प्रदेश की पूर्ववर्ती भाजपा सरकार के खिलाफ जिन मुद्दों का शोर मचाकर और जाँच की बात कहकर कांग्रेस ( कमलनाथ ) सरकार सत्ता में आई थीं। अब उन सारे मुद्दों को सरकार के मंत्रियों ने विधान सभा में क्लीनचिट दे दी है। सरकार के मुखिया कमलनाथ अब भी जाँच की बात कह रहे हैं। क्या सदन में मंत्रियों ने यह सब अपने राजनीतिक आकाओं के कहने पर किया है या वे मुख्यमंत्री को यह बतलाना चाहते हैं। कि हम वैसे नहीं हैं जैसे आप समझ रहे हैं। जब सारे के सारे कैबिनेट मंत्री स्तर के होंगे तो कौन किसकी सुनेगा? वैसे भी मंत्रियों के शिकायत है मुख्यमंत्री के पास समय की कमी है। वे सदन और सरकार चलाने का मार्गदर्शन किस से लें ? अनुभव कुछ मंत्रियों के पास बिलकुल नहीं है कुछ को हर फैसलों में सलाह लगती है। कोई पढ़ नहीं सकता तो किसी को लिखना नहीं आता। सरकार कम तमाशा ज्यादा हो रहा है। सरकार मंत्रीमंडल के सामूहिक उत्तरदायित्व से चलती है। अपनी ढपली अपने राग से नहीं।
सिंहस्थ नर्मदा और किसान कांग्रेस के कोर विषय थे। इन विषयों पर शोर मचाकर कांग्रेस हलकान हो रही थी।इसी शोर ने उसे सत्ता की चाबी सौंपी थी। मंदसौर का गोलीकांड रहा हो या नर्मदा के किनारे का वृक्षारोपण कांग्रेस ऐसा प्रदर्शित करती थी की सत्ता में आते ही बहुत कुछ बदल जायेगा। कुछ नहीं बदला। मंत्रियों ने विधानसभा में उसके अंदर बाहर जो कुछ कहा उससे यह लगने लगा कि कांग्रेस तब या अब झूठ बोल रही है।
सवाल यह है कि ऐसा तमाशा क्यों हो रहा है ? जवाब है मजबूरी में पैदा अति आत्म विश्वास। गुटों में बंटी कांग्रेस अभी भी उसी स्वरूप में है। सारे मंत्री किसी न किसी एक बड़े क्षत्रप के साए तले अपने को महफूज पाते हैं और सारे निर्णय अपने आका की मंशा के अनुरूप करते हैं। किसी को छोटे-बड़े का ज्ञान नहीं है तो किसी को पुरुस्कार स्वरूप तो किसी को पिता के दबदबे से कुर्सी मिली है तो कोई अपनी माली हालत की दम पर मंत्री है। उस पर सारे के सारे कैबिनेट है कोई किसी से कम नहीं। सबको खुश रखने के चक्कर में मुख्यमंत्री फंस गये और ये हालात बन गये की सरकार तमाशा नजर आने लगी।
मुख्यमंत्री इस सारे संतुलन को साधने के लिए दिल्ली की तराजू और वल्लभ भवन के बाँट का इस्तेमाल करना चाहते थे। उन्हें भरोसा था कि वे तबादला रूपी अस्त्र से इस संतुलन को साध सकेंगे। यह अस्त्र मजाक बना और कुछ लोगों के लिए आय का धंधा भी। दिन में तबादला रात को संशोधन मिसाल बन गये है। जितने किये उसमें ७५ प्रतिशत फिर जहाँ के तहां।
सब कुछ बिना सोचे समझे चल रहा है। बिना सोचे समझे तो तमाशा भी नहीं होता कमल नाथ जी! ये तो सरकार है। और पूरे प्रदेश की जो छिंदवाडा से बहुत बड़ा है। उस माडल से एक जिला चल सकता है प्रदेश नहीं।
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श्री राकेश दुबे वरिष्ठ पत्रकार एवं स्तंभकार हैं।