महाशिवरात्रि (MAHA SHIVRATRI 4 मार्च) पर इस बार शिवायोग के साथ सात ग्रहों की राशि पुनरावृत्ति का संयोग बन रहा है, जो कि धर्म और अध्यात्म के लिहाज से काफी महत्वपूर्ण है। यह संयोग धर्म और अध्यात्म में वृद्धि का संकेत देता है। खास बात यह है कि 131 साल बाद यह संयोग बन रहा है।
ज्योतिषविद् पं.अमर डिब्बावाला ( Astrologer p. Amer dabbawala ) ने बताया पंचागीय गणना के अनुसार फाल्गुन के कृष्ण पक्ष की त्रयोदशी पर महाशिवरात्रि सर्वार्थसिद्धि योग ( Sathirtha Siddhi Yoga ) के आरंभ काल से शुरू हो रही है। भारतीय ज्योतिष शास्त्र ( Indian Astrology ) में नक्षत्र मेखला की गणना और योग गणना से देखें तो इस बार महाशिवरात्रि का पर्व काल ग्रह योगों की पुनरावृत्ति को लेकर आया है। इस बार ग्रह गोचर के सात ग्रह, जिसमें चंद्र, शुक्र, केतु (त्रिग्रही युति) मकर राशि में, बुध मीन राशि में, सूर्य कुंभ राशि में, राहु कर्क राशि में और बृहस्पति वृश्चिक राशि में हैं। ठीक यही स्थिति वर्ष 1888 में शिवरात्रि पर्व काल के दौरान बनी थी। 131 साल बाद पुन: ग्रहों का इन राशियों में होना दुर्लभ माना जाता है।
धर्म-अध्यात्म में वृद्धि का संकेत / Indicating an increase in religion-spirituality
डिब्बावाला ने बताया देव-दृष्टि या देव योग संबंध का होना धर्म तथा अध्यात्म की उन्नति व वृद्धि के रूप में देखा जाता है। क्योंकि जब बृहस्पति जैसे सौम्य ग्रह की दृष्टि पापग्रह जैसे राहु पर पड़ती है, तब उसका पापत्व भंग हो जाता है और वह बृहस्पति के गुण स्वीकार कर लेता है। वर्तमान में राहु चंद्रमा की राशि कर्क पर है तथा बृहस्पति मंगल की राशि वृश्चिक पर है। चंद्रमा मन का कारक है। जब इस पर विशेष पर्व का प्रभाव हो तो नकारात्मकता समाप्त होती है।
धार्मिक अनुष्ठान देंगे अनुकूलता / Religious rituals will be favorable
शिव महापुराण के कोटिरुद्र संहिता के मूल खंड में जब ग्रह योगों में इस प्रकार की स्थिति बनती है, तब पूजा-पाठ आदि का संकल्पित लाभ मिलता है। बारह राशियों के जातकों को इच्छित फल की प्राप्ति के लिए देव अनुष्ठान करना चाहिए। आर्थिक प्रगति के लिए गन्ने के रस से, पराक्रम के लिए अनार रस से, प्रतिष्ठा के लिए नारियल पानी से, रोग-दोष के शमन के लिए पंचामृत से अभिषेक करना चाहिए।