उत्तर प्रदेश। हरदोई के बीजेपी के सांसद अंशुल वर्मा (MP Anshul Verma) ने पार्टी से इस्तीफा (Resignation) दे दिया है. बुधवार को अंशुल वर्मा ने बीजेपी (BJP) पर तंज कसते हुए अपना इस्तीफा बीजेपी अध्यक्ष को सौंपने के बजाय प्रदेश पार्टी दफ्तर के चौकीदार (Office guard) को सौंपा. लोकसभा चुनाव (Lok Sabha Elections) में हरदोई संसदीय सीट (Hardoi parliamentary seat) से बीजेपी ने अंशुल वर्मा का टिकट काटकर जय प्रकाश रावत (Jai Prakash Rawat) को उम्मीदवार बनाने का ऐलान किया जिसके चलते वो नाराज चल रहे थे और बीजेपी के खिलाफ बगावती तेवर अख्तियार कर रखा था. कुछ ही घंटे के भीतर समाजवादी पार्टी (Samajwadi Party) में वे शामिल भी हो गए.
हरदोई संसदीय सीट से टिकट कटने के बाद से नाराज अंशुल वर्मा ने लंबा चौड़ा पत्र लिखते हुए बीजेपी पर दलित विरोधी (Anti-Dalit) होने का आरोप लगाया है. उन्होंने कहा कि वह 21 साल से पार्टी के साथ जुड़े हुए हैं. ऐसे में पार्टी ने उनका टिकट काट दिया है. बीजेपी छोड़ने के कुछ ही घंटे के अंदर वह अखिलेश यादव (Akhilesh Yadav) की उपस्थिति में समाजवादी पार्टी में शामिल हो गए.
अंशुल वर्मा ने कहा कि हमें लगता है कि पार्टी ने गहरा मंथन और विचार-विमर्श करने के बाद टिकट का निर्णय लिया होगा. बीजेपी ने 6 में से 4 दलित सांसदों का टिकट काटा ये चौंकाने वाला विषय है. क्या दलित सांसद ही एक मात्र ऐसे सांसद हैं जिन्होंने विकास का कार्य नहीं किया है, या विकास की कसौटी पर खरे नहीं उतरे हैं.
उन्होंने कहा कि टिकट काटे जाने से नाराज बीजेपी सांसद ने कहा था कि अगर विकास मानक है तो जातिगत तौर पर दलित समुदाय के ही इतने टिकट क्यों काटे गए? उन्होंने कहा कि 24 हजार करोड़ लगाने के बाद आखिरी पायदान के जनपद को चौथे पायदान पर मात्र पांच साल में लाने का काम किया है. हालांकि यह सरकार की ही देन है, लेकिन माध्यम हम थे.
हरदोई लोकसभा सीट अनुसूचित जाति के लिए सुरिक्षत है. 2014 के लोकसभा चुनाव में बीजेपी के अंशुल वर्मा ने 18 साल के बाद कमल खिलाने में कामयाब रहे थे. इस बार भी वो टिकट के प्रबल दावेदार माने जा रहे थे, लेकिन पार्टी ने ऐन वक्त बसपा से नाता तोड़कर बीजेपी में घर वापसी करने वाले जय प्रकाश रावत को टिकट दे दिया है. इसी के चलते अंशुल वर्मा ने पार्टी से इस्तीफा दे दिया है.
हालांकि जयप्रकाश रावत 1991 और 1996 में दो बार हरदोई सीट से बीजेपी सांसद रह चुके हैं और 1998 में चुनाव हारने के बाद उन्होंने 1999 में लोकतांत्रिक कांग्रेस से चुनाव लड़कर जीत हासिल कर लोकसभा पंहुचने में कामयाबी हासिल की. 2004 में जयप्रकाश ने दल बदलकर सपा में शामिल होकर लखनऊ की मोहनलालगंज सीट से चुनाव लड़कर जीत हासिल की न 2009 में वह चुनाव हार गए. 2014 में वह फिर सपा के टिकट पर मिश्रिख सीट से चुनाव लड़े लेकिन उन्हें मोदी लहर के चलते एक बार फिर हार का सामना करना पड़ा. माना जा रहा है कि जय प्रकाश रावत हरदोई के दिग्गज नेता नरेश अग्रवाल के करीबी हैं. ऐसे में माना जा रहा है कि उन्हें पार्टी में लाने और हरदोई से टिकट दिलाने में अहम भूमिका मानी जा रही है.