हिंदू धर्म में एकादशी का व्रत महत्वपूर्ण स्थान रखता है। प्रत्येक वर्ष चौबीस एकादशियां होती हैं। जब अधिकमास या मलमास आता है तब इनकी संख्या बढ़कर 26 हो जाती है। पद्मपुराण में एकादशी का बहुत ही महात्मय बताया गया है एवं उसकी विधि विधान का भी उल्लेख किया गया है। माघ मास के कृष्ण पक्ष की एकादशी को षटतिला व्रत किया जाता है। इस बार 31 जनवरी को गुरुवार के दिन यह एकादशी मनाई जाएगी।
षटतिला एकादशी पर तिल के द्वारा भगवान विष्णु की पूजा अर्चना की जाती है। षटतिला एकादशी पर तिल का इस्तेमाल स्नान, प्रसाद, भोजन, दान, तर्पण आदि सभी चीजों में किया जाता है। इस दिन व्यक्ति को सुबह स्नान करके भगवान विष्णु की तिलों से पूजा करनी चाहिए।भगवान विष्णु को पीले फल, फूल, वस्त्र अर्पण करने चाहिए। मान्यता है कि इस दिन तिल का प्रयोग करने से व्यक्ति को पुण्य की प्राप्ति होती है और मन की इच्छा भी पूरी होती हैं। कहा जाता है तिल में महा लक्ष्मी का वास होता है, इसलिए बच्चों की पढ़ाई, ज्ञान और धन में लाभ होता है।
षठतिला एकादशी की कथा
नारद मुनि त्रिलोक भ्रमण करते हुए भगवान विष्णु के धाम वैकुण्ठ पहुंचे। वहां पहुंच कर उन्होंने विष्णु भगवान को प्रणाम करके उनसे प्रश्न किया कि प्रभु षट्तिला एकादशी की क्या कथा है और इस एकादशी को करने से कैसा पुण्य मिलता है। तब लक्ष्मीपति भगवान विष्णु ने कहा प्राचीन काल में पृथ्वी पर एक ब्राह्मणी रहती थी। वह मुझमें बहुत ही श्रद्धा एवं भक्ति रखती थी। यह स्त्री मेरे निमित्त सभी व्रत रखती थी।
परंतु यह स्त्री कभी ब्राह्मण एवं देवताओं के निमित्त अन्न दान नहीं करती थी। अत: मैंने सोचा कि यह स्त्री बैकुण्ड में रहकर भी अतृप्त रहेगी अत: मैं स्वयं एक दिन भिक्षा लेने पहुंच गया। उसने एक मिट्टी का पिण्ड उठाकर मेरे हाथों पर रख दिया। मैं वह पिण्ड लेकर अपने धाम लौट आया। कुछ दिनों पश्चात वह स्त्री भी देह त्याग कर मेरे लोक में आ गई।
यहां उसे एक कुटिया और आम का पेड़ मिला। खाली कुटिया को देखकर वह स्त्री घबराकर मेरे समीप आई और बोली मैं तो धर्मपरायण हूं फिर मुझे खाली कुटिया क्यों मिली? तब मैंने उसे बताया कि यह अन्नदान नहीं करने तथा मुझे मिट्टी का पिण्ड देने से हुआ है। मैंने फिर उस स्त्री से बताया कि जब देव कन्याएं आपसे मिलने आएं तब आप अपना द्वार तभी खोलना जब वे आपको षट्तिला एकादशी के व्रत का विधान बताएं।
स्त्री ने ऐसा ही किया और जिन विधियों को देवकन्या ने कहा था उस विधि से ब्रह्मणी ने षट्तिला एकादशी का व्रत किया। व्रत के प्रभाव से उसकी कुटिया अन्न धन से भर गई। इसलिए हे नारद जो व्यक्ति इस एकादशी का व्रत करता है और तिल एवं अन्न दान करता है उसे मुक्ति और वैभव की प्राप्ति होती है।
षठतिला एकादशी का फल
इस व्रत में तिल का छ: रूप में दान करना उत्तम फलदायी होता है। कहते हैं कि जो व्यक्ति जितने रूपों में तिल का दान करता है उसे उतने हजार वर्ष स्वर्ग में स्थान प्राप्त होता है। ऋषिवर ने जिन 6 प्रकार के तिल दान की बात कही है वह इस प्रकार हैं 1. तिल मिश्रित जल से स्नान 2. तिल का उबटन 3. तिल का तिलक 4. तिल मिश्रित जल का सेवन 5. तिल का भोजन 6. तिल से हवन।
इन चीजों का स्वयं भी प्रयोग करें और किसी श्रेष्ठ ब्राह्मण को बुलाकर उन्हें भी इन चीजों का दान दें। इस प्रकार जो षट्तिला एकादशी का व्रत रखते हैं, भगवान उनको अज्ञानता पूर्वक किए गए सभी अपराधों से मुक्त कर देते हैं और पुण्य दान देकर स्वर्ग में स्थान प्रदान करते हैं।