नई दिल्ली। यदि कोई प्रकरण यानी FIR में आरोपी के खिलाफ एक साथ पोक्सो अधिनियम ( The Poxo Act ) और अनुसूचिज जाति/अनुसूचित जनजाति अधिनियम ( SC/ST ACT ) दर्ज किए जाते हैं तो जमानत याचिका की सुनवाई कौन करेगा। पोक्सो कोर्ट या अन्य कोई न्यायालय। इलाहाबाद हाईकोर्ट ( Allahabad High Court ) ने इस पर फैसला ( Decision ) सुनाया है।
इलाहाबाद उच्च न्यायालय ने कहा है कि ऐसे मामलों में जहां आरोपी पर पोक्सो अधिनियम और अनुसूचिज जाति/अनुसूचित जनजाति अधिनियम दोनों के तहत मामला दर्ज हो तब जमानत याचिका पर फैसला विशेष पोक्सो अदालत द्वारा किया जाएगा। न्यायमूर्ति जेजे मुनीर ( SC/ST ACT ) ने सोमवार को यह भी कहा कि ऐसे मामले में जहां विशेष पोक्सो अदालत दोनों अधिनियम के तहत आरोपी को जमानत देने से इनकार करने का आदेश पारित करती है तो दंड प्रक्रिया संहिता की धारा 439 के तहत सिर्फ उच्च न्यायालय में ही आवेदन किया जा सकता है।
अदालत ने यह आदेश दुष्कर्म के आरोपी एक शख्स द्वारा दायर जमानत याचिका पर सुनवाई के दौरान दिया। सरकारी वकील ने इस मामले में आपत्ति उठाते हुए कहा था कि आरोपी के खिलाफ क्योंकि दोनों अधिनियमों के तहत मामला है ऐसे में दंड प्रक्रिया की धारा 439 के तहत जमानत याचिका विचार योग्य नहीं है।
वकील ने कहा कि याचिकाकर्ता को अनुसूचित जाति एवं जनजाति (अत्याचार निरोधक) अधिनियम की धारा 14ए के तहत याचिका दायर करने की जरूरत है। न्यायाधीश ने हालांकि याचिका को विचार योग्य मानते हुए आरोपी की जमानत याचिका के गुणदोष पर फैसले के लिये 22 फरवरी 2019 की तारीख तय की है।