अतिथि विद्वानों की याचिका SC में भी खारिज: ASSISTANT PROFESSOR RECRUITMENT

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भोपाल। असिस्टेंट प्रोफेसर भर्ती परीक्षा पर रोक लगाने लिए अतिथि विद्वानों द्वारा दायर याचिका हाईकोर्ट पिछले साल जून में निरस्त कर चुका है। अतिथि विद्वानों ने साक्षात्कार नहीं होने एवं रोस्टर प्रक्रिया सहित वरीयता देने जैसी मांगाें को लेकर हाईकोर्ट में आधा दर्जन याचिकाएं लगाई थीं। जबलपुर हाईकोर्ट के चीफ जस्टिस हेमंत गुप्ता और अखिलेश कुमार श्रीवास्तव की बैंच ने इन याचिकाओं काे निरस्त कर दिया था। यही नहीं इसके बाद सुप्रीम कोर्ट ने भी पहली सुनवाई में ही इस मामले पर सुनने से इनकार कर दिया। 

हाईकोर्ट ने कहा- राज्य सरकार ने मप्र शैक्षणिक सेवा (महाविद्यालयीन शाखा) भर्ती नियम 1990 के तहत ही चयन प्रक्रिया में केवल एक बार ही इंटरव्यू को हटाया है। यही नहीं कोर्ट ने रोस्टर प्रक्रिया में लगाई गई याचिका को भी निरस्त कर दिया। हाईकोर्ट ने संविधान के अनुच्छेद 14 का हवाला देते हुए अतिथि विद्वानों को नियुक्ति में अनुभव के आधार पर वरीयता देने की मांग को भी खारिज कर दिया है। 

27 साल बाद हुई EXAM, RESULT के चार माह बाद भी नियुक्ति पर संशय 

मप्र लोक सेवा आयोग ने लगभग 27 साल बाद दिसंबर 2017 में असिस्टेंट प्रोफेसर की भर्ती के लिए विज्ञापन निकाला था। इसके बाद विज्ञापन में एक दर्जन संशोधन किए गए। परीक्षा के प्रावधानों में परिवर्तन के लिए कई उम्मीदवारों ने हाईकोर्ट और सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा भी खटखटाया। तमाम विवादों के बीच जून-जुलाई में परीक्षा हुई। अगस्त में पीएससी ने इसका रिजल्ट जारी कर सभी चयनित उम्मीदवारों की सूची एवं उनसे संबंधित दस्तावेज शिक्षा विभाग को सौंप दिए। 

शिक्षा विभाग ने सितंबर में चयनित उम्मीदवारों के दस्तावेजों का सत्यापन किया। फिर शिक्षा विभाग ने दो माह में विभागीय स्तर पर इन दस्तावेजों का चार स्तर पर जांचा। इस लंबी प्रक्रिया के बाद चयनित प्राध्यापक नियुक्ति की उम्मीद थी, लेकिन इस मामले में लगातार आ रही भ्रामक खबरों और अतिथि विद्वानों द्वारा उठाई जा रही जांच की मांग के बाद नियुक्ति को लेकर एक बार फिर से संशय की स्थ्ति की बन गई है। 

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