कमलनाथ सरकार से खफा होते जा रहे हैं अध्यापक | Khula Khat by Ramesh Patil

Bhopal Samachar
रमेश पाटिल। अभी हाल ही में मध्यप्रदेश में विधानसभा चुनाव सम्पन्न हुए। पुरानी भाजपा सरकार की सत्ता से विदाई हो गई और कांग्रेस की सरकार सत्तारूढ़ हो गई। सरकार तो बदल गई लेकिन अध्यापकों के जीवन में कोई परिवर्तन नहीं आया। अध्यापक पुरानी सरकार के आदेशों का घोर विरोधी रहा है लेकिन सरकार परिवर्तन के बावजूद पुरानी सरकार के आदेश धड़ल्ले से जारी हो रहे हैं। अध्यापको के अनार्थिक मामलो पर भी सरकार की स्थिति स्पष्ट नही रही है। 

स्थानांतरण जैसे संवेदनशील मामले में भी वह खामोश दिखी। वह तो न्यायालय में शरण लेने वाले अध्यापको की मेहरबानी से जनजातिय कार्य विभाग के अध्यापको को जनजातिय कार्य विभाग में आने और इस विभाग से शिक्षा विभाग में स्थानांतरित होकर जाने का अवसर मिला।अध्यापकों के तेवर नई कांग्रेस सरकार के प्रति भी तीखे होते जा रहे हैं। इसके लिए जिम्मेदार भी स्वयं सरकार ही है क्योंकि उसने अपने वचन पत्र में दिए गए वचनों पर एक कदम भी नहीं बढ़ाया है।

वर्तमान सरकार के लघु कार्यकाल में कुछ घटनाएं ऐसी घटित हुई जिससे अध्यापक सरकार से खफा होते जा रहा है। 13 अगस्त को मीडिया पर यह खबर फैली की शिक्षामंत्री वन क्लिक के माध्यम से राज्य शिक्षा सेवा में नियुक्ति के आदेश 14 जनवरी मकर संक्रांति के दिन जारी करने वाले हैं। 14 जनवरी को राज्य शिक्षा सेवा में नियुक्ति के आदेश अधिकारियों द्वारा जारी किए गए लेकिन आदेश जारी करने में शिक्षामंत्री शामिल नहीं हुए कारण रहस्यमयी है। राज्य शिक्षा सेवा के यह वही आदेश है जिसका अध्यापक 29 मई 2018 केबिनेट निर्णय के बाद निरंतर विरोध करते आ रहा था। इस आदेश के विरोध का प्रमुख कारण शिक्षाकर्मी, संविदा शाला शिक्षक नियुक्ति दिनांक से सेवा अवधि की निरंतरता को मान्य नहीं किया जाना था अर्थात नई कैडर के रूप में 1 जुलाई 2018 से नियुक्ति दिया जाना था और इसके पीछे मंशा शायद यह थी कि भूतकालीन सेवा के आर्थिक लाभ और सुविधाओ से वंचित करना चाहती थी सरकार अध्यापको को जो हमे कबुल नही थी। 

राज्य शिक्षा सेवा के आदेश जारी होने का अध्यापकों के मन में तूफान थमा भी नहीं था कि आयुक्त लोक शिक्षण संचनालय द्वारा तीसरी और अंतिम बार राज्य शिक्षा सेवा में नियुक्ति के लिए विकल्प और घोषणापत्र को भरने का आदेश 15 जनवरी को प्रसारित कर दिया। अध्यापकों में असंतोष इसी बात का है कि सरकार तो बदल गई लेकिन सरकार बदलने का एहसास कहीं नहीं हो रहा है। कांग्रेस का वचनपत्र धरा का धरा रह गया है। पुरानी सरकार की मंशानुसार आदेश धड़ाधड़ जारी हो रहे हैं इससे अध्यापक आशंकित है कि सत्ता प्राप्ति होने के बाद कहीं कांग्रेस अपने वचन पत्र को भूल तो नहीं गई है?

उसे यह भी आशंका सता रही है कि स्कूल शिक्षामंत्री को वचन पत्र की जानकारी है कि नहीं? 1994 के नियमों के अधीन शिक्षा विभाग में संविलियन का वचन मध्यप्रदेश कांग्रेस के प्रदेशाध्यक्ष और वर्तमान मुख्यमंत्री कमलनाथ ने अध्यापकों को दिए थे लेकिन सरकार गठन के लगभग एक माह पश्चात भी इस दिशा में ठोस कार्यवाही नहीं किए जाने से अध्यापक बेहद चिंतित हैं और वहां लोकसभा चुनाव आचार संहिता के पहले हर हालात में ठोस परिणाम शिक्षा विभाग में संविलियन की दिशा में चाहता है। 

वर्तमान सरकार को बनाने में छोटे कर्मचारियों और अध्यापकों की महती भूमिका रही है। क्योंकि वह पिछली सरकार द्वारा अध्यापकों को दिए जाने वाले बार-बार धोखे से बहुत परेशान एवं आक्रोशित था। जिसका सीधा फायदा वर्तमान सरकार को हुआ लेकिन वर्तमान सरकार के कार्यकाल में पुरानी सरकार के आदेशों का निरंतर प्रसारित होना बताता है कि अधिकारियों को अध्यापकों के शिक्षा विभाग में संविलियन के निर्देश नहीं मिले हैं? या अधिकारी नई सरकार की मंशानुसार काम करने के इच्छुक नहीं है?

