नई दिल्ली। आज वेलन्टाईन डे है| हमारा इतिहास बताता है कि राधा और मीरा के देश में जहाँ प्रेम की परिभाषा एक अलौकिक एहसास के साथ शुरू होकर समर्पण और भक्ति पर खत्म होती थी, वर्तमान उसके विपरीत है | आज देश में प्रेम की अभिव्यक्ति तोहफों और बाजारवाद की मोहताज हो गई है। पश्चिमी अंधानुकरण के चलते विषय की गहराई में जा नही रहे है जिससे “प्रेम” शब्द भी कलंकित हो रहा है |
वैलेंटाइन डे, एक ऐसा दिन जिसके बारे में कुछ सालों पहले तक हमारे देश में बहुत ही कम लोग जानते थे, आज इस दिन का इंतजार करने वाला एक अच्छा खासा वर्ग उपलब्ध है। केवल इसे चाहने वाला युवा वर्ग ही इस दिन का इंतजार विशेष रूप से करता है तो आप गलत हैं। इसका विरोध करने वाले बजरंग दल, हिन्दू महासभा जैसे हिन्दूवादी संगठन भी इस दिन का इंतजार उतनी ही बेसब्री से करते हैं। इसके अलावा आज के भौतिकवादी युग में जब हर मौके और हर भावना का बाजारीकरण हो गया हो, ऐसे दौर में गिफ्ट्स टेडी बियर चॉकलेट और फूलों का बाजार भी इस दिन का इंतजार उतनी ही व्याकुलता से करता है।
वैसे भी वर्तमान काल में प्रेम आपके दिल और उसकी भावनाओं तक सीमित रहने वाला, केवल आपका एक निजी मामला नहीं रह गया है। उपभोक्तावाद और बाजारवाद के इस दौर में प्रेम और उसकी अभिव्यक्ति दोनों ही बाजारवाद का शिकार हो गए हैं। आज प्रेम छुप कर करने वाली चीज नहीं है, फेसबुक इंस्टाग्राम पर शेयर करने वाली चीज है। आज प्यार वो नहीं है जो निस्वार्थ होता है और बदले में कुछ नहीं चाहता बल्कि आज प्यार वो है जो त्याग नहीं अधिकार मांगता है। मल्टीनेशनल कंपनियाँ बढ़ी चालाकी से हमें यह समझाने में सफल हो गई हैं कि प्रेम को तो महँगे उपहार देकर जताया जाता है। वे हमें करोड़ों के विज्ञापनों से यह बात समझा कर अरबों कमाने में कामयाब हो गई हैं|
कथा इतनी है कि ईसा पूर्व २७८ में रोमन साम्राज्य में सम्राट मौरस औरेलियस क्लौडीयस गॉथियस को अपनी सेना के लिए लोग नहीं मिल रहे थे। उन्हें ऐसे नौजवान या फिर ऐसे युवा ढूंढने में बड़ी परेशानी का सामना करना पड़ रहा था जो सेना में भर्ती होना चाहें। उन्होंने ऐसा महसूस किया कि अपनी पत्नियों और परिवार के प्रति मोह के चलते लोग सेना में भर्ती नहीं होना चाहते। तो उन्होंने अपने शासन में शादियों पर ही पाबंदी लगा दी। तब संत वैलेंटाइन ने इस अन्याय के खिलाफ आवाज उठाई और वे चोरी छुपे प्रेमी युगलों का विवाह करा देते थे।जब सम्राट क्लौडीयस को इस बात का पता चला तो उन्होंने संत वैलेंटाइन को गिरफ्तार कर उनको मृत्युदंड दे दिया। ऐसा कहा जाता है कि उनकी याद में ही वैलेंटाइन डे मनाया जाता है।
भारत में इसकी प्रासंगिकता देखने से यह समझना जरूरी है की भारत में कभी विवाह का कभी भी विरोध नहीं किया गया बल्कि यहाँ तो विवाह पांच छ दिनों तक चलने वाला दो परिवारों का सामाजिक उत्सव है। यहां यह समझना भी जरूरी है कि विषय वैलेंटाइन डे के विरोध या समर्थन का नहीं है बल्कि किसी दिन या त्यौहार को मनाने के महत्व का है। जैसे गुरु पूर्णिमा (गुरु शिष्य), रक्षा बंधन, भाई दूज (भाई बहन), करवाचौथ (पति पत्नी), गौरी गणेश व्रत (माता और संतान), मकर संक्रांति (पिता पुत्र प्रेम), पितृ पक्ष (पूर्वजों), वसंत पंचमी (प्रेमी युगल), गंगा दशहरा,तुलसी विवाह (प्रकृति), हमारे देश में इस प्रकार के अनेक पर्व विभिन्न रिश्तों में प्रेम प्रकट करने का एक सशक्त माध्यम हैं। अगर आज भारत जैसे देश में वसंतोत्सव की जगह वैलेंटाइन डे ने ले ली है तो कारण तो एक समाज के वर्तमान रूप में हमें ही खोजने होंगे। वैसे समाज पर बाज़ार हावी है | बाज़ार से निकल कर “प्रेम” खोजिये |
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श्री राकेश दुबे वरिष्ठ पत्रकार एवं स्तंभकार हैं।