उपदेश अवस्थी। मेरी नजर से देखें तो 'मीसाबंदी पेंशन योजना' शिवराज सिंह सरकार का एक सामूहिक सहकारी घोटाला है। चंद गिने हुए 'क्रांतिकारियों' के त्याग को पुरस्कृत करने के नाम पर बहुत सारे डरपोक और मौका परस्त नेताओं को पेंशन दी गई है। सरकार ने परिभाषित ही नहीं किया कि 'लोकतंत्र सेनानी' से तात्पर्य क्या है। आइए इस मामले को बिन्दुवार समझते हैं।
भारत की तत्कालीन प्रधानमंत्री श्रीमती इंदिरा गांधी ने 25 जून 1975 को देश में आपातकाल घोषित कर दिया जो 21 मार्च 1977 तक का 21 महीने की अवधि तक चला।
बहुत सारे लोगों ने इंदिरा गांधी के इस कदम का विरोध किया।
नेताओं ने विरोध किया। समर्थक उनके पीछे थे। समर्थकों को पता ही नहीं था कि वो क्या कर रहे हैं। बस नेता को समर्थन कर रहे थे।
पुलिस ने विरोध करने वाले नेताओं और उनके समर्थकों की धरपकड़ शुरू कर दी।
जितने भी हाथ लगे सभी को गिरफ्तार कर आंतरिक सुरक्षा व्यवस्था अधिनियम 1971 जिसे 'मीसा' कहा गया, के तहत जेल भेज दिया गया।
इस दौरान कुछ चोर, उच्चके, सटोरिए भी 'मीसा' के तहत जेल भेज दिए गए।
1 दिन या 1 सप्ताह बाद पता चला कि मीसा में गिरफ्तारी गलत हो गई तो उसे रिहा कर दिया गया।
जो नेता इंदिरा गांधी के खिलाफ आंदोलन करते पकड़े गए थे, उनमें से ज्यादातर 1 सप्ताह से लेकर 1 माह के भीतर टूट गए।
जेल में बंद कई नेताओं ने माफीनामा लिखा। इंदिरा गांधी में अपनी आस्था जताई ताकि वो जेल से रिहा हो सकें। ऐसे लोगों को रिहा कर दिया गया।
माफीनामा लिखकर रिहाई पाने वालों की बड़ी संख्या है।
जो लोग आपातकाल खत्म होने तक जेल में रहे, उन्हे मीसाबंदी कहा गया।
शिवराज सिंह सरकार ने पहले मीसाबंदियों को पेंशन देने का ऐलान किया। (सही कदम था)
सीएम शिवराज सिंह ने ढील बरतते हुए माफीनामा लिखकर रिहा होने वाले डरपोक नेताओं को भी मीसाबंदी की मान्यता दी और पेंशन देना शुरू कर दिया। (सही कदम में मिलावट हो गई)
सीएम शिवराज सिंह ने सिर्फ 1 दिन मीसा एक्ट के तहत जेल जाने वालों को भी पेंशन देने का ऐलान कर दिया। (यह पूरी तरह से घोटाला है)
सरकारी खजाने में रखा पैसा, शिवराज सिंह के फार्म हाउस की कमाई नहीं है जिसे वो जहां चाहें बांट दें। ये करदाताओं का पैसा है जो गरीबों के लिए खर्च किया जाना है।
कमलनाथ सरकार ने मीसाबंदी पेंशन बंद कर दी।
भाजपा नेता विधवा विलाप कर रहे हैं।
सवाल यह है कि जो मीसाबंदी थे ही नहीं, उन्हें मीसाबंदी पेंशन कैसी।
असली मीसाबंदी गेंहू में घुन की तरह पिस गए।
मीसाबंदियों का गुनाह था कि उन्होंने मीसाबंदी पेंशन के लिए अयोग्य नेताओं को हितग्राही बन जाने दिया।
यदि वो 'मीसाबंदी पेंशन योजना' में मिलावट होने से रोक लेते तो कमलनाथ सरकार भी इसे बंद नहीं कर पाती।