भोपाल। मध्यप्रदेश के सरकारी कॉलेजों में पढ़ा रहे नेट, स्लेट, पीएचडी धारी अतिथि विद्वानों का वर्तमान और भविष्य दोनों अंधकार में आ गए हैं। पिछले 6 माह से उन्हे वेतन नहीं दिया गया है। इधर मध्यप्रदेश लोक सेवा आयोग ने सहायक प्राध्यापक भर्ती प्रक्रिया के दौरान 20 से ज्यादा बार नियमों में संशोधन किया जिससे 90% अतिथि विद्वान चयन प्रक्रिया से बाहर हो गए। अब वो कमलनाथ सरकार से न्याय की गुहार लगा रहे हैं।
उच्च शिक्षा विभाग प्रदेश ने सरकारी कॉलेजों में यूजीसी के नियमों के तहत पीएचडी, नेट, स्लेट, एमफिल डिग्रीधारी अतिथि विद्वानों की सेवाएं लेता है। वर्ष 2018 में भाजपा की शिवराज सिंह सरकार ने 3400 पदों पर तीन अलग सूचियों के अधार पर चयन प्रक्रिया के लिए विज्ञप्ति जारी की थी लेकिन यह संशोधनों के कारण विवादों में आ गई। अतिथि विद्वानों का आरोप है कि परीक्षा के बाद चयनित अभ्यर्थियों के सत्यापन उपरांत भर्ती प्रक्रिया वाली साइट पुन: खोली गई। फिर आवेदकों के अंकों एवं अन्य ऑनलाइन दस्तावेजों में संशोधन किए गए। रोस्टर और इंटरव्यू में हुई अनियमितताओं के खिलाफ अतििथ विद्वानों ने न्यायालय की शरण ली है। इस कारण चयनित अभ्यर्थियों के दस्तावेज वेरीफिकेशन के बाद चयन प्रक्रिया को फिलहाल रोक दिया गया है।
नियमानुसार कार्रवाई होगी
अतिथि विद्वानों की समस्याएं संज्ञान में हैं। उन्हें वेतन क्यों नहीं मिला? इस बारे में पता करवाते हैं। उनकी अन्य मांगों के संबंध में भी नियमानुसार कार्रवाई की जाएगी।
जीतू पटवारी, उच्च शिक्षा मंत्री
चहेतों को लाभ देने हमारा हक छीना
अफसरों ने चहेतों को लाभ पहुंचाने के लिए अतिथि विद्वानों को दरकिनार कर दिया। उन्होंने एमपी पीएससी के विज्ञापन में करीब 20 संशोधन कर अतिथि शिक्षकों का हक छीना है। हमारी नौकरी खतरे में है, हम इस अन्याय के खिलाफ आवाज उठा रहे हैं। देवराज सिंह, अतिथि विद्वान