मॉर्गेज LOAN कितनी तरह के होते हैं, जानिए फीचर, ब्याज और जरूरी बातें | BUSINESS NEWS

Bhopal Samachar
मॉर्गेज लोन ( Mortgage loan ) भी किसी दूसरे लोन की तरह ही है जिसे हम किसी तरह की सिक्यॉरिटी के बदले में लेते हैं। यानी अगर हम कोई लोन घर या प्रॉपर्टी ( PROPERTY ) को गिरवीं रखकर लेते हैं तो उसे मॉर्गेज लोन कहा जाता है। इस लोन को नया मकान खरीदने या बनवाने के लिए लिया जाता है। लोन का अमाउंट इसकी योग्यता और बैंक की लोन पॉलिसी ( LOAN POLICY ) पर निर्भर करता है। मॉर्गेज को अधिकतम लोन अगेंस्ट प्रॉपर्टी के तौर पर भी जाना जाता है।  

इक्विटेबल मॉर्गेज या ओरल मॉर्गज / Equitable mortgage or oral mortgages

इस तरह के लोन में हाउसिंग फाइनैंस कंपनीज़ (HFCs) प्रॉपर्टी डॉक्युमेंट चेक करेंगी और फिर लोन अग्रीमेंट साइन कर लोन ऑफर किया जाता है। इस तरह के लोन में मॉर्गेज रजिस्टर्ड करने की जरूरत नहीं होती। भारत में यह बहुत आम लोग है लेकिन अधिकतर कपनियां प्रॉपर्टी डॉक्युमेंट्स की मांग करती हैं। 

रजिस्टर्ड मॉर्गेज / Registered Mortgage

इस तरह के लोन में मॉर्गेज को जरूरी अथॉरिटी के साथ रजिस्टर्ड किया जाता है। प्रॉपर्टी पर लगने वाला चार्ज सरकार आंकड़ों में दर्ज होता है। कर्ज लेने वाला आमतौर पर रजिस्ट्रेशन चार्ज भी चुकाता है। 

मॉर्गेज लोन के फीचर / Mortgage loan features

यह लोन कर्ज लेने वाले को दिया जाता है। आमतौर पर प्रॉपर्टी की 80 प्रतिशत वैल्यू लोन के तौर पर दी जाती है। कुछ मामलों में यह रहकम 85-90 प्रतिशत तक पहुंच जाती है। 

रीपेमेंट पीरियड / Repayment Period: 

बात करें रीपेमेंट पीरियड की तो इसे लोन के टर्म के तौर पर जाना जाता है। इस दौरान ईएमआई के जरिए लोन चुकाया जाता है। 

ब्याज दर / Rate of interest:

हाउसिंग फाइनैंस कंपनीज लोन पर जो ब्याज लेती हैं, उसे ब्याज दर के तौर पर गिना जाता है। 

रिड्यूसिंग बैलेंस / Reducing balance: 

लोन का बैलेंस प्रतिदिन, मासिक और सालान तौर पर घटता रहता है। हर साल घटने वाले बैलेंस का सिस्टम अब करीब खत्म हो गया है और अब मासिक तौर पर ही बैलेंस घटता है। 

डाउन पेमेंट/ Down payment: 

होम लोन को लेने के लिए कर्ज लेने वाले को एक निश्चित रकम देनी होती है, जिसे डाउन पेमेंट कहते हैं। डाउन पेमेंट 10 प्रतिशत से 20 प्रतिशत तक हो सकती है। 

प्रीपेमेंट / PREPAYMENT : 

ग्राहक चाहे तो लोन को समय से पहले चुकाकर प्रीपेमेंट कर सकता है। प्रीपेमेंट के जरिए ग्राहक तय की गई तारीख से पहले लोन चुकाकर ब्याज बचा सकता है। ग्राहको के पास पार्शियल प्रीपेमेंट या फुल प्रीपेमेंट का विकल्प रहता है। कई हाउसिंग फाइनैंस कंपनियां प्रीपेमेंट पर मामूली पेनल्टी भी लगाती हैं। 

फीस / FEES: 

इसमें हाउसिंग फाइनैंस कंपनियों द्वारा वसूले जाने वाले सभी दूसरे शुल्क शामिल रहते हैं। ये शुल्क लोन की ऐप्लिकेशन फाइल करते वक्त वसूले जा सकते हैं। इसमें अडमिनिस्ट्रेशन फीस, वेरिफिकेशन फीस, लीगल चार्ज, टेक्निकल चार्ज आदि शामिल हैं। 

लोन का रीपेमेंट / Loan repayment: 

लोन की अवधि के दौरान कर्जदार को मासिक ईएमआई देनी होती है। इस ईएमआई में ब्याज और प्रिंसिपल रीपेमेंट शामिल रहता है। शुरुआती कुछ सालों में ईएमआई की तुलना में ब्याज का हिस्सा ज्यादा रहता है और बाद में ईएमआई से प्रिंसिपल अमाउंट ज्यादा हो जाता है। 

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