भोपाल। अध्यापक संघर्ष समिति मप्र की ओर से जारी प्रेस रिलीज में कमलनाथ सरकार को चेतावनी दी गई है कि यदि लोकसभा चुनाव की आचार संहिता लागू होने से पहले अध्यापकों का शिक्षा विभाग में संविलियन नहीं हुआ तो अध्यापकों का सब्र टूट जाएगा। अध्यापक संघर्ष समिति मप्र ने अपने रिलीज में लिखा है कि: शिक्षाकर्मियों, संविदा शाला शिक्षकों से यही वादा करके भारतीय जनता पार्टी ने मध्यप्रदेश में 2003 में सत्ता संभाली थी। लेकिन अपने तीसरे कार्यकाल के उत्तरार्ध में भी अध्यापकों को लगने लगा की शिवराज सिंह चौहान की घोषणा के बोझ तले उसका सपना चकनाचूर हो रहा है। तब अध्यापकों ने तात्कालिक मध्यप्रदेश कांग्रेस कमेटी के अध्यक्ष कमलनाथ का हाथ थामा।
भारतीय जनता पार्टी की सरकार से नाउम्मीद हो चुके अध्यापकों ने सत्ता परिवर्तन में सहभागिता का मन बनाया। दूसरी ओंर सत्ता का वनवास भोग रही कांग्रेस को भी सत्ता में वापसी के लिए बहुत बड़ी संख्या वाले अध्यापक संवर्ग की जरूरत महसूस हुई। अध्यापक संघर्ष समिति मध्यप्रदेश ने 24 सितंबर 2017 को छिंदवाड़ा की रानी कोठी लाॅन में "सीएम वादा निभाओ सम्मेलन" का आयोजन किया और उसमें मुख्य अतिथि के रूप में कमलनाथ, अध्यक्ष मध्यप्रदेश कांग्रेस कमेटी को आमंत्रित किया। यह सम्मेलन एक प्रकार से सत्ता को चुनौती था कि यदि समय रहते अध्यापकों की मांग को नहीं माना गया तो अध्यापक विपक्ष का दामन थाम सकता है। इस सम्मेलन में कमलनाथ ने शिरकत कर अपने उद्बोधन में कहां की केवल 14 महीने रुकिए आपकी हर मांग पूरी की जाएगी।
इस सम्मेलन के पश्चात अध्यापकों के मंच पर कमलनाथ कि सहभागिता बड़ी तथा अध्यापक भी निरंतर उनके संपर्क में रहने लगा। अध्यापकों के बदले तेवर देखकर सत्ता पक्ष में चिंता बढ़ी और चौथी बार सत्ता पर काबिज होने की लालसा में मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने 21 जनवरी 2018 को आंदोलनरत अध्यापकों को अपने आवास पर बुलाकर "शिक्षा विभाग में संविलियन" और "एक विभाग, एक कैडर" की घोषणा कर दी।
अध्यापक खुश था कि बरसों पुराना उसका सपना साकार होने जा रहा है लेकिन अध्यापकों के सपनों पर वज्रपात तब हुआ जब मंत्रिमंडल के निर्णय के बाद राजपत्र का प्रकाशन हुआ। राजपत्र को पढ़कर अध्यापकों के होश उड़ गए। अध्यापको को लगा एक बार उनके साथ छल की पुनरावृत्ति की गई। राजपत्र में "राज्य स्कूल शिक्षा सेवा" और एक "नवीन कैडर" की बात की गई जो कि अध्यापकों की कभी मांग ही नही थी। अध्यापकों में मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान के विरुद्ध पुनः आक्रोश भड़का। अध्यापक संघर्ष समिति मध्यप्रदेश जो कि राज्य स्कूल शिक्षा सेवा और नवीन कैडर से सहमत नही थी इसका प्रदेशव्यापी सीधा विरोध करना प्रारंभ कर दिया।
मध्यप्रदेश कांग्रेस कमेटी के अध्यक्ष कमलनाथ से निरन्तर संपर्क बनाकर कांग्रेस के चुनावी वचन पत्र में अध्यापकों की मांग को शामिल करने में सफल हुई। कांग्रेस ने विधानसभा चुनाव के वचन पत्र के द्वारा अध्यापकों को वचन दिया कि सत्ता में आते ही हम अध्यापकों का शिक्षा विभाग में 1994 के नियमों के अधीन संविलियन करेंगे। सहायक शिक्षक, शिक्षक और व्याख्याता पदनाम समान सेवाशर्तो, सुविधाओ के साथ देंगे। सेवारत पति-पत्नि का निकटवर्ती स्थानों पर समायोजन करेंगे। बंधन मुक्त स्थानांतरण नीति लागू करेंगे। पुरानी पेंशन बहाली पर विचार करेंगे आदि।
