ग्वालियर। जिला सहकारी केन्द्रीय बैंक से संबद्ध 76 कृषि साख सहकारी समितियों पर हुए घोटाले में चौंकाने वाले तथ्य सामने आ रहे हैं। आदिवासियों के पास न खेती की जमीन है न उन्होंने सहकारी समिति देखी है, वो तो सिर्फ खेतों में सालों से मजदूरी कर रहे हैं, लेकिन उनके ऊपर भी हजारों रुपए का ऋण निकला है। जब कर्मचारी माफी का फार्म भरवाने के लिए आदिवासियों के पास पहुंचे तो कर्जदार होने की जानकारी मिली। यह कारनामा मेहगांव साख सहकारी समिति ने किया है।
बुधवार को पूर्व विधायक बृजेन्द्र तिवारी ने चीनौर में किसान पंचायत आयोजित की, जिसमें भितरवार जनपद के ईटमा गांव के आदिवासियों ने अपनी पीड़ा सुनाई। वहीं दूसरी ओर दोषियों पर FIR कराने के लिए बैंक प्रबंधन व सहकारिता विभाग के अधिकारी बुधवार को दिनभर अपना रिकार्ड खंगालते रहे। देर शाम एसपी को पूरा रिकार्ड दिखाने पहुंचे।
राज्य सरकार ने 2 लाख तक का ऋण माफ करने के लिए जय किसान ऋण मुक्ति योजना लागू की है। ऋणमाफी का प्रमाण पत्र देने के लिए फार्म भरवाए जा रहे हैं। इससे पहले कर्जदारों की सूची पंचायत भवन पर चस्पा की गई। इस सूची के चस्पा होने से जिले में 2006 के बाद से जिला सहकारी बैंक में हुए घोटाले के चौंकाने वाले कारनामे सामने आ रहे हैं। फर्जी ऋण वितरण करने के लिए पूरे नियम-कायदे ताक पर रख दिए। आदिवासियों को कर्जदार बनाकर उनके नाम से भी पैसे निकाल लिए गए। किसानों ने जो पैसा जमा किया, उस राशि का भी गबन कर लिया गया।
सूचियों में तीन तरह की अनियमितताएं, फिर भी वेरिफिकेशन नहीं
- किसान ने समिति से ऋण नहीं लिया, लेकिन ऋणमाफी की सूची में नाम है। एक से डेढ़ लाख तक ऋण उनके नाम बताया गया है।
- किसान समिति में सदस्य है, लेकिन उसका सहकारी बैंक में न बचत खाता है न ही ऋण खाता है। फिर भी कर्जदार है।
- समिति का कर्ज चुकता कर चुके हैं। नो ड्यूज फार्म भी उनके पास हैं, लेकिन ऋण माफी की सूची में नाम है।
- ये तीन तरह की अनियमितताएं सामने आने के बाद भी सूचियों का वेरिफिकेशन नहीं किया जा रहा है। जिससे पता चल सके कि हकीकत में किसान ने कर्ज लिया है या नहीं।
ऐसे हो सकता है किसान का वेरिफिकेशन
-समितियां अगर किसी किसान को ऋण देती हैं तो उससे पहले एक पत्रक भरा जाता है। पत्रक बैंक की ऋण कमेटी के सामने पेश किया जाता है। उस पत्रक में किसानों के नाम होते हैं। उस पत्रक को भी नहीं देखा जा रहा है।
- किसान को ऋण देने से पहले बांड भरा जाता है। उस बांड में किसान की पूरी जानकारी भरी जाती है और उसके दस्तावेज भी लिए जाते हैं। हस्ताक्षर भी होते हैं। बांड से भी वेरिफिकेशन नहीं किया जा रहा है।
- ऋण पत्रक व बांड का मिलान करने के बाद किसान का बयान भी दर्ज किया जा सकता है, लेकिन यह भी कवायद नहीं की जा रही है।
यह शिकायतें पहुंचीं फिर भी कार्रवाई नहीं
- लाल फार्म के भरोसे पूरा काम किया जा रहा है। समिति प्रबंधक व नोडल अधिकारी किसान को गुमराह कर लाल फार्म भरने से रोक रहे हैं।
- जिन किसानों के नाम फर्जी ऋण वितरण किया गया है, उन्हें लालच दिया जा रहा है कि माफी का फार्म भर दें। उसके बदले में पैसा दिया जाएगा।
- जिम्मेदार अधिकारी इस ओर ध्यान नहीं दे रहे हैं। इससे ऋण वितरण घोटाले का पूरा सच सामने नहीं आ पा रहा है।
ऑडिट नहीं होने से किया गया SCAM
- भितरवार व चीनौर क्षेत्र की 10 सहकारी समितियों का ऑडिट 2006 से नहीं किया गया। समिति प्रबंधक, बैंक के कर्मचारी लगातार घोटाला करते रहे। रिकार्ड भी नहीं मिल रहा है। बैंक के पांच कर्मचारियों ने पूरा घोटाला करना सिखाया। संचालक मंडल व बैंक के महाप्रबंधक ने उनका पूरा साथ दिया।
- वैद्यनाथन पैकेज के तहत समितियों को सीए (चार्टर्ड अकाउंटेंट) से ऑडिट कराने का अधिकार दे दिया है। जिले की 66 सोसायटियों ने सीए से ऑडिट कराया। इस कारण घोटाले को छिपा दिया गया। सहकारिता विभाग के ऑडीटरों से सीए के ऑडिट का वेरिफिकेशन नहीं किया गया।
इन आदिवासियों को बनाया कर्जदार
भूरी 12808
कलुआ 10282
राजोबाई 27972
महाराज 26266
मेघा 77975
कलिया 66461
(यह आदिवासी ईटमा गांव के रहने वाले हैं)
इनका कहना है
हर किसान का वेरिफिकेशन नहीं हो सकता है। इसलिए लाल फार्म भरवाया जा रहा है। किसान लाल फार्म पर आपत्ति देता है। उसकी जांच के बाद ही उस ऋण का निराकरण किया जाएगा। किसानों की शिकायतों पर कैंपों का निरीक्षण किया जा रहा है।
अनुभा सूद, उप पंजीयक सहकारी संस्थाएं ग्वालियर