जबलपुर। कलेक्टर एवं जिला निर्वाचन अधिकारी के कारण शहडोल लोकसभा सीट के लिए हुआ उपचुनाव निरस्त कर दिया गया। इस चुनाव में शिवराज सिंह सरकार के मंत्री ज्ञान सिंह सांसद निर्वाचित हुए थे। याचिका में आरोप लगाया गया है कि जिला निर्वाचन अधिकारी ने निर्दलीय उम्मीदवार का नामांकन जाति के आधार पर निरस्त कर दिया, जबकि इसका उन्हे अधिकार ही नहीं था। सांसद ज्ञान सिंह ने फैसले को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती देने के लिए स्टे की मांग की जो उन्हे दे दिया गया।
महावीर प्रसाद मांझी ने एक चुनाव याचिका जबलपुर हाईकोर्ट में दायर की थी। याचिका में कहा गया 2016 में शहडोल लोकसभा उपचुनाव में वो भी निर्दलीय प्रत्याशी के तौर पर मैदान में उतरे थे लेकिन सत्ताधारी दल भाजपा के प्रभाव में निर्वाचन अधिकारी ने उनके जाति प्रमाण पर आपत्ति जताते हुए नामांकन पत्र गलत तरीके से निरस्त कर दिया। इस वजह से वो चुनाव नहीं लड़ पाए थे।
इसके बाद मांझी ने जबलपुर हाईकोर्ट में याचिका लगायी। याचिका में इसे अवैध बताते हुए सांसद ज्ञान सिंह का निर्वाचन निरस्त करने की मांग की गई। मांझी का कहना है वैधानिक प्रक्रिया की अगर बात की जाए जो किसी भी जाति प्रमाण पत्र को अमान्य करने का अधिकार सिर्फ हाई लेवल कमेटी को होता है। ऐसे में ज़िला निर्वाचन अधिकारी द्वारा जाति प्रमाण पत्र को अमान्य कर आवेदन निरस्त करना गलत था।
याचिकाकर्ता के तर्क सुनने के बाद अदालत ने 2016 में शहडोल संसदीय क्षेत्र से उनका निर्वाचन निरस्त कर दिया। उसके बाद ज्ञान सिंह की ओर से रिप्रजेंटेशन ऑफ पीपल्स एक्ट के तहत एक आवेदन मध्यप्रदेश हाईकोर्ट में लगाया गया। उसमें सुप्रीम कोर्ट जाने तक फैसले पर स्टे की मांग की गई थी। कोर्ट सुनवाई करते हुए ज्ञान सिंह को स्टे देकर अंतरिम राहत दे दी।