भोपाल। यदि आपको बताया जाए कि एक अधिकारी अपनी जिम्मेदारी ना होने के बावजूद काम करता है तो निश्चित रूप से आप उसके लिए तालियां बजाएंगे परंतु काम के प्रति अत्यंत समर्पित और ओवर टाइम करने वाले अधिकारी कभी कभी भ्रष्टाचार के आरोपी भी होते हैं जिनके टारगेट कुछ और होते हैं। दमोह में ऐसा ही हुआ जहां सीईओ एनके अग्रवाल सस्पेंड होने के बाद भी काम करता था। अपना आदेश तब तक छुपाए रहा जब तक कि इंफार्मर ने मैसेज लीक नहीं कर दिया।
कुर्सी छोड़ने को तैयार ही नहीं थे एनके अग्रवाल
जिला अंत्यावसायी सहकारी विकास समिति दमोह में पदस्थ कार्यपालन अधिकारी एनके अग्रवाल ने भ्रष्टाचार के प्रति कर्तव्य निष्ठा का प्रदर्शन किया है। 2 दिन पहले उन्हे सस्पेंड कर दिया गया था लेकिन उन्होंने अपने निलंबन का आदेश ही छिपा लिया और दो दिन तक वरिष्ठ अधिकारियों को गुमराह करके उनसे फाइलों पर हस्ताक्षर कराते रहे। शनिवार को जब मामला जिला पंचायत सीईओ और कलेक्टर के पास किसी व्यक्ति ने इस बात की शिकायत की तो अग्रवाल ने तुरंत अपने निलंबन का आदेश अधिकारी के सामने पेश कर दिया।
क्यों सस्पेंड किया गया
शहडोल में पदस्थ रहते हुए अग्रवाल के खिलाफ लोकायुक्त रीवा की ओर से धारा 420, 120 बी, 188 सहित अनेक धाराओं में वर्ष 2010 में केस दर्ज किया गया था। इस मामले की जांच चल रही थी। मामले को लेकर विशेष न्यायाधीश जिला शहडोल के समक्ष 18 फरवरी 2019 को चालान पेश किया गया था। चालान पेश होने के बाद मध्यप्रदेश राज्य सहकारी अनुसूचित जाति वित्त एंव विकास निगम मर्यादित के प्रबंध संचालक ने 28 मार्च 2019 काे आदेश जारी करके एनके अग्रवाल को तत्काल प्रभाव से निलंबित कर दिया था।
फटाफट फाइलें निपटा रहे थे एनके अग्रवाल
एल 3, 2019, 3832 नंबर का यह आदेश पोर्टल पर भी डाला जा चुका था, लेकिन इसके बाद भी अग्रवाल आदेश को दबाए रहे। दो दिन तक उन्होंने जिला पंचायत सीईओ गिरीश मिश्रा के सामने फाइलें पुटअप कीं शनिवार को भी उनकी ओर से अधिकारियों को फाइलें पुटअप करने के लिए भेजी गईं, मगर इस बीच किसी ने इसकी सूचना जिला पंचायत सीईओ और कलेक्टर को दे दी। जिस पर तत्काल अग्रवाल से आदेश पेश करने के लिए कहा गया। उन्होंने अधिकारियों के सामने आदेश पेश किया तो उन्हें निलंबित करते हुए कार्यमुक्त किया गया।
पढ़िए एनके अग्रवाल कर्तव्य के प्रति कितने निष्ठावान हैं
इस संबंध में कार्यपालन अधिकारी एनके अग्रवाल का कहना है कि मुझे पुराने एक लोकायुक्त के मामले में निलंबित किया गया है। मैंने निलंबन के आदेश के बाद कुछ पुरानी फाइलें पुटअप की हैं। यदि मैं ऐसा नहीं करता तो काम पेंडिंग रह जाता। सवाल यह है कि यह जानकारी उन्होंने कलेक्टर और सीईओ से छुपाकर क्यों रखी। उन्हे बताकर 2 दिन का समय मांग लेते। कहीं ऐसा तो नहीं कि भ्रष्टाचार के एक मामले में सस्पेंड होने के बाद भ्रष्टाचार के दूसरे कई मामलों में लीपापोती की गई।