इंदौर। नेत्र रोग विशेषज्ञों ( Eye specialist ) की 77वीं राष्ट्रीय कॉन्फ्रेंस ( National conference ) गुरुवार से शुरू हो गई। विशेषज्ञों ने मोबाइल और इससे निकलने वाले विकिरणों को लेकर कहा कि जब धूप में रहने से आंखें खराब नहीं होतीं तो मोबाइल से कैसे हो सकती हैं। जरूरी है कि इसे डेढ़ फीट दूरी से पर्याप्त रोशनी में देखा जाए। उन्होंने बताया कि खुले मैदान में कम से कम रोजाना दो घंटे खेलने वाले बच्चों की आंखों की रोशनी उन बच्चों से अच्छी रहती है, जो घर के घर में रहते हैं।
ब्रिलियंट कन्वेंशन सेंटर में चार दिन चलने वाली इस कॉन्फ्रेंस में देश-विदेश से सात हजार से ज्यादा नेत्र रोग विशेषज्ञ आए हैं। गुरुवार को पहले दिन विशेषज्ञों ने साइंटिफिक सेशन में नेत्र रोग के इलाजों की अत्याधुनिक तकनीकों पर अपना ज्ञान साझा किया। विशेष अतिथि इन्फ्रास्ट्रक्चर एंड लॉजिस्टिक स्टीक फेडरेशन ऑफ इंडिया के प्रेसिडेंट सुशील जीवराजका थे। इस मौके पर ऑल इंडिया ऑप्थोमोलॉजी सोसायटी के अध्यक्ष डॉ. अजीत बाबू मांझी, साइंटिफिक कमेटी के चेयरमैन डॉ.ललित वर्मा, प्रेसिडेंट इलेक्ट डॉ. एस नटराजन, आईओएस उपाध्यक्ष डॉ. महिपाल सचदेव, ऑर्गेनाइजिंग कमेटी के चेयरमैन डॉ. राजीव एस चौधरी और चीफ ऑर्गेनाइजिंग सेक्रेटरी डॉ. सतीश प्रेमचंदानी मौजूद थे।
मोबाइल से आंखें खराब होतीं हैं या नहीं डॉ. वीरेंद्र ने बताया / Whether or not the eyes are damaged by mobile, Dr. Virendra said,
कॉन्फ्रेंस में आए जयपुर के डॉ. वीरेंद्र अग्रवाल बच्चों में आंखों की बीमारियों के विशेषज्ञ हैं। उन्होंने बताया कि बच्चों में आंखों की बीमारियां बढ़ नहीं रही, बल्कि अब ये पता चलने लगी हैं। उन्होंने कहा कि एक भ्रांति है कि मोबाइल देखने से आंखें खराब होती हैं, लेकिन यह ठीक नहीं है। धूप में भी पराबैंगनी किरणें होती हैं लेकिन हमारी आंखों का सिस्टम ऐसा है कि ये भीतर प्रवेश नहीं कर पातीं। जब धूप में आखें खराब नहीं होतीं तो फिर मोबाइल देखने से कैसे होंगी। जरूरी यह है कि हम डेढ़ फीट दूरी से पर्याप्त रोशनी में मोबाइल देखें। अंधेरे में, बहुत पास से मोबाइल देखेंगे तो आंखों पर असर पड़ेगा ही। डॉ. अग्रवाल ने बताया कि सर्वे बताते हैं कि जो बच्चे रोजाना कम से कम दो घंटे खुले मैदान में खेलते हैं, उनकी नजरें उन बच्चों से बेहतर रहती हैं, जो कमरों में बंद रहते हैं।