नई दिल्ली। देश की सोशल मीडिया सेलेब्रिटी IAS बी.चंद्रकला ने उनके घर और ठिकानों पर पड़ी सीबीआई रेड को 'चुनावी छापा' बताया है। पहली बार इस तरह की कार्रवाई के बाद भारतीय प्रशासनिक सेवा के अधिकारी का ऐसा बयान आया है जिसमें राजनीति झलक रही है। इस बयान के साथ ही यह माना जा रहा है कि IAS बी.चंद्रकला इस्तीफा देकर लोकसभा चुनाव में उतर सकतीं हैं।
सोशल मीडिया पर हमेशा सुर्खियों में रहने वाली IAS बी.चंद्रकला इस बार खनन घोटाले को लेकर चर्चा में हैं। अवैध खनन मामले में सीबीआइ जांच में फंसी चंद्रकला ने पहली बार CBI छापेमारी पर चुप्पी तोड़ी है। सोशल मीडिया पर हमेशा सक्रिय रहने वाली IAS चंद्रकला ने अपने linkedin अकाउंट पर एक कविता पोस्ट की है, जिसमें अंत में उन्होंने सीबीआइ की छापेमारी को चुनावी छापा बताया। उन्होंने लिखा, 'जीवन के रंग को क्यों फीका किया जाए।'
दरअसल, यूपी में अवैध खनन मामले को लेकर सीबीआइ ने पांच जनवरी को चंद्रकला के ठिकानों पर छापेमारी की थी। सीबीआइ ने चंद्रकला के लखनऊ स्थित घर पर करीब दो घंटे तक छापेमारी की। समाजवादी पार्टी सरकार के पूरे पांच साल के कार्यकाल के दौरान चंद्रकला बुलंदशहर, हमीरपुर, मथुरा, मेरठ और बिजनौर की डीएम रहीं हैं। चंद्रकला पर गतल तरीके से खनन पट्टे जारी करने का आरोप है।
इस पूरी कार्रवाई के बाद चंद्रकला ने लिंक्डइन अकाउंट पर एक कविता पोस्ट की है। यूं तो यह कविता एक प्रेमिका के शब्द लगते हैं परंतु यदि इसके मायने निकाले जाएं तो यह अखिलेश यादव की तरफ की गई अपील हो सकती है। क्या इस तरह इशारा करके चंद्रकला ने सपा में शामिल होने की इच्छा जताई है। अंत में अपने फालोअर्स के लिए चंद्रकला ने लिखा है:
,चुनावी छापा तो पडता रहेगा,,लेकिन जीवन के रंग को क्यों फीका किया जाय ,,दोस्तों।
आप सब से गुजारिश है कि मुसीबते कैसी भी हो , जीवन की डोर को बेरंग ना छोडे।।
पढ़िए यह कविता जो चंद्रकला ने सार्वजनिक की है
रे रंगरेज़ ! तू रंग दे मुझको ।।
रे रंगरेज़ तू रंग दे मुझको,
फलक से रंग, या मुझे रंग दे जमीं से,
रे रंगरेज़! तू रंग दे कहीं से ।।
छन-छन करती पायल से,
जो फूटी हैं यौवन के स्वर;
लाल से रंग मेरी होंठ की कलियाँ,
नयनों को रंग, जैसे चमके बिजुरिया,
गाल पे हो, ज्यों चाँदनी बिखरी,
माथे पर फैली ऊषा-किरण,
रे रंगरेज़ तू रंग दे मुझको,
यहाँ से रंग, या मुझे रंग दे, वहीं से,
रे रंगरेज़ तू रंग दे, कहीं से ।।
कमर को रंग, जैसे, छलकी गगरिया,
उर,,,उठी हो, जैसे चढ़ती उमिरिया,
अंग-अंग रंग, जैसे, आसमान पर,
घन उमर उठी हो बन, स्वर्ण नगरिया।।
रे रंगरेज़ ! तू रंग दे मुझको,
सांस-सांस रंग, सांस-सांस रख,
तुला बनी हो ज्यों , बाँके बिहरिया,
रे रंगरेज़ ! तू रंग दे मुझको।।
पग- रज ज्यों, गोधुली बिखरी हो,
छन-छन करती नुपूर बजी हो,
फाग के आग से उठती सरगम,
ज्यों मकरंद सी महक उड़ी हो।।
रे रंगरेज़ तू रंग दे मुझको,
खुदा सा रंग , या मुझे रंग दे हमीं से,
रे रंगरेज़ तू रंग दे , कहीं से।।
पलक हो, जैसे बावड़ी वीणा,
कपोल को चूमे, लट का नगीना,
तपती जमीं सा मन को रंग दे,
रोम-रोम तेरी चाहूँ पीना।।
रे रंगरेज़ तू रंग दे मुझको,
बरस-बरस मैं चाहूँ जीना ।। :: बी चंद्रकला ,,आई ए एस।।