देश का पक्ष-प्रतिपक्ष ऐसे मुद्दों को भूल रहा है जिनसे आम जन त्रस्त है | जैसे साल २०१९ के पहले पांच सप्ताहों में ही देश में स्वाइन फ्लू के ६०७१ मामले सामने आये हैं| इस बीमारी से अब तक २२६ मौतें ही चुकी हैं| इसी अवधि में पिछले साल इससे सिर्फ ७९८ लोग बीमार हुए थे और मृतकों की संख्या ६८ रही थी, लेकिन पूरे साल में करीब १५ हजार लोग इस फ्लू की चपेट में आये थे और मरनेवालों की संख्या ११०३ रही थी| केंद्र और राज्य की सरकारे इस जरूरी विषय पर सिर्फ घड़याली आंसू बहाती है | कोई ठोस योजना बनती नहीं और बनती भी है तो उसमें पहला हिसा भ्रष्टाचार होता है |
बुखारो जिसकी कई किस्में है, से पीड़ित देश के सभी राज्यों में हैं फिलहाल राजस्थान, दिल्ली, हरियाणा और पंजाब सर्वाधिक प्रभावित हैं| चूंकि फ्लू का असर एक साल के अंतराल पर कम या ज्यादा होता रहता है, तो अनुमान यह है कि इस साल मरीजों की तादाद बहुत बढ़ सकती है|
इसमें एक कारण जाड़े के मौसम का लंबा होना भी है | मौसम गर्म होने के साथ शायद स्वाइन फ्लू के विषाणुओं का कहर कम होने की उम्मीद की जा रही है| दिल्ली में डेंगू का एक मामला भी सामने आया है. हालांकि, राजधानी में मलेरिया और चिकनगुनिया से अभी कोई पीड़ित नहीं है, पर आगामी दिनों में दिल्ली और अन्य राज्यों में इनके असर से इनकार नहीं किया जा सकता है| मध्यप्रदेश में अभी चिकित्सा विभाग यह बताने की स्थिति में नहीं है उसके कौन से जिले में कौनसा बुखार चल रहा है | निजी अस्पताल और सरकारी अस्पतालों के बीच अनिवार्य सम्वाद सिर्फ मरीज निजी अस्पतालों तक पहुचाने भर का है | वो भी एक तरफा सरकारी अस्पताल से ही मरीज निजी अस्पतालों में भेजे जाते हैं |
सरकारी आंकड़े इस संबंध में कुछ और कहते है, उनके रिकार्ड में मौतों में कमी आ रही है | यह सूचना यह इंगित करती है कि बीते अनुभवों के आधार पर स्वास्थ्य केंद्रों और अस्पतालों में उपचार बेहतर हुआ है| इससे जुडी जानकारी दूसरा पहलू यह है कि मृतकों में ज्यादातर वैसे लोग हैं, जिन्हें पहले से सांस-संबंधी बीमारियां, रक्तचाप और मधुमेह की शिकायत थी| मौतों का बड़ा हिस्सा इस खाते में डाला जा रहा है | ऐसी बीमारियों में प्रदूषण एक बड़ा कारण है तथा हमारे शहरों में वायु एवं जल प्रदूषण लगातार बढ़ता जा रहा है| इस कारण दवाओं का असर कम होता है और अन्य बीमारियां फ्लू को अधिक घातक बना देती हैं|
कहने को केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्रालय राज्यों के साथ निरंतर संवाद कर मौसमी बुखारों की स्थिति पर नजर रख रहा है| स्वाइन फ्लू समेत अन्य मौसमी बुखार दुनिया में हर साल ३० से ५० लाख लोगों को ग्रसित करते हैं तथा तीन से साढ़े छह लाख लोग अकाल मृत्यु के शिकार होते हैं| अन्य देशों मौसम के दौरान मौसम जन्य बीमारियों के लिए चेतावनी जारी करने का रिवाज है | हमारे यहां ऐसा कोई विचार नहीं है | एक मुश्किलयह भी है कि रोगाणुओं का कहर साल के अलग-अलग महीनों में अलग-अलग जगहों पर अलग – अलग तरह से बरपा होता है| इस हिसाब से ही टीकाकरण और उपचार के इंतजाम होने चाहिए, जो अभी काफी कम हैं | रोगाणुओं के सक्रिय होने में मौसम और लोगों की स्वास्थ्य की दशा की अहम भूमिका होती है, तो इन बीमारियों का सामना करने की चुनौती को अलग से न देखकर स्वास्थ्य सेवा की व्यापक तैयारी के हिस्से के रूप में देखा जाना चाहिए.| आंकड़े कहते हैं कि देश के उत्तरी और उत्तर-पश्चिमी इलाकों में स्वाइन फ्लू और अन्य रोगाणुजन्य बुखारों से ज्यादा लोग बीमार होते हैं|
इन राज्यों के साथ देश के एनी राज्यों में उपचार की पुख्ता व्यवस्था करने के साथ आम लोगों तथा ग्रामीण क्षेत्रों में कार्यरत स्वास्थ्यकर्मियों को जागरूक बनाने की कोशिशें भी लगातार होनी चाहिए|
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श्री राकेश दुबे वरिष्ठ पत्रकार एवं स्तंभकार हैं।