भोपाल। गुना-शिवपुरी के सांसद ज्योतिरादित्य सिंधिया को कांग्रेस का महासचिव बनाया गया, इससे उनका कद बढ़ गया। उन्हे पश्चिम उत्तरप्रदेश के 40 जिले दिए गए। यह भी बड़ी बात है। उनका पद प्रियंका गांधी के समकक्ष हो गया लेकिन उनके प्रभार में झांसी भी आ गई है। अब इसे लेकर बड़े सवाल खड़े हो रहे हैं। सिंधिया राजवंश के लोग आज तक कभी झांसी नहीं गए, सवाल यह है कि क्या ज्योतिरादित्य सिंधिया झांसी में चुनावी रैलियां कर पाएंगे।
झांसी की सिंधिया से सदियों पुरानी दुश्मनी है
करीब 160 साल से ज्यादा हो गए लेकिन झांसी में वो कहानियां आज भी उतनी ही ताजा हैं, जितनी आजादी के वक्त 1947 में थीं। झांसी के लोग अपनी रानी लक्ष्मीबाई पर अभिमान करते हैं और सिंधिया राजघराने से नफरत करते हैं। उनका कहना है कि यदि ग्वालियर के सिंधिया राजा गद्दारी ना करते तो महारानी लक्ष्मीबाई ने 1857 में ही अंग्रेजों को खदेड़ दिया होता। हालात यह हैं कि झांसी के आम नागरिक 1857 के प्रसंग के कारण पूरे ग्वालियर से ही नफरत करते हैं। झांसी के किले में मौजदू गाइड एक प्रसंग सुनाते हुए कहते हैं कि 'रानी ने एड़ लगाई लेकिन घोड़े ने नाला पार नहीं किया क्योंंकि वो घोड़ा ग्वालियर का था।'
ज्योतिरादित्य सिंधिया के लिए सबसे बड़ी चुनौती और अवसर भी
झांसी, ज्योतिरादित्य सिंधिया के सामने सबसे बड़ी चुनौती है और अवसर भी। इतिहास के पन्ने फिर से सुर्ख होंगे इसमें कोई 2 राय नहीं है परंतु देखना होगा कि ज्योतिरादित्य सिंधिया इन हालातों का सामना कैसे करेंगे। एक बड़ा अवसर यह है कि यदि उन्होंने झांसी का दिल जीत लिया तो अपने पूर्वजों के माथे पर लगा कलंक भी मिटा पाएंगे। अब देखना यह है कि सिंधिया झांसी के लिए क्या प्लान बनाएंगे और कब जाएंगे।