तंग आ चुका था, इसलिए उसे रोक नहीं सका, लेकिन ममता ने बच्चे को अपनाने से साफ इंकार कर दिया।
Live-in relationship वालों के लिए सबब
लिव इन रिलेशनशिप में रहने वालों के लिए यह मामला एक सबक है। शादी के बिना साथ में रहने के पहले अच्छी तरह सोच लेना चाहिए। अलगाव होने पर बच्चे का भविष्य संकट में आ सकता है। समिति के सभी सदस्यों ने बच्चे का जीवन संवारने के लिए जो संभव हो सकता था वह किया।
जेमिनी वर्मा, सदस्य, बाल कल्याण समिति