भोपाल। मध्यप्रदेश और अन्य राज्यों द्वारा निरस्त वन अधिकार प्रकरणों में आवेदकों को विधियुक्त सुनवाई का अवसर दिये जाने का आग्रह सुप्रीम कोर्ट ने स्वीकार कर लिया है। सर्वोच्च न्यायालय ने आज हुई सुनवाई में इस संबंध में दिये गये अपने आदेश 13 फरवरी 2019 को स्थगित रखते हुए मध्यप्रदेश और अन्य राज्यों को निर्देशित किया है कि वे निरस्त वन अधिकार प्रकरणों को निरस्त करते समय उचित प्रक्रिया अपनायी गई है या नहीं, की विस्तृत जानकारी सुप्रीम कोर्ट को दे।
सुप्रीम कोर्ट के आज के स्थगन आदेश से राज्यों को यह अवसर भी प्राप्त हुआ है कि वे वन अधिकार दावा प्रकरणों की स्थिति और ऐसे आदिवासी लोगों के अधिकारों के संरक्षण के बारे में शपथ पत्र भी प्रस्तुत कर सकते हैं, जिन्हें विधियुक्त प्रक्रिया के बिना विस्थापित नहीं किया जाना चाहिये।
मुख्यमंत्री ने प्रसन्नता व्यक्त की
मुख्यमंत्री श्री कमलनाथ ने सुप्रीम कोर्ट द्वारा निरस्त वन अधिकार प्रकरणों के आवेदकों को काबिज वन भूमि से बेदखल करने के अपने पूर्व के आदेश को स्थगित रखने पर प्रसन्नता व्यक्त की है। मुख्यमंत्री ने कहा कि कोर्ट की आज की कार्रवाई से वनाधिकार पट्टों से वंचित आदिवासियों को अब अपनी बात रखने का अवसर मिलेगा और किसी भी आदिवासी को अभी वनों से बेदखल नहीं किया जायेगा।