भोपाल। भारतीय जनता पार्टी पशोपेश में है। नेता प्रतिपक्ष की रेस से शिवराज सिंह का नाम बाहर कर दिया गया है। शिवराज सिंह ने खेल बिगाड़ने के लिए अपने गुट के विधायक एवं पूर्व मंत्री राजेन्द्र शुक्ला का नाम आगे बढ़ा दिया है लेकिन पार्टी के नेता अब भी 2 ही नामों के बीच उलझे हुए हैं। दरअसल, दोनों की विशेषताएं ही मामले को पेचीदा बना रहीं हैं। फैसला 07 जनवरी को भाजपा कार्यालय में शाम 5 बजे सुनाया जाना है। इससे पहले सारा नापतौल कर लेना है। केंद्रीय गृह मंत्री राजनाथ सिंह, राष्ट्रीय उपाध्यक्ष एवं प्रदेश प्रभारी डॉ. विनय सहस्रबुद्धे दिल्ली का फैसला लेकर आएंगे। भोपाल में लोकतांत्रिक औपचारिकता पूरी की जाएगी।
नरोत्तम मिश्रा: कुर्सी खींचने में माहिर
नेता प्रतिपक्ष की रेस में नरोत्तम मिश्रा का नाम इसलिए सबसे आगे है क्योंकि वो फ्लोर मैनेजमेंट के माहिर खिलाड़ी हैं। सदन में जिस तरह का संख्या संतुलन है। सत्ता सुंदरी कभी भी अपना वर बदल सकती है। उसे रिझाने के लिए नरोत्तम मिश्रा मिस्टर परफेक्ट हैं। उनमें वो आकर्षण है कि 5-10 विधायकों को बिना शोर मचाए शिफ्ट कर सकते हैं। भाजपा सूत्रों की मानें तो अमित शाह का पहला टारगेट लोकसभा में 26 सीटें और दूसरा टारगेट मध्यप्रदेश में सत्ता परिवर्तन है।
गोपाल भार्गव: अखाड़े के पहलवान
रहली विधायक एवं पूर्व मंत्री गोपाल भार्गव भाजपा के सबसे वरिष्ठ विधायक हैं। गोपाल भार्गव के पास विपक्ष में काम करने का अच्छा अनुभव है। दिग्विजय सिंह सरकार में गोपाल भार्गव ने सरकार को कई बार परेशानी में डाल दिया था। विधानसभा में गोपाल भार्गव के नाम की दहशत सत्तारूढ़ दल के मंत्रियों मेें साफ नजर आती थी। इस नजरिए से देखा जाए तो गोपाल भार्गव इस अखाड़े के सबसे दमदार पहलवान हैं। वो सदन के भीतर अपने पराक्रम से कमलनाथ सरकार को चित तक सकते हैं। गोपाल भार्गव के साथ एक बोनस पाइंट यह भी है कि वो मध्यप्रदेश के प्रतिष्ठित ब्राह्मण नेताओं में से एक हैं और फिलहाल सबसे प्रभावशाली भी हैं।