सत्ता परिवर्तन को लगभग 2 महीने होते आ रहे हैं लेकिन अध्यापक पुरानी सरकार और नई सरकार में अंतर महसूस नहीं कर पा रहा है। मुख्यमंत्री कमलनाथ को अपनी सरकार को स्थायित्व देने में ही एक माह से अधिक का समय निकल गया। मुख्यमंत्री के बीच में विदेश दौरे में भी कुछ समय निकल गया। अध्यापक संघर्ष समिति मध्यप्रदेश, जो कि समस्त अध्यापक संघों के संघर्षशील लोगों का एक मंच है' को उम्मीद थी की मुख्यमंत्री कमलनाथ अध्यापक प्रतिनिधियों से सीधी वार्ता कर शिक्षा विभाग में संविलियन का आदेश करेंगे लेकिन घटनाएं इसके विपरीत होते चली गई।
मुख्यमंत्री कमलनाथ अध्यापक प्रतिनिधियों से सीधी वार्ता का समय अभी तक नहीं निकाल पाए। ऊपर से आयुक्त लोक शिक्षण संचनालय द्वारा राज्य स्कूल शिक्षा सेवा के आदेश जारी कर दिए गए। जिसका की अध्यापक घोर विरोधी था। ऊपर से आयुक्त लोक शिक्षण संचनालय द्वारा जिन अध्यापकों ने राज्य स्कूल शिक्षा सेवा को स्वीकार नहीं किया था उन अध्यापकों के लिए भी 30 जनवरी 2018 तक स्वीकार करने हेतु आदेश कर दिए गए। मध्यप्रदेश का अध्यापक लोक शिक्षण संचनालय के इन आदेशों से भौचक्का रह गया। वह अपने आप को ठगा महसूस करने लगा। अध्यापकों में संदेश गया की सरकार पर अभी भी अधिकारी वर्ग प्रभावी है या तो अधिकारी वर्ग को सरकार ने वचन पत्र क्रियान्वयन के आदेश नहीं दिए हैं।
जिस तेजी से अध्यापक मुख्यमंत्री कमलनाथ की ओर आकर्षित हुआ था उसी तेजी से उसकी नाराजगी उनकी सरकार से बढ़ रही है। यह सर्वविदित है कि अध्यापकों की नाराजगी सत्तापक्ष के लिए कभी भी शुभ संकेत नहीं रही है। अध्यापकों की नाराजगी एक बड़ा कारण और भी है कांग्रेस समर्पित मान्यता प्राप्त शिक्षक संघो द्वारा अध्यापकों के मामले में जबरन हस्तक्षेप करना। क्योंकि अध्यापक मानता है कि कांग्रेस जब सत्ता से बाहर थी तब इन संघों ने ना कभी संघर्ष किया और ना कभी अध्यापक हित की बात पुरजोर तरीके से उठाई लेकिन सत्ता परिवर्तन होते ही ये सरकार के चहेते मुखौटे बन गए और कांग्रेस को सत्ता के नजदीक पहुंचाने वाला अध्यापक आज भी उपेक्षित ही है। शिक्षा विभाग में संविलियन का आदेश लोकसभा चुनाव आचार संहिता के पहले नहीं हुआ तो अध्यापकों के सब्र का बांध टूट जाएगा।
2•40 लाख अध्यापक उसका परिवार और प्रभाव क्षेत्र बहुत बड़े वोट-बैंक का निर्माण करता है। लोकसभा चुनाव भी नजदीक है। अहित की आशंका से अध्यापक पलटवार करने में चुकता भी नहीं है। यह अध्यापकों का बार-बार छले जाने के कारण स्वभाव बन गया है। कारण भी साफ है इतनी बड़ी संख्या वाला मध्यप्रदेश में दूसरा कोई कर्मचारी संवर्ग भी नहीं है। अध्यापकों की नाराजगी रोकना है तो मुख्यमंत्री कमलनाथ को दरबारी शिक्षक संघो के बहकावे में आकर अध्यापकों की मांग को अनार्थिक और आर्थिक में ना बांटकर वचन पत्र में दिए गए वचनों के अनुसार अध्यापकों के शिक्षा विभाग में संविलियन के आदेश का रास्ता निकालना चाहिए। यदि कोई परेशानी है तो सीधे अध्यापक प्रतिनिधियों से वार्ता करनी चाहिए।