लखनऊ। उत्तरप्रदेश राज्य कर्मचारियों (UTTAR PRADESH GOVERNMENT EMPLOYEE) की पुरानी पेंशन (OLD PENSION SYSTEM) बहाली की मांग को लेकर हो रहे आंदोलन पर स्वत: संज्ञान लेते हुए हाईकोर्ट (HIGH COURT) ने सरकार से पूछा कि जब कर्मचारियों की सेवा नियमावली में पेंशन का प्रावधान है तो सरकार इसे प्रशासनिक आदेश से कैसे बदल सकती है। क्या केंद्र सरकार की योजना को कर्मचारियों की इच्छा के विपरीत अपनाया जा सकता है। सुप्रीमकोर्ट ने पेंशन के अंशदान को कर्मचारी के वेतन का हिस्सा माना है। नई पेंशन योजना में सरकार अंशदान का उपयोग शेयर मार्केट में करेगी और यदि शेयर की रकम डूब गई तो सरकार क्या करेगी। क्या सरकार रकम डूबने की स्थिति में कर्मचारियों को न्यूनतम पेंशन देने पर विचार कर रही है।
हाईकोर्ट ने इन तमाम सवालों पर राज्य सरकार को 27 फरवरी तक अपना रुख स्पष्ट करने का निर्देश दिया है। पुरानी पेंशन के लिए दो दिन तक हड़ताल करने वाले कर्मचारियों से कोर्ट ने पूछा कि क्या उन दो दिनों का वेतन वह पुलवामा हमले के शहीदों के परिवारों को देने के लिए राजी हैं। राज्य कर्मचारियों के नेताओं ने इसके लिए हामी भरी है। इस पर कोर्ट ने उनको हलफनामा दाखिल करने का निर्देश दिया है। कर्मचारियों की हड़ताल से दो दिन तक न्यायिक कार्यवाही में व्यवधान पड़ने के कारण न्यायमूर्ति सुधीर अग्रवाल और न्यायमूर्ति राजेंद्र कुमार की पीठ ने इस मामले पर स्वत: संज्ञान ले लिया है।
प्रदेश सरकार ने कोर्ट में हलफनामा देकर बताया कि नई पेंशन योजना केंद्र सरकार की है। यह 2004 में आई थी। उत्तर प्रदेश में इसे 2005 के बाद नियुक्त कर्मचारियों पर लागू किया गया है। केंद्र की योजना में बदलाव करने का अधिकार राज्य सरकार को नहीं है। कोर्ट ने पूछा कि जब राज्य को योजना में बदलाव का अधिकार नहीं है तो कर्मचारी की सहमति के बिना इसे लागू क्यों किया गया। क्या यह योजना अधिकारियों, सांसदों और विधायकों पर भी लागू की जाएगी। कर्मचारी अपना अंशदान शेयर मार्केट में लगाने पर सहमत नहीं हैं। वह इसका विरोध कर रहे हैं। कोर्ट ने प्रदेश सरकार को 27 फरवरी तक अपनी स्थिति स्पष्ट करने का निर्देश दिया है।