आम चुनाव और चुनौतियाँ | EDITORIAL by Rakesh Dubey

17वीं लोकसभा के चुनाव का बिगुल बज गया है | यह चुनाव सत्तारूढ़ भाजपा के लिए अन्य दलों से ज्यादा चुनौती पूर्ण है | इस समय पार्टी क्या सोच रही है और वह आगामी आम चुनाव की तैयारी किस प्रकार कर रही है। प्रधनमंत्री जॉर्ज बुश की तर्ज पर भले ही कह रहे हैं कि एक-एक को मारूंगा, घर में घुस के मारूंगा |पर मामला अब अलग है | पुलवामा के पहले भाजपा में बहुत उत्साह का माहौल नहीं था। पार्टी को विधानसभा चुनावों में हार मिली थी और इससे भी महत्त्वपूर्ण बात यह कि वह जिन राज्यों में हारी वहां पहले से उसकी सरकार थी। यह सच है कि छत्तीसगढ़ को छोड़कर दो अन्य स्थानों पर कांग्रेस को बहुत मामूली जीत मिली लेकिन दो स्थानों पर सरकार भाजपा के हाथों से फिसल सी गई। संसद की लॉबी समेत कई स्थानों पर सरकार के कनिष्ठ मंत्री हारने की बात कहते सुने गए और यहां तक कि कई भरोसेमंद गठबंधन साझेदार राष्ट्रपति के अभिभाषण में उल्लिखित “नए भारत” के विचार का मजाक उड़ाते देखे गए। यह भाषण लोकसभा में जाने का रोडमेप है  जिसे भाजपा ने एन डी ए सरकार के नाम से तैयार किया था |

एन डी ए के एक धड़े द्वारा कराए गए सर्वेक्षण से निकले नतीजे भी बेहद निराश करने वाले हैं । उसके मुताबिक भाजपा को ५४५   में से १६४ सीटें  मिलेंगी जबकि कांग्रेस १२०  सीटों के आसपास रहेगी। अनुमान यह था कि भाजपा का  वाईएसआर कांग्रेस के जगनमोहन रेड्डी, बीजू जनता दल के नवीन पटनायक (उनकी बहिन गीता मेहता को पद्मश्री देना उसी नीति का हिस्सा था जिसे उन्होंने ठुकरा दिया) और तेलंगाना राष्ट्र समिति के चंद्रशेखर राव से समझौता हो जायेगा । इन क्षेत्रीय दलों से ४५  सीटों का समर्थन भाजपा को मिलने की उम्मीद थी और माना जा रहा था कि इनके समर्थन से भाजपा गठबंधन २१७  के आंकड़े तक पहुंचेगा। यह कोई बहुत अच्छी तस्वीर नहीं है।मोदी बेहद स्पष्टवादिता से अपने मित्रों से कह चुके हैं कि उन्हें ईश्वर का वरदान मिला हुआ है। पार्टी के नेताओं के मुताबिक पुलवामा ऐसा ही एक दैवीय हस्तक्षेप साबित हुआ है। उनका कहना है कि अब हालात पूरी तरह बदल चुके हैं। देश का मानना है कि वह सुरक्षित हाथों में है, हमें हुए नुकसान और हमारे जवानों की मौत का बदला लिया जा चुका है और अगर जरूरत पड़ी तो देश दोबारा ऐसा करेगा। 

इन तर्को से राहत महसूस कर रहे पार्टी कार्यकर्ता कुछ स्पष्ट ढांचागत कमजोरियों की अनदेखी कर रहे हैं। जैसे पार्टी दिल्ली जैसी सात लोकसभा सीटों वाली जगह पर अपनी विश्वसनीयता गंवा चुकी है। आंध्र प्रदेश और तेलंगाना (कुल 42 सीटें) में पार्टी अपना प्रभाव बढ़ाने में नाकाम रही है। तेलंगाना विधानसभा चुनाव में भाजपा की सीटें घटकर पांच से एक हो गईं। नवीन पटनायक के साथ समझौता करने की स्थिति में उसे ओडिशा में अपनी ही वृद्धि पर लगाम लगानी होती। जबकि भाजपा मानती है कि इस राज्य में उसके लिए परिस्थितियां अनुकूल हैं।परंतु अब हालात बदल चुके हैं। आत्मविश्वास से भरे नेता कहते हैं कि हर तरह के नुकसान की भरपाई हो चुकी है। एक नेता ने कहा कि वह भाजपा द्वारा जीती गई सीटों का कोई आंकड़ा नहीं दे सकते क्योंकि उन्हें पता नहीं कि सीटों का सिलसिला कहां थमेगा? इन बातों में और डींग मारने में समानता दिखती है |

अगर भाजपा सत्ता में वापसी होती है तो हमें किस तरह के बदलावों की उम्मीद करनी चाहिए? अनुमान काफी दिलचस्प हैं। अगर पिछली बार सरकार बनते समय वित्त मंत्री अरुण जेटली का प्रभाव साफ नजर आ रहा था तो इस बार अमित शाह यह तय करेंगे कि कौन मंत्री बनेगा? कुछ मंत्री जिनका प्रदर्शन बेहतर है, उन्हें दोबारा अवसर मिलेगा। बहुत बड़ी संख्या नए चेहरों की भी होगी। कुछ तो ऐसे भी होंगे जिनके बारे में आपने सुना ही न हो। हरियाणा और महाराष्ट्र के तर्ज पर नियुक्तियां की जाएंगी। मनोहर लाल खट्टर इससे पहले विधायक तक नहीं थे और उन्हें हरियाणा का मुख्यमंत्री बना दिया गया। महाराष्ट्र में देवेंद्र फडणवीस के अलावा भी कई नाम थे लेकिन उन्हें मुख्यमंत्री बनाया गया। मौजूदा राजनीतिक दिग्गजों का क्या? पार्टी अध्यक्ष अमित शाह सरकार में शामिल हो सकते हैं और उनके स्थानापन्न के रूप में दो लोगों के नाम पर विचार किया जा रहा है: सड़क एवं राजमार्ग मंत्री नितिन गडकरी और मध्य प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान। ये चुनाव काफी दिलचस्प होगा |
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श्री राकेश दुबे वरिष्ठ पत्रकार एवं स्तंभकार हैं।
संपर्क  9425022703        
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