भोपाल। मध्यप्रदेश में भाजपा विधायक दल के नेता का चयन दिल्ली में हो चुका था। राष्ट्रीय अध्यक्ष अमित शाह ने पूर्व सीएम शिवराज सिंह चौहान को साफ इंकार करके वापस लौटा दिया था और नरोत्तम मिश्रा का नाम फाइनल कर दिया था। विधायक दल की बैठक के रोज सुबह तक लोग मिश्रा को बधाईयां दे रहे थे और नरोत्तम मिश्रा भी लोगों का धन्यवाद अदा कर रहे थे, कि तभी अचानक समीकरण बदले और विधायक दल की बैठक आहूत होने से पहले ही गोपाल भार्गव का नाम घोषित कर दिया गया। आइए जानते हैं, पर्दे के पीछे क्या राजनीति हुई और किसने नरोत्तम मिश्रा को टंगड़ी अड़ाकर गिरा दिया।
पूर्व सीएम शिवराज सिंह खुद नेता प्रतिपक्ष बनना चाहते थे। जब उन्हे इंकार किया गया तब उनके बार सिर्फ नरोत्तम मिश्रा और गोपाल भार्गव ही रेस में शेष रह गए थे। अमित शाह ने जब नरोत्तम मिश्रा को लोकसभा चुनाव के लिए उत्तरप्रदेश का सहप्रभारी बनाया तो समझा गया कि नरोत्तम मिश्रा भी रेस से बाहर हो गए लेकिन अचानक दिल्ली से संदेश आया कि नरोत्तम मिश्रा का नाम फाइनल है। गृहमंत्री राजनाथ सिंह भोपाल आकर इसका ऐलान करेंगे। कैलाश विजयवर्गीय भी यही चाहते थे परंतु शिवराज सिंह चौहान किसी भी कीमत पर नरोत्तम मिश्रा को पसंद नहीं कर रहे थे।
कैलाश विजयवर्गीय ने नरोत्तम मिश्रा के साथ मिलकर रणनीति बनाई और विधानसभा अध्यक्ष का चुनाव लड़ने का निर्णय लिया। अमित शाह को सहमत कर लिया गया। सबकुछ तय रणनीति के अनुसार ही चल रहा था कि तभी अचानक दिल्ली से मायूस होकर लौटे शिवराज सिंह चौहान फिर से एक्टिव हुए। पहले उन्होंने नेता प्रतिपक्ष के लिए राजेन्द्र शुक्ला का नाम बढ़ाया परंतु जब बाजी कमजोर होती नजर आई तो उन्होंने नरोत्तम मिश्रा को रोकने के लिए गोपाल भार्गव का नाम बढ़ा दिया। गोपाल भार्गव पहले से ही संगठन की पसंद थे। पलड़ा भारी हो गया और गुटबाजी के खेल में एक बार फिर शिवराज सिंह चौहान, कैलाश विजयवर्गीय और नरोत्तम मिश्रा की जोड़ी पर भारी पड़ गए। राष्ट्रीय उपाध्यक्ष व प्रदेश प्रभारी विनय सहस्रबुद्धे भी कैलाश विजयवर्गीय और नरोत्तम मिश्रा को सपोर्ट कर रहे थे परंतु कुछ खास कर नहीं पाए। याद दिला दें कि शिवराज सिंह ने नरोत्तम मिश्रा को प्रदेश अध्यक्ष भी नहीं बनने दिया था।