भोपाल। मध्यप्रदेश की राजधानी भोपाल में स्थित चिरायु अस्पताल (Chirayu Health & Medicare Pvt Ltd) को सुप्रीम कोर्ट (SUPREME COURT) ने इलाज में लापरवाही का दोषी प्रमाणित (Guilty of negligence in treatment) पाया है। सुप्रीम कोर्ट ने आदेशित किया है कि वो मरीज के परिजनों को 15 लाख रुपए मुआवजा अदा करे। विवाद अरुण मांगलिक, पूर्व महा प्रबंधक बीएचईएल, भोपाल एवं चिरायु अस्पताल के बीच था। फैसले की जानकारी अरुण मांगलिक, पूर्व महा प्रबंधक बीएचईएल, भोपाल ने दी है।
भारत के सुप्रीम कोर्ट ने भोपाल के चिरायु अस्पताल को एक मेडिकल लापरवाही के केस (अरुण कुमार मांगलिक वि. चिरायु अस्पताल भोपाल, सिविल अपील NOS. 227-228 OF 2019 (@SLP (C) Nos. 30119-30120 of 2016) में जुर्माने स्वरुप 15 लाख रुपए डेंगू के मरीज़ के परिवार को देने का आदेश किया है। मरीज़ श्रीमति मधु मांगलिक (पत्नि श्री अरुण मांगलिक, पूर्व महा प्रबंधक बीएचईएल, भोपाल) का निधन चिरायु अस्पताल की घोर मेडिकल लापरवाही के कारण 15 नवंबर 2009 को हुआ था।
24 पृष्ठों के दिनांक ९ जनवरी 2019 के आदेश मे सुप्रीम कोर्ट ने कहा है की " मामले के अति आवश्यक पहलू, जिससे मेडिकल लापरवाही के आरोप सिद्ध होते हैं, कि अस्पताल में प्रवेश के दिन (15 नवंबर 2009) आईसीयू में सुबह 7:30 बजे से भर्ती होने के बाद से शाम 6:00 बजे तक, जब उनको ह्रदयघात (cardiac arrest) हुआ, हलफनामे के द्वारा दिए गए ब्योरे में कहीं भी ये नहीं लिखा है की खून के लैब टैस्ट करके, किस तरह से विश्लेषण (analysis) और निगरानी (monitoring) करके उपचार करना होगा।" सुप्रीम कोर्ट ने इसके साथ ही राष्ट्रीय उपभोक्ता विवाद निवारण आयोग (ऐनसीडीआरसी) के आदेश को भी निरस्त कर दिया।
इससे पहले अप्रैल 2015 में मप्र राज्य उपभोक्ता विवाद निवारण आयोग द्वारा भी चिरायु अस्पताल को 6 लाख रुपये का जुर्माना मरीज़ के परिवार को देने का आदेश किया था। दोनों पक्षों द्वारा राष्ट्रीय आयोग में अपील करने पर फरवरी 2016 में राष्ट्रीय आयोग ने मप्र राज्य आयोग के आदेश को निरस्त किया था और अब सुप्रीम कोर्ट ने राष्ट्रीय आयोग के आदेश को भी निरस्त करके फैसला दिया है।
एमसीआई ने भी डॉ अजय गोयनका एवं डॉ अभय त्यागी को चेतावनी दी थी
इससे पहले जुलाई 2015 में मेडिकल कौंसिल ऑफ़ इंडिया ने प्रथम दृष्टया पाया था कि डॉक्टरों की तरफ से पेशेवर दुराचार हुआ है और डॉ अजय गोयनका एवं डॉ अभय त्यागी को चेतावनी जारी करने का फैसला लिया और आदेश दिया कि भविष्य में इस तरह के मरीज़ों के इलाज़ में अधिक सावधानी रखी जाये।