अंतरिम बजट : ढोल में कई पोल | EDITORIAL by Rakesh Dubey

आम धारणा बनती जा रही है कि भारत सरकार के आंकड़ों पर भरोसा नहीं किया जा सकता है। यहां सिर्फ सकल घरेलू उत्पाद की गणना की 'नई शृंखला' को लेकर बात नहीं की जा रही। ना ही इस जीडीपी की भरोसे न करने लायक 'बैक सीरीज' की बात हो रही है। बात बजट में पेश सबसे अहम वृहद आर्थिक संकेतकों के बारे में है। पीयूष गोयल द्वारा पेश अंतरिम बजट के आंकड़ों को लेकर यह नहीं कहा जा सकता कि ये हकीकत को ठीक से बयां करते हैं। सरकार ने सभी परंपराओं की उपेक्षा की है और पूर्ण बजट पेश किया है। 

बजट में यह दावा किया गया है कि भारत लगातार 'राजकोषीय सुदृढ़ता की राह' पर चल रहा है और घाटा जीडीपी का 3 प्रतिशत रहेगा। इस बात पर भरोसा करना बहुत ही मुश्किल है। इसके विपरीत संयुक्त प्रगतिशील गठबंधन के अंतिम वर्ष समेत 2013 के संकट के बाद शुरुआती कुछ वर्षों में घाटे को कम करने के लिए पूरी ईमानदारी से प्रयास किए गए। ऐसा लगता है कि अब वे प्रयास बंद हो गए हैं। इस साल कोई प्रमुख वृहद आर्थिक संकट नहीं होने के बावजूद राजकोषीय घाटे का लक्ष्य फिर हासिल नहीं हो पाया।

इस बजट की कुछ बातें उसे अविश्वसनीय बनाती हैं। इसका कोई सही जवाब नहीं दिया गया है कि वस्तु एवं सेवा कर की प्राप्तियां बजट अनुमान से 1 लाख करोड़ कम क्यों हैं। ये इस साल करीब 6 प्रतिशत बढ़ेंगी। ऐसे में हमें बजट का यह दावा क्यों मानना चाहिए कि वे अगले साल करीब 20 प्रतिशत बढ़ेंगी? अगर वे नहीं बढ़ीं तो बजट के अनुमानों का क्या होगा? 

इस बजट में सरकारी खर्च को सरकार के नियंत्रण में आने वाली अन्य नकदी से वित्त पोषित कर छिपाया जा रहा है। जैसे एयर इंडिया को उबारने के लिए लघु बचत कोष का इस्तेमाल किया जा रहा है। पहले यह काम बजट आवंटन के जरिये किया जाता था। यह सरकार का कर राजस्व नहीं है, जिसे इस्तेमाल किया जाना चाहिए। ये हमारी बचत हैं। उदाहरण के लिए सार्वजनिक भविष्य निधि की धनराशि। इसका इस्तेमाल एयर इंडिया को बचाने जैसी राजनीतिक जरूरतों के लिए किया जा रहा है। लेकिन किसी की बचत का गर्दिश में जा रही उस विमानन कंपनी में निवेश होना कहाँ तक उचित है। इसमें करों से आने वाला पैसा खर्च किया जाना चाहिए। इस रवैये के चलते किंगफिशर को ऋण देने को लेकर बैंकरों की आलोचना बेकार हैं, जब हमारी बचत की संरक्षक सरकार भी एयर इंडिया के मामले में ठीक वही कर रही है। 

आंकड़े कहते हैं कि विनिवेश का भी दुरुपयोग हो रहा है। इसका मतलब सरकारी नियंत्रण में कमी और इस तरह सरकारी क्षेत्र में लगी पूंजी की उत्पादकता में बढ़ोतरी नहीं हो रही है। इसके बजाय सरकार का उद्देश्य  विनिवेश सार्वजनिक क्षेत्र से सरकार को पूंजी हस्तांतरित करना रह गया है। फिर सरकार इसका इस्तेमाल खर्च के वित्त पोषण में करती है। यह सार्वजनिक संसाधनों का बेजा दुरुपयोग है। इससे लगातार अर्थव्यवस्था में अकुशलता और पूंजी के गलत आवंटन में बढ़ोतरी हो रही है। सार्वजनिक क्षेत्र की जिन कंपनियों को अपना आरक्षित कोष निवेश के लिए इस्तेमाल करना चाहिए, उन्हें वह पैसा सरकार को देने के लिए बाध्य किया जा रहा है। सरकार की प्रमुख नीतियां पूरी करने के लिए सार्वजनिक एजेंसियों को कर्ज लेने के लिए बाध्य किया जा रहा है। 

इस बजट में राजमार्ग मंत्रालय का आवंटन घटा दिया गया है। अगले साल के लिए बजट चालू वित्त वर्ष के संशोधित अनुमान की तुलना में केवल ६ प्रतिशत बढ़ाया गया है। इसके नतीजतन भारतीय राष्ट्रीय राजमार्ग प्राधिकरण जैसी एजेंसियां सरकारी ऑर्डरों के लिए उधारी बढ़ा रही हैं। हालांकि बजट के आंकड़ों मे इसे छिपाया गया है। यह तो बानगी है पूरे ढोल में कई पोल हैं।
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श्री राकेश दुबे वरिष्ठ पत्रकार एवं स्तंभकार हैं।
संपर्क  9425022703        
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