देश के विमानन क्षेत्र ने बहुत तेज गति से प्रगति की। लगातार चार वर्ष से यह सबसे तेज विकसित घरेलू उड़ान बाजार वाला देश बना रहा। गत वर्ष विमान यात्रियों की संख्या 2017 की तुलना में 18.6 प्रतिशत की दर से बढ़ी। गत अक्टूबर में लगातार 50 वें महीने इस क्षेत्र ने दो अंकों की वृद्घि दर्ज की। बहरहाल, मांग में इस मजबूत वृद्घि के बावजूद आपूर्ति बाधित बनी रही। ऐसा नहीं है कि विमानन विकल्पों की कोई कमी है या कंपनियों के पास विमानों की कमी है। दिक्कत यह है कि अच्छे विमान चालक, खासतौर पर यात्री विमान में कमांडर की सीट संभालने के योग्य विमान चालकों की अत्यधिक कमी है। माना यह जाता है अगले वर्ष देश के विमानों के बेड़े में 100 नए विमान जुड़ जाएंगे।
हर विमान के साथ 10 से 12 विमान चालकों की आवश्यकता होती है। भारत में फिलहाल ८००० से भी कम विमान चालक हैं। अगर अतिरिक्त विमानों को विमान चालकों की मौजूदा कमी के साथ रखकर देखा जाए तो कहा जा सकता है कि अगले एक साल के दौरान देश में करीब १५०० अतिरिक्त विमान चालकों की आवश्यकता होगी। इनमें से बहुत कम तादाद में विमान चालक ही कमांडर की गुणवत्ता प्राप्त कर पाएंगे। वर्ष २०१७ -१८ में नियुक्ति पाने वाले कमांडरों की संख्या १० प्रतिशत गिरी है ।
यह निश्चित तौर पर एक संकट का संकेत है। नागरिक उड्डïयन महानिदेशालय (डीजीसीए) को इस बात पर विचार करना चाहिए कि वह आपूर्ति के संकट से निपटने के लिए क्या कर सकता है। कम से कम अल्प और मध्यम अवधि में विदेशों से बेहतर विमान चालकों की नियुक्ति करना जरूरी है लेकिन दुर्भाग्य की बात है कि इस क्षेत्र में दुनिया भर में बहुत संकट व्याप्त है। डीजीसीए को विदेशी विमान चालकों से जुड़े नियमन को शिथिल करना होगा।
अभी देश में ऐसे ३५० से भी कम विमान चालक हैं। लालफीताशाही भी एक समस्या है। डीजीसीए विदेशी विमान चालकों को अनुमति देने में ४० से ६० दिन का समय लेता है जो काफी है। डीजीसीए मूल देश से कई दस्तावेज मांगता है। उदाहरण के लिए विदेशी विमान चालकों को नियमित रूप से उनके देश भेजा जाता है ताकि वे पुलिस से पुनर्परीक्षण करा के आएं। इस बीच लंबी अवधि का हल यह हो सकता है कि देश में बेहतर गुणवत्ता वाले अधिक फ्लाइंग स्कूल खोले जाएं। इसके अलावा विमान चालक बनने की इच्छा रखने वालों के लिए शिक्षा ऋण आसान होना चाहिए। डीजीसीए ने देश में उड़ान प्रशिक्षकों की आवश्यकता कृत्रिम रूप से बढ़ा रखी है जिसे तार्किक बनाने की आवश्यकता है। अगर आपूर्ति की बाधा जारी रही तो आरोप नियामक पर ही आएगा।
वैसे इन दिनों ऐन समय पर नियमित उड़ानों का रद्द होना देश में आम हो रहा है उड़ान रद्द होने से यात्रियों को कई तरह की असुविधा का सामना करना पड़ा है। यूँ तो लेटलतीफी और उडान रद्द होना सभी के साथ होता है पर इंडिगो एयरवेज की ओर से ऐसी घटनाएं बार-बार देखने को मिल रही हैं। देश के कुल विमानन बाजार में इस सस्ती विमान सेवा की ४० प्रतिशत से अधिक हिस्सेदारी है। नये विमान आने के साथ नये विमान चालक भी आये और विमान ठीक से उड़े | इसका जतन होना चाहिए |
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श्री राकेश दुबे वरिष्ठ पत्रकार एवं स्तंभकार हैं।