भोपाल। शिवराज सिंह चौहान अब पूर्व हो गए हैं। अमित शाह ने उन्हे राष्ट्रीय कार्यकारिणी में उपाध्यक्ष बनाकर बुला लिया है। यानी सम्मान के साथ लूपलाइन में लगा दिया है लेकिन शिवराज सिंह बार बार मध्यप्रदेश में अपनी रुचि और सक्रियता दिखा रहे हैं। लोकसभा चुनाव को लेकर शिवराज सिंह का नाम चर्चाओं में हैं। सुना है कि वो लड़ना ही नहीं चाहते, लड़े तो विदिशा से ही लड़ेंगे। पार्टी का एक वर्ग उन्हे छिंदवाड़ा से लड़ाना चाहता है परंतु भाजपा के जमीनी कार्यकर्ता चाहते हैं कि शिवराज सिंह चौहान इस बार ज्योतिरादित्य सिंधिया से सीधा मुकाबला करें।
शिवराज सिंह क्या चाहते हैं
पूर्व मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान मध्यप्रदेश में सक्रियता रहते हुए कमलनाथ सरकार के अपने आप गिरने का इंतजार करना चाहते हैं। लोग सिद्धांत कहें या कमलनाथ से दोस्ती, लेकिन शिवराज सिंह चौहान कमलनाथ को मुकाबले में पछाड़ना नहीं चाहते, बस यह चाहते हैं कि यदि कमलनाथ राजनीतिक हादसे का शिकार हुए तो कुर्सी के सबसे नजदीक वो खड़े रहें। विदिशा लोकसभा सीट खाली हो गई है। शिवराज सिंह ने इस सीट पर अपनी पत्नी श्रीमती साधना सिंह के लिए तैयारियां शुरू कर दीं थीं। अब कहा जा रहा है कि पार्टी शिवराज सिंह को भी लोकसभा चुनाव लड़ाना चाहती है।
ज्योतिरादित्य सिंधिया के विरुद्ध शिवराज उतारकर क्या फायदा होगा
सबसे बड़ा सवाल यह है कि लोकसभा चुनाव में ज्योतिरादित्य सिंधिया के विरुद्ध शिवराज सिंह चौहान को उतारकर क्या फायदा होगा। पार्टी में दलील दी जा रही है कि यह मौजूद विकल्पों में सबसे ज्यादा फायदेमंद होगा।
ज्योतिरादित्य सिंधिया को उनकी ही सीट पर बांध दिया जाएगा। इससे भाजपा को बाकी सीटें जीतने में आसानी होगी।
शिवराज सिंह चौहान का सप्लिमेंट्री एग्जाम हो जाएगा। यदि पास हो गए तो मध्यप्रदेश, नहीं हुए तो दिल्ली।
यह पता चल जाएगा कि 'टाइगर' स्वस्थ है या शक्तिहीन हो गया है।
शिवराज सिंह वैसे भी 'माफ करो महाराज' पर काफी काम कर चुके हैं। यदि वो जीत गए तो यह इतिहास होगा।
ज्योतिरादित्य सिंधिया के सीट पर फंस जाने से कांग्रेस को भारी नुक्सान होगा।
ज्योतिरादित्य सिंधिया के अलावा कांग्रेस के पास कोई स्टार प्रचारक ही नहीं है।
यह भी पता चल जाएगा कि मध्यप्रदेश में कांग्रेस को ज्योतिरादित्य सिंधिया कितना फायदा मिलता है कितना नहीं।
ज्योतिरादित्य सिंधिया को यदि खुद पर भरोसा है तो यह सीट गुना शिवपुरी या विदिशा कोई भी हो सकती है।
एक तरह से दोनों नेताओं की नाप-तौल हो जाएगी और चुनाव भी थोड़ा रंगीला हो जाएगा।