भारत ने ई-कामर्स को लेकर आयोजित बैठक में भाग ना लेने का निर्णय लिया है। तेजी से बढ़ते ई-कॉमर्स के कारोबार के नियमन के मसले पर धनी और विकासशील देशों में भी तनातनी के आसार हैं। विश्व व्यापार संगठन में इस मुद्दे पर इस महीने से बातचीत का सिलसिला शुरू होने जा रहा है।
धनी देश इस क्षेत्र में एक वैश्विक नियमों के पक्षधर हैं, लेकिन रिपोर्टों की मानें, तो भारत ने अपने हितों को प्राथमिकता देते हुए बहुपक्षीय बैठक में शामिल न होने का फैसला किया है। धनी देशों में ई-कॉमर्स का बाजार बहुत विकसित है तथा इसमें सक्रिय बड़ी कंपनियां खुदरा बाजार में भी बड़ा दखल रखती हैं। ऐसे में नियम-कानूनों का कोई एक ढांचा भारत जैसी उभरती अर्थव्यवस्थाओं के लिए बेहद नुकसानदेह हो सकता है। इस संदर्भ में राजस्व और डेटा का घाटा जैसी चिंताएं बहुत अहमियत रखती हैं। भारत ने आंतरिक बाजार के लिए एक नीति प्रस्तावित की है और इसे अंतिम रूप देने के लिए सभी संबद्ध पक्षों पर राय ली जा रही है। विश्व व्यापार संगठन के नियम सभी १६४ सदस्यों के लिए होते हैं और उस पर हर देश की मंजूरी ली जाती है । शायद पहली दफा ऐसा हो रहा है, जब सदस्यों के बीच आम सहमति बनाये बिना फैसला लेने पर जोर दिया जा रहा है।भारत के लिए इसे मंजूर कर पाना मुमकिन नहीं है। भारत हमेशा बहुपक्षीय विश्व व्यवस्था का पक्षधर रहा है, लेकिन ई-कॉमर्स के मसले पर कुछ प्रभावशाली देश अपने फायदे के हिसाब से नीतियां बनाने पर जोर दे रहे हैं।
भारत समेत कई देशों की आपत्ति के बावजूद 76 देशों ने पिछले महीने नियमन के लिए बैठक करने पर सहमति दी थी. इनमें अधिकतर विकसित देश हैं। दूसरे देशों से आनेवाली वस्तुओं पर लगनेवाला शुल्क किसी भी देश की आमदनी का एक बड़ा जरिया होता है। डिजिटल तकनीक के विस्तार से किताबें, फिल्में, वीडियो गेम, संगीत जैसी अनेक चीजें अब इलेक्ट्रॉनिक तरीके से भेजी जा रही हैं।यदि इनकी आमद पर शुल्क लगाने से भारत या किसी देश को रोक दिया जाता है, तो इससे आमदनी में बड़ी कमी हो सकती है। इस रोक पर भारत को उचित ही आपत्ति है. ई-कॉमर्स में डेटा की सुरक्षा और संग्रहण का मुद्दा भी प्रमुख है। सरकार का कहना है कि देश के भीतर जुटाये गये डेटा का संग्रहण भी देश में ही होना चाहिए तथा कंपनियों को उनके सुरक्षित और समुचित उपयोग की गारंटी देनी होगी।
देश में स्टार्ट-अप और ई-कॉमर्स का देशी बाजार भी बन रहा है। उम्मीद है कि भविष्य में यह हमारी अर्थव्यवस्था का महत्वपूर्ण भाग होगा। यदि इस क्षेत्र में व्यापक संसाधनों से लैस बड़ी विदेशी कंपनियों को निर्बाध छूट दे दी जायेगी, तो छोटी देशी कंपनियों का अस्तित्व संकटग्रस्त हो सकता है। विश्व व्यापार संगठन में अंतरराष्ट्रीय नीतियों के पक्षधर देश इन चिंताओं को लेकर गंभीर नहीं हैं। भारत सरकार सामान्य खुदरा दुकानों को बचाने के लिए भी प्रयासरत है, जो ई-कॉमर्स कंपनियों का सामना करने में सक्षम नहीं हैं। इस पृष्ठभूमि में विश्व व्यापार संगठन को सभी पहलुओं पर विचार करने के बाद ही नियमों को तैयार करना चाहिए।
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श्री राकेश दुबे वरिष्ठ पत्रकार एवं स्तंभकार हैं।