पुलवामा और उससे जुड़े कुछ तथ्य | EDITORIAL by Rakesh Dubey

सबसे पहले अपने दिमाग से यह बात दूर कर दें कि यह हमला घरेलू आतंक की उपज है यह हमला पूरी तरह से द्वारा सोचा-समझा और अंजाम दिया गया है| हमले की जिम्मेदारी जैश-ए-मोहम्मद ने ली है जो पाकिस्तान में स्थित और ISI के निर्देशों से संचालित होने वाला संगठन है। भले ही कट्टरपंथ का असर और इसकी प्रेरणा स्थानीय हो सकती है लेकिन ऐसा कोई सबूत नहीं है कि इतने बड़े पैमाने पर विस्फोटक अनाड़ी स्थानीय समूहों के पास उपलब्ध रहा हो। उनके लिए विस्फोट ट्रिगर और टाइमर की कार्यप्रणाली को भी समझ पाना मुश्किल है। हमलावर की भाषा कश्मीरी अवाम की शिकायतों या बदले वाली न होकर बाकी हिस्सों के मुसलमानों को उकसाने वाली है। बाबरी मस्जिद और गुजरात का जिक्र किया गया है और 'गोमूत्र पीने वालों' के खिलाफ बगावत करने की अपील 'अपने सभी मुस्लिमों' से की गई है। यह लश्कर-ए-तैयबा की सोच से कहीं अधिक जैश की राय है, स्थानीय कश्मीरियों की तो कतई नहीं।

२००१ में श्रीनगर में विधानसभा पर आत्मघाती हमला, उसी साल संसद भवन पर आतंकी हमला, पठानकोट और गुरदासपुर में हमला, सभी का मकसद आतंक को किसी तरह कश्मीर के बाहर ले जाना था। लश्कर ने भी नवंबर २००८ के मुंबई हमले में भी यही किया था लेकिन उसकी ज्यादा ताकत कश्मीर में लड़ाई जारी रखने में ही लग रही है। वैश्विक दबाव में लश्कर के सैन्य हुक्मरान उसे पाकिस्तानी राजनीति में लाना चाह रहे हैं। वहीं जैश आकार में छोटा होने के बावजूद अधिक खतरनाक, साधन-संपन्न और पाकिस्तानी खुफिया एजेंसी आईएसआई का चहेता भी है। जैश 'असरदार' हमलों के चयन में भी अधिक सजग रहा है।पाकिस्तानी सत्ता प्रतिष्ठान और आईएसआई के लिए मसूद अजहर एवं जैश की अहमियत लश्कर और हाफिज सईद से कहीं अधिक है। जैश उसकी ताकत बढ़ाने वाला मुख्य संगठन है। चीन भी इस बात को मानता है इसीलिए वह शर्मनाक ढंग से उसका बचाव भी कर रहा है। 

जैश और लश्कर के सभी हमले घोषित जवाबी कार्रवाई के बगैर ही निकल गए हैं, हालांकि कुछ गोपनीय सर्जिकल स्ट्राइक जरूर हुई। वाजपेयी और मनमोहन सिंह के दौरान भारत बाध्यकारी कूटनीति,पाकिस्तान पर वैश्विक दबाव बढ़ाने और मूलत: शांतिवादी रवैया रखने वाली सामरिक मनोदशा के चलते अपने गुस्से भरे दौर से निकलने में सफल रहा था। भारत की सोच यही थी कि किसी भी उकसावे की कार्रवाई का हद से ज्यादा जवाब नहीं देना है। अब मोदी सरकार क्या करती है ? यह सरकार मनमोहन और वाजपेयी समेत पिछली तमाम सरकारों को उनकी 'कायरता' के लिए जिम्मेदार मानती रही है। उड़ी में सर्जिकल स्ट्राइक के बाद मचे शोर और उससे हासिल राजनीतिक पूंजी को देखें तो इसकी कोई उम्मीद नहीं है कि वह खुद पर लंबे समय तक काबू रख पाने में सफल होगी। पाकिस्तान को जवाब मिलेगा परन्तु यह कोई नहीं जानता है कि ऐसा कब, कहां और कैसे होगा ?

जवाबी कार्रवाई जल्द ही हो सकती है। यह सबकी नजरों में आने वाला, गहरे शोर वाला और विजयी बदले के दावों में लिपटा होगा। भारत में चुनाव अभियान शुरू होने में अभी कुछ दिन बाकी हैं। ऐसे में मोदी नहीं चाहेंगे कि दोबारा सरकार बनाने के लिए जनता के बीच जाने के पहले उन पर पुलवामा का दाग लगा रहे।

इमरान खान से तो किसी भी प्रकार की उम्मीद बेमानी है इमरान तो पिछले कुछ वर्षों के सबसे कमजोर प्रधानमंत्री हैं। हमला करने का फैसला उनकी सेना का रहा होगा। अगर भारत कुछ करता है तो पाकिस्तान की सेना ही फैसला करेगी कि उसे जंग छेडऩी है या नहीं। इमरान तो हर तरह नाकाम ही होंगे। 
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श्री राकेश दुबे वरिष्ठ पत्रकार एवं स्तंभकार हैं।
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