भोपाल। मध्यप्रदेश की कमलनाथ सरकार ताबड़तोड़ फैसले ले रही है। जताया जा रहा है कि सरकार जनहित और न्यायहित में काम कर रही है परंतु सरकारी कर्मचारियों की पदोन्नति के मामले में सरकार उलझ गई है। पूर्व की शिवराज सिंह सरकार के कारण 24 महीने से सरकारी कर्मचारियों के प्रमोशन अटके हुए थे। सरकार बदलने के बाद उम्मीद थी कि इस दिशा में जल्द फैसला होगा पंरतु अब तक नहीं हो पाया है।
गौरतलब है कि बीते 34 माह में प्रदेश में 36 हजार कर्मचारी बगैर पदोन्नति सेवानिवृत्त हो गए हैं। कमलनाथ सरकार ने 17 दिसंबर को कार्यभार संभाला है। सरकार को एक माह हो गया है, लेकिन अब तक कर्मचारियों की पदोन्न्ति पर सरकार का नजरिया स्पष्ट नहीं हुआ है। इससे कर्मचारियों में असंतोष बढ़ना शुरू हो गया है। वे विधि मंत्री और स्थानीय विधायक पीसी शर्मा से मिलकर पदोन्नति शुरू कराने का अनुरोध कर चुके हैं।
उन्हें आश्वासन भी मिला है पर पदोन्नति शुरू होने की संभावना दिखाई नहीं देने से कर्मचारी कांग्रेस सरकार के खिलाफ भी मुखर होने लगे हैं। कर्मचारी चाहते हैं कि लोकसभा चुनाव के लिए आचार संहिता लगने से पहले सरकार फैसला ले, लेकिन वर्तमान में इसके आसार नहीं दिख रहे हैं। वोट बैंक की राजनीति के चलते भाजपा की तरह ही कांग्रेस सरकार भी इस मामले में कुछ भी करने से बच रही है।
34 माह में 36 हजार का हक छिना
प्रदेश में पदोन्नति पर रोक लगे मार्च में तीन साल पूरे हो जाएंगे। यानी 34 माह से पदोन्नति पर रोक है। इस अवधि में करीब 55 हजार अधिकारी-कर्मचारी सेवानिवृत्त हुए हैं। उनमें से 36 हजार को इसी अवधि में पदोन्नति मिलनी थी। उल्लेखनीय है कि 30 अप्रैल 2016 को जबलपुर हाई कोर्ट ने पदोन्नति में आरक्षण मामले में फैसला सुनाते हुए 'मप्र लोक सेवा (पदोन्नति ) अधिनियम 2002" खारिज कर दिया था।
मई 2016 में राज्य सरकार ने इस फैसले के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट में याचिका लगाई थी, जिस पर सुनवाई चल रही है। इस बीच 2006 में आए एम. नागराज प्रकरण में गलत फैसले का तर्क दिया गया, जिसकी सुनवाई कर संविधान पीठ ने फैसला सुना दिया है। अब नए सिरे से युगल पीठ ने इस मामले में सुनवाई शुरू की है।
पहले ही सुना चुके थे व्यथा
कर्मचारी विधानसभा चुनाव से पहले ही कांग्रेस के प्रदेश अध्यक्ष और अब मुख्यमंत्री कमलनाथ को अपनी व्यथा सुने चुके हैं। कानूनी लड़ाई में फंसकर पदोन्न्ति गंवा बैठे दोनों वर्ग के कर्मचारी भी सशर्त पदोन्नति के लिए तैयार हैं। पिछली सरकार ने दोनों पक्षों के इस प्रस्ताव को सुना, पर सहमति नहीं दी। हालांकि पूर्ववर्ती सरकार ने अधिकारियों और कर्मचारियों की सेवानिवृत्ति आयु 62 साल करके इस विरोध को साधने की कोशिश की है।
इनका कहना है
संविधान पीठ ने अपने फैसले में सब साफ कर दिया है। इस हिसाब से जबलपुर हाई कोर्ट का अप्रैल 2016 को आया फैसला सही है। सरकार को उस फैसले को लागू करना चाहिए। यदि दिक्कत हो, तो सशर्त पदोन्नति तो शुरू करें। हमने विधि मंत्री को ज्ञापन सौंपा है।
अजय जैन, संस्थापक सदस्य, सपाक्स
संविधान पीठ फैसला सुना चुकी है। बिहार सरकार इस फैसले के संदर्भ में आदेश जारी कर चुकी है जिससे वहां पदोन्न्ति शुरू हो गई हैं। यहां भी सरकार को ऐसा ही करना चाहिए। यदि ऐसा करने में कोई अड़चन ही है, तो सरकार को सशर्त पदोन्नति देना चाहिए। इसे लेकर हम सीएम से मिलकर उन्हें ज्ञापन सौंप चुके हैं।
विजय श्रवण, प्रवक्ता, अजाक्स