NEW DELHI: खेती में इन दिनों एक नया प्रयोग चल रहा है। “वर्टिकल खेती”। परंपरागत कृषि अलाभकारी हो रही है, और खेत सिमटते जा रहे हैं । ऐसे में वर्टिकल खेती विकल्प के रूप में उभर रही है। फसल उगाने के इस नये तरीके को पर प्रयोग चल रहे हैं। कृषि की इस अनोखी प्रणाली में पौधों को दीवारों से जुड़ी अलमारियों पर रखे कंटेनरों में या उगाया जाता है या लंबे फ्रेम या पिलर पर टांगा जाता है। इससे पौधों को अपनी पूरी ऊंचाई तक बढऩे और हर पौधे तक प्रकाश को पहुंचने की पर्याप्त जगह मिलती है। छतों, बालकनी और शहरों में बहुमंजिला इमारतों के कुछ हिस्सों में फसली पौधे उगाने को भी वर्टिकल कृषि के ही एक हिस्से के रूप में देखा जाता है। इसमें क्षैतिज की तरह उर्ध्वाधार जगह का इस्तेमाल किया जाता है।
अभी भारत में फसलें उगाने का यह तरीका शुरुआती चरण में ही है। मगर यह अन्य कई देशों में काफी प्रगति कर चुका है। विशेष रूप से उन देशों में, जहां जमीन की उपलब्धता कम है। इस बात में कोई संदेह नहीं है कि बड़े आकार और वजनी फसलें इस तरह की खेती के लिए उपयुक्त नहीं हैं। लेकिन ऊंचे मूल्य और छोटे आकार की बहुत सी फसलें आसानी से ऊध्र्वाधर ढांचों में उगाई जा सकती हैं। वर्टिकल खेती करने वाले ज्यादातर उद्यमी लेटिस, ब्रोकली, औषधीय एवं सुगंधित जड़ी-बूटियां, फूल और साज-सज्जा के पौधे, टमाटर, बैगन जैसी मझोली आकार की फसलें और स्ट्रॉबेरी जैसे फल उगाते हैं।संरक्षित पर्यावरण में अलमारियों में ट्रे में मशरूम की वाणिज्यिक खेती वर्टिकल खेती का सबसे आम उदाहरण है। उच्च तकनीक वाली वर्टिकल खेती का एक अन्य सामान्य उदाहरण टिश्यू कल्चर है। इसमें पौधों के बीजों को टेस्ट ट्यूब में सिंथेटिक माध्यम में उगाया जाता है और कृत्रिम प्रकाश और पर्यावरण मुहैया कराया जाता है। वर्टिकल फार्म में उगाए जाने वाले उत्पाद बीमारियों, कीटों और कीटनाशकों से मुक्त होते हैं। आम तौर पर इनकी गुणवत्ता बहुत बेहतर होती है, इससे उनके दाम भी ज्यादा होते हैं।
इस समय वर्टिकल कृषि मुख्य रूप से बेंगलूरु, हैदराबाद, दिल्ली और कुछ अन्य शहरों में होती है। यहां उद्यमियों ने शौकिया तौर पर वर्टिकल खेती की शुरुआत की थी, लेकिन बाद में व्यावसायिक उद्यम का रूप दे दिया। इन शहरों में बहुत से उद्यमी हाइड्रोपोनिक्स और एयरोपोनिक्स जैसे जानी-मानी प्रणालियों का इस्तेमाल कर रहे हैं। हाइड्रोपोनिक्स में पौधों को पानी में उगाया जाता है। इस पानी में आवश्यक पादप पोषक मिले होते हैं। एयरोपोनिक्स में पौधों की जड़ों पर केवल मिश्रित पोषक तत्त्वों का छिड़काव किया जाता है। गमले में लगे पौधों के मामले में आम तौर पर मिट्टी की जगह पर्लाइट, नारियल के रेशे, कोको पीट, फसलों का फूस या बजरी का इस्तेमाल किया जाता है। वर्टिकल खेती के लिए परागण एक चुनौती है, विशेष रूप से क्रॉस पॉलिनेटड फसलों के मामले में। इस पर ध्यान देने की जरूरत है। इनडोर फॉर्म में परागण कीट नहीं होते हैं, इसलिए परागण हाथ से करना होता है। इसमें लागत आती है और समय भी खर्च होता है।
वर्टिकल फॉर्मिंग के कम लोकप्रिय होने की मुख्य वजहों में से एक शोध एवं विकास में मदद का अभाव है। वर्टिकल खेती की तकनीक को बेहतर बनाने और लागत कम करने के लिए मुश्किल से ही कोई संस्थागत शोध चल रहा है। खेती की इस प्रणाली को लोकप्रिय बनाने के लिए ऐसे शोध की तत्काल जरूरत है। सरकारी और निजी दोनों क्षेत्रों को शोध एवं विकास केंद्र स्थापित करने के बारे में विचार करना चाहिए ताकि वर्टिकल खेती को प्रोत्साहित किया जा सके। सरकार को वर्टिकल कृषि को बढ़ावा देने के लिए नीतियां लानी चाहिए।
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श्री राकेश दुबे वरिष्ठ पत्रकार एवं स्तंभकार हैं।