देश का बैंकिंग नियामक निजी और विदेशी बैंकों के सीईओ के वेतन और भत्तों में कटौती की योजना बना रहा है। देश के बैंकिंग अधिनियम के अनुसार निजी और विदेशी बैंकों को अपने पूर्णकालिक निदेशकों और सीईओ के वेतन भत्तों के निर्धारण के लिए नियामकीय मंजूरी की आवश्यकता होती है। इस मामले में रिजर्व बैंक बहुत अधिक उदार नहीं है। इसके बावजूद उनको शेयर विकल्प के माध्यम से ठीकठाक वेतन भत्ते मिलते हैं। ये उसके वेतन पैकेज से इतर होता है। अब रिजर्व बैंक चाहता है कि शेयर विकल्प को उनके वेतन में शामिल किया जाए।
प्रस्ताव है शेयर विकल्प की उनके तय वेतन के अनुपात में एक सीमा तय की जाएगी। इसके लिए 50 प्रतिशत का आधार तय किया जाएगा। इतना ही नहीं उनके वेतन का कम से कम आधा हिस्सा गैर नकदी का होगा। फिलहाल बैंक सीईओ के वेतन को 70 प्रतिशत पर सीमित किया गया है और इसके लिए कोई आधार तय नहीं है।
नई योजना के मुताबिक अगर कोई बैंक सीईओ एक करोड़ रुपये सालाना का तय वेतन पाता है तो उसका एक हिस्सा 50 लाख रुपये से 2 करोड़ रुपये के बीच होगा। इसमें शेयर विकल्प शामिल होगा जो इसका आधा होगा। इस प्रस्ताव के हिसाब से देखें तो कुल वेतन का कम से कम 60 प्रतिशत हिस्सा न्यूनतम तीन वर्ष के लिए लंबित रखना होगा। इसके अलावा एक ऐसा समझौता भी होगा जिसके तहत सीईओ कुछ खास परिस्थितियों में पहले ही चुकाया जा चुका वेतन-भत्ता लौटाना होगा। यह भी कि अगर बैंक फंसी हुई परिसंपत्ति का खुलासा नहीं कर रहा हो और उसके लिए धनराशि अलग नहीं कर रहा हो तो उसका विलंबित भुगतान रोका जा सकता है।
आरबीआई की मंशा है कि बैंक अपने वरिष्ठ कर्मचारियों में से तथाकथित जोखिम उठाने वालों को चिह्नित करे, जिनके काम बैंक के प्रदर्शन पर असर डालते हैं। कोई भी व्यक्ति नियामक की हालिया पहल में खामी नहीं खोज सकता है जबकि इन दिनों दुनिया भर में बैंकरों के वेतन भत्तों का मसला नियामकीय सुधार के केंद्र में है। कुछ निजी भारतीय बैंकों में कॉर्पोरेट संचालन की स्थिति बहुत सम्मानजनक नहीं है। अगर बैंक सीईओ के जोखिम भरे कदमों के कारण बैंक की सेहत गड़बड़ होती है या फंसे हुए कर्ज को छिपाया जाता है तो उसको पूर्ण वेतन भत्ते न देने की योजना स्वागतयोग्य है।
प्रश्न यह है कि इस सब पर बैंक कैसी प्रतिक्रिया देंगे? संभव है वे वेतन का तयशुदा हिस्सा बढ़ा दें। मौजूदा वेतन-भत्तों को बचाने के लिए कुछ निजी बैंक सीईओ के तयशुदा वेतन में ५० प्रतिशत तक का इजाफा कर दें । यूरोपियन बैंक में ऐसा ही हुआ है। इससे नियामक का कदम बेमानी हो जाएगा। शीर्ष पद के लिए उत्साह में कमी आ सकती है। देश के निजी बैंकों का बाजार प्रदर्शन एकीकृत नहीं है। उदाहरण के लिए एचडीएफसी बैंक के कर्मचारियों के पास हमेशा पैसा रहा है क्योंकि कंपनी के शेयरों
की कीमत हमेशा ऊंची बनी रही जबकि आईसीआईसीआई बैंक के कर्मचारियों को बीते वर्षों में शायद ही फायदा हुआ हो। येस बैंक के शेयर तो बीते सात महीने में ४० प्रतिशत तक गिरे हैं। अगर किसी कंपनी के शेयर अच्छा प्रदर्शन कर रहे हैं तो क्या उसके सीईओ को उसके अच्छे काम का लाभ नहीं मिलना चाहिए?केवल बैलेंस शीट का आकार ही इसके निर्धारण की एकमात्र वजह नहीं होना चाहिए। इस काम की जटिलता और चुनौतियों का भी ध्यान रखा जाना चाहिए।अगर हमें अच्छे प्रदर्शन का ध्यान रखना है तो देश में सरकारी बैंकों के सीईओ के वेतन-भत्तों को बिना देरी किए नए सिरे से तय करने की आवश्यकता है।
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श्री राकेश दुबे वरिष्ठ पत्रकार एवं स्तंभकार हैं।