किसी भी “बजट” से पहले “जनमत संग्रह” होना चाहिए | EDITORIAL by Rakesh Dubey

आज केंद्र सरकार का और अगले कुछ दिनों में राज्य सरकार के बजट आयेंगे। बजट कैसा होगा ? इसके कयासों के साथ लोक लुभावन योजनाओ की जानकारी मीडिया को एक रणनीति के तहत मुहैया कराई जा रही है। इन्हें बजट पूर्व निर्णयों का नाम दिया क्या है। प्रजातंत्र में प्रजा [जनता] सर्वोपरि है, का राग गाने वाले राजनीतिक दलों ने आज तक कभी जनता से यह नही पूछा कि जनता कैसा बजट चाहती है? टैक्स जनता देती है और उससे खर्च करते समय कोई यह तक नहीं पूछता कि “जनता तुझे क्या चाहिए ?” कुछ पश्चिमी देशो में बजट से पूर्व जनमत संग्रह किया जाता है और सरकारें  जनमत की मंशा के अनुरूप बजट बनती और कर निर्धारण करती हैं। भारत में भी ऐसा होना चाहिए। बजट पूर्व लोक लुभावन घोषणाओ पर पाबंदी लगना चाहिए। वर्तमान में सरकारी मनमर्जी से बजट बनते हैं, ये पद्धति ठीक नहीं है।

आज आने वाला  केन्द्रीय  बजट  तीन राज्यों के विधानसभा चुनाव में हार के बाद केंद्र में बीजेपी की नेतृत्व वाली एनडीए सरकार का अंतरिम बजट होगा | इस अंतरिम बजट में गरीब, किसानों, छोटे व्यपारियों और आर्थिक रूप से कमजोर लोगों के लिए बड़ा ऐलान हो सकता है|  केंद्र सरकार राजकोषीय घाटे के बावजूद बजट २०१९  में लोकलुभावन कदम उठा सकती है। वैसे तो मोदी सरकार ने दिसंबर में कुछ घोषणाएं कर दी हैं। जिसका उद्देश सत्ता वापसी में मदद है ।

जैसे वित्त मंत्रालय ने १०  जनवरी को  ४० लाख तक की बिक्री पर जीएसटी में छूट देने की घोषणा की है । यह रियायत पहले २०  लाख रुपए तक के टर्नओवर तक सीमित थी। यह छूट एक अप्रैल २०१९  से लागू होगी। इससे और २  मिलियन छोटे व्यपारियों टैक्स से छूट मिलेगी। सरकार छोटे व्यपारियों को फ्री दुर्घटना बीमा और सस्ता लोन देने का विचार कर रही है। खुदरा बिक्रेताओं को ध्यान में रखते हुए अमेजन और फ्लिपकार्ट जैसे ई-कॉमर्स साइट के जरिए खुदरा ऑनलाइन ब्रिक्री पर रोक लगा लगाने पर विचार चल रहा है।वित्त मंत्री अरुण जेटली ने ऐसा संकेत दिया था कि आगामी बजट में किसानों के लिए डायरेक्ट फंड ट्रांसफर और ब्याज फ्री लोन देने पर भी  विचार हो रहा है।, इसके लिए सरकार के ऊपर १२००० करोड़ रुपये सालाना आर्थिक बोझ पड़ेगा। कृषि लोन प्रमुख विकल्प हो सकता है।मोदी सरकार द्वारा संविधान संशोधन करके गरीब सवर्णों को सरकारी नौकरियों और शिक्षण संस्थानों में १०  प्रतिशत आरक्षण देने का फैसाला किया गया। इस फैसले को कुछ राज्यों ने स्वीकार भी कर लिया है। इसके अलावा दिसंबर में टीवी, मूवी टिकट समेत २०  वस्तुओं पर जीएसटी में कटौती की गई थी। बजट में सरकार डायरेक्ट टैक्स छूट के दायरे को बढ़ा सकती है। हालांकि, इस तरह के बड़े बदलाव अंतरिम बजट में बहुत कम होते हैं क्योंकि इसके लिए वित्त विधेयक को पारित करने की आवश्यकता होती है।

केंद की देखादेखी मध्यप्रदेश सरकार ने सरकारी कर्मचारियों को एक सौगात दी है। सरकार ने प्रोफेशलन टैक्‍स में राहत दी है जिससे करीब ४०  हजार चतुर्थ श्रेणी सरकारी कर्मचारी प्रोफेशनल टैक्‍स के दायरे से मुक्‍त हो गए हैं। राज्‍य सरकार ने सरकारी कर्मचारियों पर लगने वाले प्रोफेशनल टैक्‍स को लेकर आदेश जारी किया है। यह भी बजट पूर्व एक ललचाने वाला कदम है | सवाल यह है कि जिससे टैक्स ले रहे हो क्या उसे यह जानने का अधिकार नही है, उससे लिया जा रहा धन कैसे खर्च हो रहा है | होना तो यह चाहिए सरकार किस भी बड़ी घोषणा  के पूर्व “जनमत संग्रह” कराए | भारत में टैक्स सबसे ज्यादा है और टैक्सदाताओं की संख्या दिन प्रतिदिन बडी है | ऐसे में “बजट पूर्व जनमत संग्रह” जरूरी है | केंद्र और राज्य दोनों को इस विषय पर सोचना जरूरी है | प्रजातंत्र का तकाजा भी यही है।
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श्री राकेश दुबे वरिष्ठ पत्रकार एवं स्तंभकार हैं।
संपर्क  9425022703        
rakeshdubeyrsa@gmail.com
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