नई दिल्ली। भारत के नागरिकों का अब मुगालता दूर हो जाना चाहिए की वे प्रजातंत्र में जी रहे है। पश्चिम बंगाल में जो हो रहा है मतलब केंद्र के सामने राज्य की चुनौती, किसी भी प्रजातांत्रिक संघीय व्यवस्था का मखौल है। हम [नागरिक] चुप हैं हमारे हाथ संविधान से बंधे हैं। राजनीतिक दल नागरिकों की इस मजबूरी का फायदा उठा कर वो सब कर रहे हैं जिसकी किसी को उम्मीद नहीं थी।
धरने पर बैठीं पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी और केंद्र सरकार के बीच विवाद बढ़ता दिख रहा है। ममता बनर्जी ने जोर देकर कहा है कि मोदी सरकार ने ‘‘संविधान और संघीय ढांचे'' की भावना का गला घोंट दिया। इस बीच, कांग्रेस सहित अन्य विपक्षी पार्टियां इस मुद्दे पर ममता के समर्थन में उतर आई हैं। कोलकाता के मेट्रो सिनेमा के सामने धरने पर बैठीं ममता और केंद्र सरकार के बीच यह नाटकीय घटनाक्रम उस वक्त शुरू हुआ, जब कोल्कता के पुलिस कमिश्नर से सुप्रीम कोर्ट के आदेश से पूछताछ के मकसद से सी बी आई उनके आवास पर गई। सीबीआई अधिकारियों की टीम को वहां तैनात संतरियों-कर्मियों ने अंदर जाने से रोक दिया। इसके बाद कोलकाता पुलिस ने सीबीआई के कुछ अधिकारियों को हिरासत में भी ले लिया। केंद्र एवं राज्य के पुलिस बलों के बीच यह टकराव की अभूतपूर्व स्थिति थी। ये ही पुलिस कमिश्नर चिट फंड और शारदा घोटाले के जाँच अधिकारी थे अब शक की सुई लेकर सी बी आई उनसे पूछताछ करने गई थी। इसे ममता बनर्जी केंद्र द्वारा बनाया गया दबाव बताकर धरने पर है। सवाल यह है एक नौकरशाह का की इतनी पक्षधरता क्यों ?
ममता ने अपने इस आव्हान में भारत की सेना को भी शामिल कर लिया। ममता ने कहा है कि “वे हर उस राज्य में राष्ट्रपति शासन लगाना चाहते हैं, जहां विपक्षी पार्टियां सत्ता में हैं| उन्होंने कहा, ‘मैं यकीन दिला सकती हूं...मैं मरने के लिए तैयार हूं, लेकिन मैं मोदी सरकार के आगे झुकने के लिए तैयार नहीं हूं| हम आपातकाल लागू नहीं करने देंगे|कृपया भारत को बचाएं, लोकतंत्र बचाएं, संविधान बचाएं''| ममता ने सभी विपक्षी पार्टियों से अपील की कि वे मोदी सरकार को सत्ता से बेदखल करने के लिए एकजुट हों. उन्होंने थलसेना के अलावा केंद्र एवं राज्यों के सुरक्षा बलों का भी आह्वान किया कि वे मोदी सरकार के रवैये की ‘‘निंदा'' करें|
यह सब क्या है ? एक चहेते नौकरशाह की पक्षधरता इस हद तक ? देश में इन दिनों ऐसी धींगामस्ती चल रही है सी बी आई में पिछले दिनों ऐसा ही हुआ था | लगभग सभी संवैधानिक संस्थाओं के साथ ऐसा ही हो रहा है | आपस में झगड़ रही दोनों सरकारें भी इसी संविधान से चलती है | नौकरशाह किसी एक की सील अपनी पीठ पर लगवा कर अपने को परम विभूषित मान लेते है, ममता की छांव भी यही है |
तो हल क्या है? देश के संविधान की पुनर्व्याख्या, नये संविधान का निर्माण और केंद्र और राज्य के स्पष्ट सम्बन्धों का निर्धारण | नही तो किसी दिन केंद्र सरकार की किसी एजेंसी और राज्य सरकार के बल के बीच युद्ध होगा | जिन नौकरशाहों के पीठ पर सीलें लगी होंगी वे कठपुतली की तरह सरकार को नचाएंगे | जैसे अभी बंगाल नाच रहा है।
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श्री राकेश दुबे वरिष्ठ पत्रकार एवं स्तंभकार हैं।