नई दिल्ली। नक्सली इलाकों में जाने वाले केन्द्रीय रिजर्व पुलिस फोर्स (सीआरपीएफ) जवानों का सरकार की ओर से बीमा कराया जाता है। डिप्टी कमांडेंट हीरा कुमार का भी बीमा था। वो जुलाई 2014 में नक्सलियों से मुठभेड़ के दौरान मारे गए। डिप्टी कमांडेंट हीरा कुमार की पोस्टिंग झारखंड में थी, मुठभेड़ झारखंड-बिहार के बार्डर पर हुई। डिप्टी कमांडेंट हीरा कुमार कई नक्सलियों को मार गिराया। डिप्टी कमांडेंट हीरा कुमार का शव बिहार की सीमा में मिला। बस इसी बात पर बीमा कंपनी ने क्लैम देने से इंकार कर दिया। कंपनी का कहना है कि पोस्टिंग झारखंड में थी तो बिहार में जाकर क्यों मरे।
सरकार ने पत्नी को अब तक नौकरी नहीं दी
यह 2014 की चर्चित नक्सली मुठभेड़ थी। हीरा कुमार और उनके जवानों ने कई नक्सलियों को मार गिराया। बड़ी मात्रा में हथियार और दूसरे विस्फोटक बरामद किए गए, लेकिन मुठभेड़ में हीरा कुमार शहीद हो गए। 2016 में राष्ट्रपति की ओर से शहीद हीरा कुमार झा को मरणोपरांत शौर्य चक्र से सम्मानित किया गया। इस ऑपरेशन के बाद झारखंड और बिहार सरकार ने हीरा कुमार की पत्नी के लिए अलग-अलग कई घोषणाएं की। उनकी पत्नी बीनू झा को एक सरकारी नौकरी और ज़मीन देने की बात भी कही गई लेकिन बीएससी और बीएड पास बीनू को अभी तक एक अदद नौकरी तक नहीं मिली है।
इतना ही नहीं सीआरपीएफ के जवानों का मृत्यु बीमा करने वाली कंपनी ने भी अभी तक बीनू झा को उनके पति का मृत्यु बीमा का मुआवजा नहीं दिया है। इस बारे में बीनू झा ने बताया कि 'सीआरपीएफ के अधिकारी खुद कंपनी के साथ उनके मामले की पैराकारी कर रहे हैं, लेकिन चार साल बीत जाने के बाद भी कंपनी ने बीमा की रकम का भुगतान नहीं किया है। जब सीआरपीएफ ने कंपनी से इसका कारण पूछा तो कंपनी की ओर से बताया गया कि डिप्टी कमांडेंट हीरा कुमार जहां शहीद हुए वो इलाका कंपनी की सूची के अनुसार नक्सली इलाके में नहीं आता है। दूसरा ये कि कंपनी के अनुसार हीरा कुमार झारखंड राज्य से बीमा के लिए नामित थे जबकि वह शहीद बिहार में हुए हैं।'