भोपाल। दैनिक वेतन भोगी कर्मचारियों के मामले में राज्य सरकार को एक और बड़ा झटका लगा है। इस मामले में हाईकोर्ट ने सरकार की आपत्ति खारिज कर दी है। सरकार ने हाईकोर्ट में यह तर्क रखा था कि कर्मचारियों को अलग अलग प्रकरण दायर करना चाहिए। शासन ने आपत्ति लगाते हुए यह भी कहा था कि 2007 में इनके लिए नीति बनाई गई थी। इस मामले में सरकार को 15 दिन बाद हाईकोर्ट में जवाब देना है।
गौरतलब है कि सुप्रीम कोर्ट द्वारा दिए गए आदेश के बाद पिछली सरकार ने 7 सितंबर 2016 को दैनिक वेतन भोगी कर्मचारियों को स्थाई कर्मी बनाए जाने के आदेश दिए थे। इसे दैनिक वेतन भोगी कर्मचारी महासंघ द्वारा हाई कोर्ट में चुनौती दी गई थी। इस पर सुनवाई करते हुए जबलपुर हाई कोर्ट के जज जेके माहेश्वरी ने शासन द्वारा लगाई गई आपत्ति खारिज की है। महासंघ के प्रांत अध्यक्ष गोकुल चंद्र राय एवं महामंत्री राशिद खान ने बताया कि राज्य सरकार ने लोक अदालत के समझौता आदेश का और सुप्रीम कोर्ट के आदेश का पालन नहीं किया। नियमित करने के बजाय दैनिक वेतन भोगी कर्मचारियों को स्थाई कर्मी का दर्जा भर दे दिया।
कर्मचारियों व शासन के बीच 15 साल से जारी है विवाद
इस मामले में कर्मचारियों और शासन के बीच पिछले 15 साल से विवाद चल रहा है। 31 जनवरी 2004 को जबलपुर हाईकोर्ट में आयोजित की गई लोक अदालत में तत्कालीन जज दीपक मिश्रा ने इन्हें नियमित करने और नियमित कर्मचारियों को समान सुविधाएं देने के आदेश दिए थे। इस लोक अदालत में दैनिक वेतन भोगियों की ओर से पूर्व विधायक कल्पना परुलेकर एवं पूर्व समाजवादी नेता एमडब्ल्यू सिद्दीकी एवं शासन के बीच समझौता हुआ था। समझौते में यह तय हुआ था कि इन कर्मचारियों को नियमित कर इन्हें नियमित कर्मचारियों के समान सुविधाएं दी जाएंगी।
स्थाई कर्मी नहीं नियमित कर्मचारी बनाना होगा
राज्य सरकार को लोक अदालत में दिए गए समझौता आदेश का पालन करना पड़ेगा। नियमों के मुताबिक सरकार इस आदेश को चुनौती भी नहीं दे सकती। सरकार को इन कर्मचारियों को नियमित करना चाहिए, क्योंकि सुप्रीम कोर्ट भी इन्हें नियमित करने के आदेश दे चुका है। स्थाई कर्मी बनाकर राज्य सरकार ने इनके साथ न्याय नहीं किया है।
परमानंद पांडे सीनियर एडवोकेट सुप्रीम कोर्ट, दिल्ली