भला हो सुप्रीम कोर्ट का | EDITORIAL by Rakesh Dubey

NEW DELHI: देश की सुप्रीम कोर्ट राजनीतिक बवालों और सवालों से दूर रहती है, लेकिन उसके फैसले और यहां तक कि न्यायाधीशों के व्यक्तिगत नजरियों का राष्ट्रीय चुनावों पर गहरा असर पड़ता है। उदहारण उच्चतम न्यायालय का 1990 के दशक में हवाला डायरी और मंडल-मस्जिद जैसे मुद्दों में हस्तक्षेप का तत्कालीन सरकारों पर गहरा असर हुआ था। जिससे सत्तारूढ़ दलों को कहीं ज्यादा नुकसान पहुंचा था। अदालत के 2जी स्पेक्ट्रम, कोयला ब्लॉक आवंटन और राष्ट्रमंडल खेल जैसे घोटालों में फैसलों के चलते ही वर्ष 2014 में कांग्रेस को करारी हार का मुंह देखना पड़ा। न्यायपालिका राजनेताओं को आगामी चुनावों के लिए ऐसा कोई तोहफा नहीं दे रही है, इसलिए उनके हाथ मलते रह जाने के आसार हैं।

मंडल-मस्जिद जैसे विवादास्पद मुद्दे अब भी ज्वलंत हैं, राफेल फैसले की समीक्षा लंबित है और केंद्रीय जांच ब्यूरो (CBI) और केंद्रीय सतर्कता आयोग (CVC) की भूमिका तात्कालिक चिंताएं नहीं हैं। हालांकि सरकार तेज रफ्तार से काम कर रही है और मतदाताओं पर लाभों की बारिश कर रही है, लेकिन यह साफ नजर आ रहा है कि अदालत ने विवादास्पद मुद्दों को किनारे कर दिया है। इसके कई अर्थ लगाये जा रहे हैं।

पूर्व मुख्य न्यायाधीश दीपक मिश्रा ने पिछले साल अयोध्या मामले से जुड़ी याचिकाओं को उनकी बारी से पहले सुनने में तेजी दिखाई थी। उसके बाद दुर्भाग्य से संविधान पीठों के सदस्य लगातार बदलते रहे हैं। सबसे पहले मास्टर ऑफ रोस्टर के रूप में काम करते हुए मुख्य न्यायाधीश द्वारा चुने गए न्यायाधीशों को लेकर विवाद खड़ा हो गया क्योंकि पीठ में पहले इस मामले की सुनवाई करने वाले न्यायाधीशों को बाहर रख दिया गया था। यह परंपरा के खिलाफ था। इसके बाद जब इस गलती को सुधारा गया तो नए पीठ से एक न्यायाधीश को बाहर करना पड़ा क्योंकि वह अयोध्या मामले में कल्याण सिंह के वकील रह चुके थे। एक नई पीठ का गठन किया गया, लेकिन एक न्यायाधीश किन्हीं अघोषित कारणों से 'अनुपलब्ध' थे। इस मामले की अगली सुनवाई 14 मार्च को होनी है, लेकिन यह इस पर निर्भर करेगा कि सब कुछ ठीक रहता है। 

एक अन्य चुनावी मुद्दा राफेल सौदा है, लेकिन अदालत ने इसे भी ठंडे बस्ते में डाल रखा है। इस विवादास्पद फैसले की बहुत जल्द समीक्षा होने के आसार नहीं हैं। सरकार उच्चतम न्यायालय गई है और उसने कहा है कि उन दस्तावेजों की शब्दावली को समझने में न्यायिक गलती हुई है, जो उसने न्यायाधीशों को सीलबंद लिफाफे में सौंपे थे। इस बीच बहुत से नए तथ्य सार्वजनिक हुए हैं। अदालत में एक याचिका 'रिकॉर्ड में गलतियों' को ठीक करने और नए तथ्यों को मद्देनजर रखते हुए फैसले पर पुनर्विचार करने के लिए दायर की गई है। 

एक छिपा हुआ विवाद अगड़ी जातियों में आर्थिक रूप से पिछड़ों के लिए 10 प्रतिशत आरक्षण का प्रावधान है। अंतिम फैसला ऐसे समय नहीं आएगा, जब राजनेता एक-दूसरे को नुकसान पहुंचा सकें। अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति (अत्याचार रोकथाम) को लेकर एक अन्य संवेदनशील विवाद भी लंबित है। अदालत द्वारा सुने जाने वाले अन्य ज्वलंत मुद्दों में NRC को अंतिम रूप देना, जम्मू-कश्मीर को विशेष दर्जा देने वाला संविधान का अनुच्छेद 370, सबरीमाला मंदिर में युवा महिलाओं का प्रवेश और अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय (एएमयू) का दर्जा आदि शामिल हैं। ऐसे मामलों के फैसलों में देरी से चुनाव प्रचारकों को मुद्दे नहीं मिल पा रहे हैं, लेकिन खुशकिस्मती से जनता शोर-शराबे वाली बहस से काफी हद तक बची हुई है।
देश और मध्यप्रदेश की बड़ी खबरें MOBILE APP DOWNLOAD करने के लिए (यहां क्लिक करेंया फिर प्ले स्टोर में सर्च करें bhopalsamachar.com
श्री राकेश दुबे वरिष्ठ पत्रकार एवं स्तंभकार हैं।
संपर्क  9425022703        
rakeshdubeyrsa@gmail.com
पूर्व में प्रकाशित लेख पढ़ने के लिए यहां क्लिक कीजिए
आप हमें ट्विटर और फ़ेसबुक पर फ़ॉलो भी कर सकते हैं

#buttons=(Ok, Go it!) #days=(20)

Our website uses cookies to enhance your experience. Check Now
Ok, Go it!