चुनाव : मुद्दे की बात करें, प्रलाप छोड़े | EDITORIAL by Rakesh Dubey

Bhopal Samachar
आम चुनाव दहलीज पर हैं। अरुणाचल जैसे छोटे राज्यों में इक्का-दुक्का लोग निर्विरोध भी जीत गये हैं। चुनावी मैदान में संघर्षरत विभिन्न दल और उम्मीदवार अपने वादों और दावों के साथ मतदाताओं के दरवाजे पर हैं। इन वादों और दावों के साथ जो जुमले उछाले जा रहे हैं और सब्जबाग दिखाए जा रहे हैं, वे भारत के चुनाव बाद के परिदृश्य से मेल नहीं खाते हैं। देश के सामने गंभीर समस्याओं का अम्बार लगा है, उन्हें छोडकर कैसे और कुछ भी कहा-सुना जा रहा है। आगामी दिनों में हम भारतीय अपने मताधिकार का प्रयोग करेंगे। हमारा देश न सिर्फ आबादी और आकार के लिहाज से एक बड़ा देश है, बल्कि वह सबसे तेजी से उभरती हुई अर्थव्यवस्था भी है। हमारे सामने गंभीर समस्याओं कीअम्बार भी है।

वैसे यह समझने की जरूरत है कि यह चुनाव प्रचार सिर्फ ज्यादा से ज्यादा सीटों पर जीत हासिल करने की कवायद नहीं है। इस प्रक्रिया में सरकार में शामिल और समर्थन कर रहे दलों को  अपनी उपलब्धियों का हिसाब देना होता हैं, वहीं विपक्षी गठ्बन्धन का काम सरकार की खामियों का ब्यौरा जनता के सामने रखता है। इस दौरान दोनों पक्षों को भविष्य की योजनाओं की रूप-रेखा भी प्रस्तुत करना चाहिए। इसके विपरीत इस चुनाव अभियान में मुद्दों पर गंभीर चर्चा की कमी है| विभिन्न मसलों पर सामान्य बयानबाजी कर पार्टियां एक-दूसरे पर आरोप-प्रत्यारोप में ऊर्जा खर्च कर रही हैं|  सामान्य जनों में चर्चा के मुताबिक, रोजगार के अच्छे अवसर, बेहतर स्वास्थ्य सेवा, पेयजल, अच्छी सड़कें और सार्वजनिक यातायात के साधन प्रमुख मुद्दे हैं| खेती-किसानी से जुड़े मसले भी मतदाताओं के लिए अहम हैं|  हर चर्चा में जो एक तथ्य उभर कर आ रहा है, वो बेरोजगारी है | लोग बेरोजगारी की समस्या का ठोस समाधान चाहते हैं और कारोबार को बढ़ाने की जरूरत महसूस करते हैं|

नागरिक  सुरक्षा को लेकर भी सामान्य जनों में चिंता व्याप्त होने लगी  है| इसके विपरीत विभिन्न सर्वे के नतीजों में यह भी पाया गया है कि लोकतांत्रिक व्यवस्था पर लोगों का भरोसा बढ़ रहा है|  तमाम खामियों के बावजूद देश की लोकतांत्रिक संस्थाएं लगातार मजबूत दिख रही हैं| ऐसे में  चुनाव को अनाप-शनाप बयानों या हरकतों से विवादित या मजाक बना देना बेहद नुकसानदेह हो सकता है| देश आज वैश्विक रूप से एक नई पहचान बना रहा है, ऐसे में हल्की बातें शोभा नहीं देती | पक्ष और प्रतिपक्ष दोनों की जिम्मेदारी बनती है कि पार्टियों के वैचारिक तनाव मुद्दों को चिन्हित करें , उन्हें विश्लेषित करने तथा उनका समाधान निकालने की दिशा में ठोस कार्य योजना दे |अर्थव्यवस्था में बढ़ोतरी का फायदा जन-जन तक कैसे पहुंचे और दूर-दराज के इलाकों का विकास कैसे  हो ? दलों की जोर-आजमाइश का ध्यान इस पर होना चाहिए| अभद्र टिप्प्णियों और भेद-भाव बढ़ानेवाले बयानों से परहेज किया जाना चाहिए| पार्टियों को यह नहीं भूलना चाहिए कि उन्हें बार-बार जनता की अदालत में पेश होना है| साथ ही  उन्हें यह भी याद रखना चाहिए कि मतदाताओं का बड़ा हिस्सा युवा है और देश के भविष्य के साथ उनका भविष्य जुड़ा हुआ है| 

चुनाव मुद्दों पर हों और इनमें शुचिता बनी रहे, इसकी निगरानी का जिम्मा सिर्फ चुनाव आयोग और प्रशासन का ही  नहीं है, हम सबका है | नागरिकों और मीडिया को भी ऐसे लोगों सचेत रहना चाहिए जो गलत बात और तर्क के साथ अनर्गल और भद्दी बातें करने के आदी हैं  | इनका बहिष्कार ही इन्हें रास्ते पर लायेगा, ये पटरी  पर रहें, इसी में देश हित है |
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श्री राकेश दुबे वरिष्ठ पत्रकार एवं स्तंभकार हैं।
संपर्क  9425022703        
rakeshdubeyrsa@gmail.com
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