भोपाल। शिवराज सिंह सरकार में कहा जाता था कि व्यापमं घोटाले का वोटबैंक पर असर नहीं पढ़ेगा परंतु पड़ गया। नोटबंदी को देशभक्ति से जोड़कर बताया गया। लोगों ने सहर्ष स्वीकार किया परंतु इसके 6 महीने बाद बेरोजगारी में बेतहाशा वृद्धि दर्ज हो गई। आज हालात यह है कि दिसम्बर 2016 से दिसम्बर 2018 तक प्रदेश की बेरोजगारी दर में दोगुना से ज्यादा की वृद्धि दर्ज की गई है और सरकारी नौकरियां व रोजगार मप्र का बड़ा मुद्दा बन गया है।
शिवराज सिंह सरकार ने निवेश के नाम पर कई ईवेंट किए। विज्ञापन जारी कर बताया कि वो बेरोजगारी पूरी तरह से खत्म करने जा रहे हैं परंतु जमीनी हकीकत कुछ और ही सामने आ रही है। दूसरी ओर बीते दो साल में प्रदेश में बेरोजगारी दर में दोगुना से ज्यादा वृद्धि दर्ज की गई है। सेंटर फाॅर मॉनिटरिंग इंडियन इकॉनामी (सीएमआईई) की दिसंबर 2018 की ताजा रिपोर्ट के मुताबिक 2016 में प्रदेश में बेरोजगारी दर 4.1% थी, जो दिसंबर 2018 में बढ़कर 9.8% जा पहुंची है। मौजूदा वक्त में प्रदेश में बेरोजगारी दर राष्ट्रीय औसत से भी लगभग 2.4% अधिक है। सीएमआईई के मुताबिक दिसंबर 2018 में देश में औसत बेरोजगारी दर 7.4% रही है। रोजगार दिला पाने में पिछली सरकार की नाकामी के कारण मप्र देश के उन छह राज्यों में शामिल हो गया है, जहां बेरोजगारी दर में सबसे ज्यादा बढ़ोतरी हुई है।
एक वजह नोटबंदी भी
बेरोजगारी दर बढ़ने का एक कारण नोटबंदी को भी माना जा रहा है। नोटबंदी के दौरान तो रोजगार में कमी नहीं आई, लेकिन इसके छह माह बाद बेरोजगारी दर बढ़ती चली गई। वहीं नोटबंदी के बावजूद पिछले 3 साल में आंध्रप्रदेश, केरल और उप्र जैसे राज्यों ने अपनी स्थिति में 7 से 13% तक सुधार किया है।