सरकारे आती-जाती रहती है। अध्यापकों ने शिक्षाकर्मी, संविदा शाला शिक्षक के रूप में पहला धोखा कांग्रेस की सरकार से ही खाया था। परिणाम उसे सत्ता से 15 वर्ष का वनवास भुगतना पड़ा था। यह बात अलग है कि मंत्रिमंडल की पहली बैठक में शिक्षाकर्मियों का शिक्षा विभाग में संविलियन किया जाएगा के आश्वासन की सीढ़ी पर चढ़कर भाजपा सरकार सत्तारूढ़ हुई थी लेकिन इस सरकार ने भी इस शोषित कर्मचारियों के नाम परिवर्तन तो बार-बार किए लेकिन मूल विभाग स्कूल शिक्षा विभाग और अधिकारों से वंचित रखकर केवल राजनीतिक लाभ के लिए अध्यापकों का इस्तेमाल किया। जिसमें भाजपा सरकार के साथ कुछ स्वार्थी अध्यापक नेताओं ने भी कदमताल किया। बार-बार धोखे से तंग आकर आक्रोशित अध्यापकों ने सत्ता परिवर्तन में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। वह वक्त है बदलाव के साथ हो गया। 

अध्यापक सोचता था कि यदि कांग्रेस सरकार सत्तारूढ़ हुई तो अपनी पुरानी गलतियों को तत्काल सुधारते हुए वह अध्यापकों का शिक्षा विभाग में संविलियन कर देगी और शोषण से हमेशा हमेशा के लिए मुक्त कर देगी। लेकिन ऐसा होता हुआ अभी तक प्रतीत नहीं हो रहा है। वन क्लिक के माध्यम से शिक्षा मंत्री द्वारा राज्य शिक्षा सेवा के आदेश जारी करने की मीडिया पर खबर अध्यापकों को यह संकेत दे गई की मुख्यमंत्री और शिक्षा मंत्री में तालमेल का अभाव है। इसलिए कांग्रेस सरकार का वचनपत्र के क्रियान्वयन की दिशा में काम तो नहीं हुआ लेकिन पुरानी सरकार के आदेश जरूर धडल्ले प्रसारित हो रहे हैं। पिछली सरकार का पिछलग्गू बना अध्यापक नेतृत्व को वर्तमान सरकार को घेरने का अवसर प्राप्त हो गया है। वह फरवरी माह में आंदोलन की रूपरेखा बनाने लगा है। वचनपत्र के क्रियान्वयन के आसार नजर नहीं आने से संघर्षशील अध्यापक हतोत्साहित महसूस कर रहा है लेकिन यह भी सच है कि अध्यापकों को जिसने भी धोखा दिया उस पर पलटवार करने से वह चुकता नहीं है। इसी प्रकार वर्तमान सरकार की टालमटोल की नीति लोकसभा चुनाव के पूर्व अध्यापको को निर्णायक स्थिति में पहुंचने के लिए बाध्य कर रही है और उसका आक्रोश हमेशा सत्ताधारी दल के लिए महंगा साबित होता रहा है।

यह भी महत्वपूर्ण है कि अध्यापको की समस्याओ पर सरकार अध्यापको के प्रतिनिधिमंडल से सीधे बात कर त्वरित वचनपत्र के क्रियान्वयन के आदेश प्रसारित करे। शिक्षक संघो के नेताओ की मध्यस्थता अध्यापको को बिल्कुल स्वीकार नही। सत्ता परिवर्तन के साथ ही शिक्षक संघ के नेता कुम्भकर्णी नींद से जाग गये है और जबरन टांग अडाने का प्रयास कर रहे है। इस सच को स्वीकार करना होगा कि शिक्षक संघो ने दमदारी से अध्यापको का पक्ष कभी नही लिया। शिक्षक संघो के झांसे में आकर यदि सरकार ने ऊटपटांग निर्णय लिया और अध्यापको का अहित हुआ तो इसके लिए सरकार स्वयं जिम्मेदार होगी। यह बताने की आवश्यकता नही है कि संख्याबल अध्यापको का बहुत बडा है और शिक्षको का बहुत कम और बडा संख्या बल हमेशा निर्णायक स्थिति में होता है चाहे वह समर्थन में या विरोध में।

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