एक गांव मे अंधे पति-पत्नी रहते थे। इनके यहाँ एक सुन्दर बेटा पैदा हुआ। पर वो अंधा नही था। एक बार पत्नी रोटी बना रही थी। उस समय बिल्ली रसोई में घुस कर बनाई रोटियां खा गई। बिल्ली की रसोई मे आने की रोज की आदत बन गई इस कारण दोनों को कई दिनों तक भूखा सोना पड़ा। एक दिन किसी प्रकार से मालूम पड़ा कि रोटियाँ बिल्ली खा जाती है। अब पत्नी जब रोटी बनाती उस समय पति दरवाजे के पास बाँस का फटका लेकर जमीन पर पटकता रहता। इससे बिल्ली का आना बंद हो गया।
जब लड़का बड़ा हुआ और उसकी शादी हुई। बहू जब पहली बार रोटी बना रही थी तो उसका पति बाँस का फटका लेकर बैठ गया औऱ फट फट करने लगा। कई दिन बीत जाने के बाद पत्नी ने उससे पूछा कि तुम रोज रसोई के दरवाजे पर बैठ कर बाँस का फटका क्यों पीटते हो? पति ने जवाब दिया कि ये हमारे घर की परम्परा (रिवाज) है इसलिए मैं ऐसा कर रहा हूँ।
कहानी का सार:
माँ बाप तो अंधे थे, जो बिल्ली को देख नहीं पाते थे, उनकी मजबूरी थी इसलिये फटका लगाते थे। पर बेटा तो आँख का अंधा नही था पर अकल का अंधा था, इसलिये वह भी वैसा करता था जैसा माँ-बाप करते थे। ऐसी ही दशा आज के अपने समाज की है। पहले शिक्षा का अभाव था इसलिए पाखण्डी लोग अशिक्षितों को मिसगाइड करके अपना फायदा उठाते रहते थे परंतु अब समाज शिक्षित है फिर भी पाखण्डी फल फूल रहे हैं। यह हालात, धर्म, राजनीति, व्यापार और सरकारी व्यवस्था में समान रूप से दिखाई देते हैं।