मप्र शासन स्कूल शिक्षा विभाग द्वारा 07.12.2018 को अतिथि शिक्षकों का प्रदेश के शासकीय प्राशा, माशा, हाईस्कूल एवं उमावि शालाओं में नियुक्ति हेतु प्रदाय निर्देशों में देश की संस्कृति की रक्षा करने वाली संस्कृत भाषा के प्रति उदासीनता साफ-साफ दिखाई दे रही है। ऐसा आभास होता हैं कि आजादी के बाद भी अंग्रेजों की गुलामी एवं अंग्रेजी भाषा की मानसिकता की सरकार अभी भी गुलाम हैं।
अफसोस की बात तो यह कि स्नातक अंग्रेजी विषय के अतिथि शिक्षक के आवेदकों की कमी प्रदेश स्तर पर परिलक्षित होने पर स्नातकोत्तर अंग्रेजी विषय के आवेदकों को अतिथि वर्ग-02 पर रखने के निर्देश प्रदाय किये हैं। वहीं गणित विषय के स्नातक न होने के कारण इंजीनियर डिग्रीधारी को प्राथमिकता दी गई हैं। जो वैधानिक रुप से पूर्णतः अनुचित हैं एवं किसी भी स्थिति में स्थायी नियुक्ति के समय इसका समावेश राजपत्र में नही किया जा सकता हैं, जैसे निर्णय लिए गए। लेकिन संस्कृत स्नातकोत्तर उपाधिधारी जिनका स्नातक स्तर पर संस्कृत नही था, उनको संस्कृत अध्यापक वर्ग-02 पर पात्र नही माना गया हैं जो चिन्तनीय विषय हैं।
इस हेतु कई संकुल प्राचार्य, जनप्रतिनिधि, विभिन्न कर्मचारी संगठन के माध्यम से संचालनालय स्तर के अधिकारियों को अवगत भी कराया गया हैं। यदि समयावधि में उचित निर्णय नही लिया गया तो इस संबंध में माननीय शिक्षा मंत्री का ध्यानाकर्षण इस समस्या के हल हेतु करवाया जावेगा।
शासन-प्रशासन द्वारा संस्कृत जैसी महत्वपूर्ण भाषा के विषय में इस प्रकार भेदभाव करना षडयंत्रकारी प्रवृत्ति का घोतक हैं। इस प्रकार के निर्देश संस्कृत के उत्थान के प्रतिकूल होने के कारण छात्रहित एवं जनहित के भी विरुद्ध हैं। ऐसे भेदभाव पूर्ण आदेशों के कारण सम्पूर्ण प्रदेश में संस्कृत अध्ययन करने वाले छात्र-छात्राओं एवं संस्कृत प्रेमियों में रोष व्याप्त हैं। ऐसी दशा में जिस प्रकार अंग्रेजी स्नातकोत्तर को वर्ग-02 (अध्यापक) के पद हेतु योग्य माना गया हैं। उसी तर्ज पर संस्कृत स्नातकोत्तर को मान्य किए जाने की मांग करने वालों में क्षेत्र के राकेश शर्मा, विजय राठौर, लखनसिंह ठाकुर, मोहन भावसार आदि ने की है।। और कहा कि तब ही संस्कृत पढ़ने वाले छात्रो का वास्तविक हित हो सकेगा। जब सरकार स्नातकोत्तर योग्यताधारी लोगो को वर्ग-02 में राहत प्रदान करें।