भोपाल। लोग भगवान से अपना रिश्ता शुद्ध रखना चाहते हैं। चाहते हैं कि भगवान उन्हे वो सबकुछ प्रदान करे जो वो चाहते हैं परंतु जब भगवान को भोग, दीपक या वस्त्र इत्यादि अर्पित करने की बात आती है तो सबसे सस्ता तलाशते हैं। यही कारण है कि मंदिरों के आसपास नकली और मिलावटी पूजा सामग्रियों का बोलबाला हो गया है। क्या आप जानते हैं भगवान की पूजा में इस्तेमाल होने वाले दीपक में एक बूंद भी घी नहीं होता। जबकि भगवान को गाय के शुद्ध घी या शुद्ध सरसों के तेल का दीपक अर्पित किए जाने का विधान है।
मंदिर के बाहर प्रसादी और धूप, घी के दीपक बेचने वाले दुकानदार असल में श्रद्धालुओं की आस्था से खिलवाड़ कर रहे हैं। मंदिर पर पहुंचने वाले श्रद्धालु भगवान की पूजा करने के लिए फूलमाला, प्रसादी और घी का दीपक बिना मोल भाव खरीदते हैं। इसी का फायदा दुकानदार उठाते हुए दीपकों में घी न भरकर एक ऐसा पदार्थ भरा जाता है जो वनस्पति घी भी नहीं होता। इसे 'दीपक का घी' या 'पूजा का घी' कहा जाता है।
डालडा और रिफाइंड मिक्स कर बनाते हैं 'पूजा का घी'
अचलेश्वर मंदिर पर प्रसाद की दुकान लगाने वाले राजेश्वर बताते हैं कि दीपक में भरने के लिए डालडा में रिफाइंड मिलाते हैं। जिससे डालडा थोड़ा नर्म व उसका रंग बदल जाता है। इन दोनों को के मिश्रण से तैयार हुआ तरल ही दीपक में भरकर पूजा के लिए तैयार किया जाता है। इस महगांई में दो से पांच रुपए में शुद्ध घी भरकर दीपक कौन बेच सकता है।
10 रुपए में हो जाता है डेढ़ किलो दीपक का घी तैयार
नाम न छापने की शर्त पर साईं बाबा मंदिर पर बैठने वाले दुकानदार ने कहा कि 50 से 60 रुपए किलो भाव का डालडा और और 60 से 75 रुपए किलो का रिफाइंड खरीदा जाता है। एक किलो डालडा में आधा किलो रिफाइंड डालकर मिलाया जाता है। करीब 100 रुपए के खर्च में डेढ़ किलो पदार्थ तैयार कर दीपक में भरा जाता है। जिसे घी का दीपक बोलकर बेचते हैं।